जो नाघइ सत जोजन सागर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg
|चित्र का नाम=रामचरितमानस
|लेखक=
|कवि= गोस्वामी तुलसीदास
|मूल_शीर्षक = रामचरितमानस
|मुख्य पात्र = राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
|कथानक =
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक = गीता प्रेस गोरखपुर
|प्रकाशन_तिथि =
|भाषा =
|देश =
|विषय =
|शैली =सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
|मुखपृष्ठ_रचना =
|विधा =
|प्रकार =
|पृष्ठ =
|ISBN =
|भाग =
|शीर्षक 1=संबंधित लेख
|पाठ 1=दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
|शीर्षक 2=काण्ड
|पाठ 2=किष्किंधा काण्ड
|भाग =
|विशेष =
|टिप्पणियाँ =
}}


<poem>

चौपाई

जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर॥
मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा। राम कृपाँ कस भयउ सरीरा॥1॥

भावार्थ

जो सौ योजन (चार सौ कोस) समुद्र लाँघ सकेगा और बुद्धिनिधान होगा, वही श्री रामजी का कार्य कर सकेगा। (निराश होकर घबराओ मत) मुझे देखकर मन में धीरज धरो। देखो, श्री रामजी की कृपा से (देखते ही देखते) मेरा शरीर कैसा हो गया (बिना पाँख का बेहाल था, पाँख उगने से सुंदर हो गया) !॥1॥


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
जो नाघइ सत जोजन सागर
आगे जाएँ
आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख