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तारा चेरियन (अंग्रेज़ी:Tara Cherian ; जन्म: मई, 1913 मद्रास; मृत्यु: 7 नवम्बर, 2000) एक समाज सेविका थीं। इन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के कारण भारत सरकार ने 1967 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से थीं।

परिचय

तारा चेरियन का जन्म मई, 1913 में मद्रास में हुआ था। इन्होंने वीमेन्ट्र क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया। इनका विवाह मद्रास के गवर्नर के साथ हुआ। इनके 5 बच्चे हुए।

विद्यार्थी जीवन

तारा चेरियन विद्यार्थी जीवन में कभी भी किताबी कीड़ा नहीं बनी रहीं, बल्कि ये कॉलेज के विविध कार्यक्रमों से लेकर खेल-कूद तक में भाग लेती थीं। इनका सदैव यह विश्वास रहा है कि जो अपने जीवन में कोई विशेष उन्नति करना चाहता है, अपने व्यक्तित्व को ठीक-ठीक विकसित करना चाहता है, तो उसे उपलब्ध कार्य-क्रमों में पूरे मन से भाग लेना चाहिए। अपने इसी विश्वास के आधार पर वे अपने कॉलेज की मूर्धन्य कार्यकर्त्री रहीं और अनेक बार मद्रास विश्व विद्यालय के सीनेट की सदस्या चुनी गई। अपनी कुशाग्रता, तत्परता और निःसंकोचता से ये अपने कॉलेज की गौरव बनी रहीं। कॉलेज की प्रत्येक प्रतियोगिता में भाग लेना, प्रत्येक कार्यक्रम में सम्मिलित होना उन्होंने अपना एक नैतिक कर्त्तव्य बना लिया था। अनेक बार प्रतियोगिताओं में असफल होने पर जब कोई उनसे पूछता क्यों तारा, अब आगे की प्रतियोगिता के लिए क्या इरादा है? तो उनका केवल एक ही उत्तर रहता था कि प्रतियोगिता की हार-जीत से प्रभावित होने वाले निर्बल-हृदय व्यक्ति होते हैं। मैं तो प्रत्येक प्रतियोगिता में बुद्धि-विकास के दृष्टिकोण से भाग लेती हूँ, किसी पुरस्कार के लोभ से नहीं।

समाज सेवा

तारा चेरियन के बच्चे जब कुछ बड़े हो गये तो इन्होंने सार्वजनिक कार्यों में अभिरुचि लेना प्रारम्भ किया। सबसे पहले अपनी विद्या, बुद्धि एवं अनुभव के विकास के लिये उन्होंने विदेश यात्रा की। जिसमें वे ब्रिटेन, बर्लिन और सान्फ्राँसिस्को में विशेष रूप से घूमी। अपनी विदेश-यात्रा के समय उन्होंने मनोरंजक स्थानों की अपेक्षा जन-सेवी संस्थाओं को अधिक महत्व दिया। मनोरंजक कार्यक्रमों में भाग लेने के बजाय इन्होंने समाज-सेवा के स्थलों और कार्य-विधियों का गम्भीरता के साथ अध्ययन किया। जिसका लाभ उन्होंने अपनी समाज-सेवाओं में उठाया। विदेशों से वापिस आने पर उनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिये अनेक संस्थाओं ने इन्हें अपने में सम्मिलित करने के लिये आमन्त्रित किया। श्रीमती तारा चेरियन ने पहले ‘एग्मोर’ स्थित महिलाओं और बच्चों के अस्पताल के सलाहकार मण्डल की अध्यक्षा के रूप में पदार्पण किया। अपनी कार्यकुशलता से श्रीमती चेरियन ने संस्था में चार-चाँद लगा दिये। उनका कार्यक्रम अध्यक्ष के कार्यालय तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि वे अस्पताल में प्रत्येक स्त्री-बच्चे के पास स्वयं जातीं, उनका दुःख-सुख पूछतीं और यथासम्भव दूर करने का प्रयत्न करतीं। उन्होंने अस्पताल की कमियों को दूर किया और अपने उदाहरण से कार्यकर्त्ताओं तथा कर्म-चारियों में सच्ची सेवा-भावना का जागरण किया। श्रीमती चेरियन की सहानुभूतिपूर्ण सेवा भावना का ही यह परिणाम है कि वे उक्त अस्पताल के सलाहकार-मण्डल की बीस वर्ष तक अध्यक्षा रहीं।

श्रीमती तारा चेरियन के सेवा कार्यों से प्रभावित होकर ये नगर की संस्था की अध्यक्षा रहीं, तो किसी की मन्त्राणी! निरन्तर सेवा कार्यों में निरत रहने से श्रीमती तारा चेरियन इतनी लोक-प्रिय हो गई कि इन्हे मद्रास की जनता ने नगर-महापालिका का अध्यक्ष मनोनीत किया। महा-नगरपालिका का अध्यक्ष पद सँभालने के दिन से ही श्रीमती तारा चेरियन ने अपने नगर-कल्याण के सेवा-कार्यों में स्वयं को डुबा दिया। वे जब तब नगर का दौरा करतीं, गन्दी और गरीब बस्तियों को देखतीं, उनके सुधार की व्यवस्था करतीं और असहायों को सहानुभूति के साथ सहायता प्रदान करतीं। विकलाँगों की सहायता उनके कार्यक्रम का विशेष अंग है। जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान सेवा है। यह एक समाज-सुधार कार्य होने के साथ धार्मिक पुण्य भी है।

मृत्यु

तारा चेरियन की मृत्यु 7 नवम्बर 2000 को हो गई।