रहिमन जिव्हा बावरी -रहीम
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
‘रहिमन’ जिव्हा बावरी, कहिगी सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
- अर्थ
क्या किया जाय इस पगली जीभ का, जो न जाने क्या-क्या उल्टी-सीधी बातें स्वर्ग और पाताल तक की बक जाती है। खुद तो कहकर मुहँ के अन्दर हो जाती है, और बेचारे सिर को जूतियाँ खानी पड़ती हैं।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख