एक समय की बात है,
नैमिषारण्य में
कुलपति महर्षि शौनक के बारह वर्षो तक चालू रहने वाले
सत्र में जब उत्तम एवं कठोर ब्रह्मर्षिगण अवकाश के समय सुखपूर्वक बैठे थे, सूत कुल को आनन्दित करने वाले लोमहर्षण पुत्र
उग्रश्रवा सौति स्वयं कौतूहलवश उन ब्रह्मर्षियों के समीप बड़े विनीत भाव से आये।