मुनि-नारी पाषान ही -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 5 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> मुनि-नारी पाषान ही, कपि,पशु,गुह मातंग।<br /> त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

मुनि-नारी पाषान ही, कपि,पशु,गुह मातंग।
तीनों तारे रामजू, तीनों मेरे अंग॥

अर्थ

राम ने पाषाणी अहल्या को तार दिया, वानर पशुओं को पार कर दिया और नीच जाति के उस गुह निषाद को भी! ये तीनों ही मेरे अंग-अंग में बसे हुए हैं– मेरा हृदय ऐसा कठोर है, जैसा पाषाण। मेरी वृत्तियां, मेरी वासनाएं पशुओं की जैसी हैं, और मेरा आचरण नीचतापूर्ण है। तब फिर, तुझे तारने में तुम्हे संकोच क्या हो रहा है, मेरे राम!


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख