श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 28-40

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दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः(11) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः श्लोक 28-40 का हिन्दी अनुवाद

वृन्दावन’ नाम का एक वन है। उसमें छोटे-छोटे और भी बहुत-से नये-नये हरे-भरे वन हैं। वहाँ बड़ा ही पवित्र पर्वत, घास और हरी भरी लता वनस्पतियाँ हैं। हमारे पशुओं के लिये तो वह बहुत ही हितकारी है। गोप, गोपी और गायों के लिये वह केवल सुविधा का ही नहीं, सवाल करने योग्य स्थान है। सो यदि तुम सब लोगों को यह बात जँचती हो तो आज ही हम लोग वहाँ के लिए कूच कर दें। देर न करें, गाड़ी-छकड़े जोतें और पहले गायों को, जो हमारी एकमात्र सम्पत्ति हैं, वहाँ भेज दें।'

उपनन्द की बात सुनकर सभी गोपों ने एक स्वर से कहा - ‘बहुत ठीक, बहुत ठीक।’ इस विषय में किसी का भी मतभेद न था। सब लोगों ने अपनी झुंड की झुंड गायें इकट्ठी कीं और छकड़ों पर घर की सब सामग्री लादकर वृन्दावन की यात्रा की। परीक्षित! ग्वालों ने बूढ़ों, बच्चों, स्त्रियों और सब सामग्रियों को छकड़ों पर चढ़ा दिया और स्वयं उनके पीछे-पीछे धनुष-बाण लेकर बड़ी सावधानी से चलने लगे। उन्होंने गौ और बछड़ों को तो सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे-पीछे सिगी और तुरही ज़ोर-ज़ोर से बजाते हुए चले।

उनके साथ ही-साथ पुरोहित लोग भी चल रहे थे। गोपियाँ अपने-अपने वक्षःस्थल पर नयी केसर लगाकर, सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनकर, गले में सोने के हार धारण किये हुए रथों पर सवार थीं और बड़े आनन्द से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के गीत गाती जाती थीं। यशोदा रानी और रोहिणी जी भी वैसे ही सज-धजकर अपने-अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण तथा बलराम के साथ एक छकड़े पर शोभायमान हो रही थीं। वे अपने दोनों बालकों की तोतली बोली सुन-सुनकर भी अघाती न थीं, और-और सुनना चाहतीं थीं।

वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन है। चाहे कोई भी ऋतु हो, वहाँ सुख-ही-सुख है। उसमें प्रवेश करके ग्वालों ने अपने छकड़ों को अर्द्धचन्द्राकर मण्डल बाँधकर खड़ा कर दिया और अपने गोधन के रहने योग्य स्थान बना लिया। परीक्षित! वृन्दावन का हरा-भरा वन, अत्यन्त मनोहर गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी के सुन्दर-सुन्दर पुलियों को देखकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी के हृदय में उत्तम प्रीति का उदय हुआ।

राम और श्याम दोनों ही अपनी तोतली बोली और अत्यन्त मधुर बालोचित लीलाओं से गोकुल की ही तरह वृन्दावन में भी ब्रजवासियों को आनन्द देते रहे। थोड़े ही दिनों में समय आने पर वे बछड़े चराने लगे। दूसरे ग्वालबालों के साथ खेलने के लिये बहुत-सी सामग्री लेकर वे घर से निकल पड़ते और गोष्ठ[1] के पास ही अपने बछड़ों को चराते। श्याम और राम कहीं बाँसुरी बजा रहे हैं, तो कहीं गुलेल या ढेलवाँस से ढेले या गोलियाँ फेंक रहे हैं। किसी समय अपने पैरों के घुँघरु पर तान छेड़ रहे हैं तो कहीं बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे हैं। एक ओर देखिये तो साँड़ बन-बनकर हँकड़ते हुए आपस में लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर मोर, कोयल, बन्दर आदि पशु-पक्षियों की बोलियाँ निकाल रहे हैं। परीक्षित! इस प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान साधारण बालकों के समान खेलते रहते।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गायों के रहने के स्थान

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