नेटाल भारतीय कांग्रेस
नेटाल भारतीय कांग्रेस की स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा 22 अगस्त, 1894 ई. में की गई थी। सन 1893 ई. में एक भारतीय फर्म के लिये केस लड़ने महात्मा गाँधी दक्षिण अफ़्रीका गए थे। वहाँ उन्हें सभी प्रकार के रंगभेद का सामना करना पड़ा। गाँधी जी नागरिक अधिकारों का उल्लघंन, नस्लीय भेदभाव और पुलिस क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध व्यक्त करने के लिए भारतीय समुदाय को संगठित करने का प्रयास करने लगे। इसके लिए उन्होंने वहीं रहकर समाज कार्य तथा वकालत करने का निर्णय लिया और 'नेटाल भारतीय कांग्रेस' की स्थापना की।
स्थापना
महात्मा गाँधी ने अनुभव किया कि सबसे पहली आवश्यकता तो इस बात की है कि दक्षिण अफ़्रीका के भारतीयों के हितों की रक्षा करने वाला एक स्थायी संगठन तुरन्त बनाया जाना चाहिए। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के 1893 ई. के अधिवेशन के अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए उन्होंने अपने नये संगठन का नाम 'नेटाल इंडियन कांग्रेस' रखा। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के संविधान, कर्तव्य और कार्य प्रणाली की गांधी जी को कोई जानकारी नहीं थी। यह उनके लिए अच्छा ही हुआ। वह नेटाल इंडियन कांग्रेस को अपनी प्रतिभा से वहां के भारतीयों की आवश्यकताओं के अनुरूप एक जीवंत संगठन बना सके, जो पूरे साल कार्यशील रहता और जिसका उद्देश्य केवल राजनीतिक चौकसी न होकर सदस्यों का सामाजिक और नैतिक उत्थान भी था।[1]
गाँधीजी की प्रयत्नशीलता
जिनके हितों के लिए यह संगठन बना था, उनका राजनैतिक अनुभव और ज्ञान नहीं के बराबर था; फिर भी उस संस्था पर किसी व्यक्ति विशेष की इजारेदारी नहीं थी। उसके अथक परिश्रमी सचिव महात्मा गाँधी हर कदम पर सभी का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहे। इससे काम में सार्वजनिक उत्साह और रुचि बराबर बनी रही। सदस्य बनाने और चंदा जमा करने जैसे साधारण कार्य को भी उन्होंने महत्व दे रखा था। आधे मन से सहयोग देने वालों के साथ वह नैतिक दबाव का विनम्र ढंग अपनाते थे। एक बार एक छोटे कस्बे के भारतीय व्यापारी के घर पर वह सारी रात भूखे बैठे रहे, क्योंकि व्यापारी नेटाल कांग्रेस का अपना चन्दा नहीं बढ़ा रहा था। आखिर सबेरा होते-होते उन्होंने उसे अपना चन्दा तीन से बढ़ाकर छः पौण्ड कर देने को राजी कर ही लिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ युवा राजनीतिज्ञ (हिन्दी) हिन्दी.एम.के.गाँधी। अभिगमन तिथि: 10 फरवरी, 2014।
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