सुनासीर सत सरिस सो
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सुनासीर सत सरिस सो
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
सुनासीर सत सरिस सो संतत करइ बिलास। |
- भावार्थ
वह निरंतर सैकड़ों इंद्रों के समान भोग-विलास करता रहता है। यद्यपि (राम-सरीखा) अत्यंत प्रबल शत्रु सिर पर है, फिर भी उसको न तो चिंता है और न डर ही है॥ 10॥
सुनासीर सत सरिस सो |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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