स्वच्छंद -सुमित्रानन्दन पंत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 1 अगस्त 2017 का अवतरण (Text replacement - " प्रवृति " to " प्रवृत्ति ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
स्वच्छंद -सुमित्रानन्दन पंत
स्वच्छंद का आवरण पृष्ठ
स्वच्छंद का आवरण पृष्ठ
कवि सुमित्रानन्दन पंत
मूल शीर्षक स्वच्छंद
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
ISBN 81-267-0092-0
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
प्रकार काव्य संकलन
विशेष सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित 'स्वच्छंद' एक कविता संग्रह है। यह संग्रह पंतजी की जन्मशती के अवसर पर निकाला गया था।

स्वच्छंद हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तम्भों में से एक सुमित्रानन्दन पंत की रचना है। सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित 'स्वच्छंद' एक कविता संग्रह है। इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन' द्वारा किया गया था। कवि सुमित्रानन्दन पंत की जन्मशती के अवसर पर निकाले गये इस संचयन को 'स्वच्छंद' कहने के पीछे सिर्फ़ हिन्दी की स्वच्छन्तावादी काव्य धारा को उसके बाद एक प्रमुख स्थगित के माध्यम से अनुगुँजित करना अभीष्ट नहीं है। अभीष्ट यह भी है कि हिन्दी भाषा और कविता को अपना जातीय छन्द देने में पन्तजी की भूमिका को कृतज्ञतापूर्वक याद किया जाना चाहिए।

पुस्तक अंश

सुमित्रानन्दन पंत का काव्य-संसार अत्यंत विस्तृत और भव्य है। प्रायः काव्य-रसिकों के लिए इसके प्रत्येक कोने-अँतरे को जान पाना कठिन होता है। पंतजी की काव्य-सृष्टि में किसी भी श्रेष्ठ कवि की तरह ही, स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठता के शिखरों के दर्शन होते हैं, नवीन काव्य-भावों के अभ्यास का ऊबड़-खाबड़ निचाट मैदान भी मिलता है और अवरुद्ध काव्य-प्रसंगों के गड्ढे भी। किन्तु किसी कवि के स्वभाव को जानने को लिए यह आवश्यक होता है कि यत्नपूर्वक ही नहीं, रुचिपूर्वक भी उसके काव्य-संसार की यात्रा की जाए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पंतजी के बारे में लिखा कि आरम्भ में उनकी प्रवृत्ति इस जग-जीवन से अपने लिए सौंदर्य का चयन करने की थी, आगे चलकर उनकी कविताओं में इस सौंदर्य की संपूर्ण मानव जाति तक व्याप्ति की आकांक्षा प्रकट होने लगी। प्रकृति प्रेम, लोक और समाज-विषय कोई भी हो, पंत-दृष्टि हर जगह उस सौंदर्य का उद्घाटन करना चाहती है, जो प्रायः जीवन से बहिष्कृत रहता है। वह उतने तक स्वयं को सीमित नहीं करती, उस सौंदर्य को एक मूल्य के रूप में अर्जित करने का यत्न करती है।

पंतजी की काव्य संपदा

सुमित्रानन्दन पंत की जन्मशती के अवसर पर उनकी विपुल काव्य-संपदा से एक नया संचयन तैयार करना पंतजी के बाद विकसित होती हुई काव्य-रुचि का व्यापक अर्थ में अपने पूर्ववर्ती के साथ एक नए प्रकार का संबंध बनाने का उपक्रम है। यह चयन पंतजी के अंतिम दौर की कविताओं के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमता, जो काल की दृष्टि से हमारे अधिक निकट है, बल्कि उनके बिलकुल आरंभ काल की कविताओं से लेकर अंतिम दौर तक की कविताओं के विस्तार को समेटने की चेष्टा करता है। चयन के पीछे पंतजी को किसी राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा, किसी नई नैतिक-दार्शनिक दृष्टि जैसे काव्य-बाह्म दबाव में नए ढंग से प्रस्तुत करने की प्रेरणा नहीं है। यह एक नई शताब्दी और सहस्राब्दी की उषा वेला में मनुष्य की उस आदिम साथ ही चिरनवीन सौंदर्याकांक्षा का स्मरण है, पंतजी जैसे कवि जिसे प्रत्येक युग में आश्चर्यजनक शिल्प की तरह गढ़ जाते हैं।

किसी कवि की जन्मशती के अवसर पर परवर्ती पीढ़ी की इससे अच्छी श्रद्धाजंलि क्या हो सकती है कि वह उसे अपने लिए सौंदर्यात्मक विधि से समकालीन करे। पंत-शती के उपलक्ष्य में उनकी कविताओं के संचयन को 'स्वच्छंद' कहने के पीछे मात्र सुमित्रानन्दन पंत की नहीं, साहित्य मात्र की मूल प्रवृत्ति की ओर भी संकेत है। संचयन में कालक्रम के स्थान पर एक नया अदृश्य क्रम दिया गया है, जिसमें कवि-दृष्टि, प्रकृति, मानव-मन, व्यक्तिगत जीवन, लोक और समाज के बीच संचरण करते हुए अपना एक कवि-दर्शन तैयार करती है। 'स्वच्छंद' के माध्यम से पंतजी के प्रति विस्मरण का प्रत्याख्यान तो है ही, इस बात को नए ढंग से चिह्नित भी करना है कि जैसे प्रकृति का सौंदर्य प्रत्येक भिन्न दृष्टि के लिए विशिष्ट है, वैसे ही कवि-संसार का सौंदर्य भी अशेष है, जिसे प्रत्येक नई दृष्टि अपने लिए विशिष्ट प्रकार से उपलब्ध करती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख