हर की पौड़ी

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हर की पौड़ी
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हर की पौड़ी
विवरण 'हर की पौड़ी' हिन्दुओं की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी हरिद्वार का पवित्र तथा महत्त्वपूर्ण स्थल है। इस स्थान पर गंगा में स्नान को मोक्ष देने वाला माना जाता है।
राज्य उत्तराखण्ड
ज़िला हरिद्वार
धार्मिक मान्यता माना जाता है कि 'हर की पौड़ी' में एक बार डुबकी लगाने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
संबंधित लेख उत्तराखण्ड, हरिद्वार, समुद्र मंथन, गंगा, हिन्दू धर्म
अन्य जानकारी हर शाम सूर्यास्त के समय साधु, संन्यासी गंगा आरती करते हैं, उस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है और याजक अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं।

हर की पौड़ी अथवा हरि की पौड़ी भारत के उत्तराखण्ड राज्य में हिन्दुओं की पवित्र धार्मिक नगरी हरिद्वार के सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है। यह वह स्थान है, जहाँ प्रतिदिन लघु भारत के दर्शन होते हैं। 'हर की पौड़ी' को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। ये माना गया है कि यही वह स्थान है, जहाँ से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की ओर मुड़ती है। इस स्थान पर नदी में पापों को धो डालने की अद्भुत शक्ति है और यहाँ एक पत्थर में श्रीहरि के पदचिह्न इस बात का समर्थन करते हैं। यह घाट गंगा नदी की नहर के पश्चिमी तट पर है, जहाँ से नदी उत्तर दिशा की ओर मुड़ जाती है।

पौराणिक तथ्य

'हर की पौड़ी' उत्तराखण्ड राज्य की धार्मिक नगरी हरिद्वार का पवित्र और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसका भावार्थ है- "हरि यानी नारायण के चरण"। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा अमृत के कलश को, जिसे पाने के लिए देवता तथा दानव झगड़ रहे थे, बचाकर ले जा रहे थे। तब पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूँदें कलश से छलक कर गिर गईं और वे स्थान धार्मिक महत्त्व वाले स्थान बन गए। अमृत की बूँदे हरिद्वार में भी गिरीं और जहाँ पर वे गिरी थीं, वह स्थान "हर की पौड़ी" था। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मिथक

इस स्थान से संबंधित कई मिथकों में से एक यह भी है कि वैदिक समय के दौरान भगवान विष्णु एवं शिव यहाँ प्रकट हुए थे। अन्य मिथक यह कहते हैं कि हिन्दू भगवान ब्रह्मा, जिन्हें सृष्टि का सृजनकर्ता भी कहा जाता है, उन्होंने यहाँ एक यज्ञ किया था। यहाँ घाट पर पदचिन्ह भी मौजूद हैं, जिनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के हैं।

ऐतिहासिक तथ्य

'हर की पौड़ी' का निर्माण प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था। उन्होंने अपने भाई 'ब्रिथारी' (भतृहरि) की याद में इसका निर्माण कराया था। भतृहरि गंगा नदी के घाट पर बैठकर काफ़ी लम्बे समय तक ध्यान किया करते थे।

धार्मिक मान्यता

गंगाजी की आरती, हर की पौड़ी, हरिद्वार

विश्वास किया जाता है कि 'हर की पौड़ी' में एक बार डुबकी लगाने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। भक्त बड़ी संख्या में यहाँ कुछ प्रथाओं, जैसे- कि 'मुंडन'[1] एवं 'उपनयन'[2] को पूर्ण करने के लिए आते हैं। प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात यहाँ 'कुंभ मेले' का आयोजन किया जाता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों भक्त यहाँ आते हैं।

वैसे तो गंगा में स्नान को ही मोक्ष देने वाला माना जाता है, लेकिन किंवदन्ती है कि 'हर की पौड़ी' में स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप धुल जाते हैं। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है, शाम को होने वाली गंगा की आरती। हर शाम हज़ारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। जल में दिखाई देती दीयों की रोशनी हज़ारों टिमटिमाते तारों की तरह लगती है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं। हर शाम सूर्यास्त के समय साधु, संन्यासी गंगा आरती करते हैं, उस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है और याजक अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं। इस मुख्य घाट के अतिरिक्त यहाँ पर नहर के किनारे ही छोटे-छोटे अनेक घाट हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर ही सन्तरी व सफ़ेद रंग के जीवन रक्षक टावर लगे हुए हैं, जो ये निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई श्रद्धालु डूब तो नहीं रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सिर के बाल उतारना
  2. एक प्रारंभिक हिन्दू संस्कार

बाहरी कड़ियाँ

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