तस्बीह
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तस्बीह भारत, पाकिस्तान और फ़ारस के इस्लाम धर्मावलंबियों द्वारा ख़ुदा के 99 नामों के स्मरणार्थ उपयोग में आने वाली साधारणत: 99 गुरियों की माला या सुमिरनी है। इसकी अंतिम गुरिया जिसे हिन्दू माला में 'सुमेरु कहते हैं, 'इमाम' कहलाती है जो 'अल्लाह' के नामजप के लिये प्रयुक्त होती है।[1]
- तस्बीह में तीन भाग होते हैं और प्रत्येक के 33 दाने रंग तथा आकार-प्रकार में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त 101 और 33 गुरियों की तस्बीह भी काम में आती है।
- इसके सहारे ख़ुदा के नामों का स्मरण, 'तस्बीह' और 'तहमीद' का जप सबाब (पुण्य) देता तथा गुनाह (पाप) का क्षय करता है।
- तस्बीह में अनेक पदार्थों के दाने उपयोग में आते हैं। काठ की मनियाँ प्राय: सभी संप्रदायों में प्रयुक्त होती हैं। मक्का के बने मिट्टी के दाने अत्याधिक मूल्यवान समझे जाते हैं। हज को जाने वाले तीर्थयात्री बहुधा इसे लाते हैं।
- शिया लोग कर्बला की मिट्टी से बने दानों को अत्यधिक महत्व देते हैं।
- अरब के सुन्नी भारत में भाँग के बीज की बनी गुरिया उपयोग में लाते हैं। इसके अतिरिक्त ऊँट की हड्डी, खजूर की गुठली तथा कीमती पत्थर भी काम में आते हैं।
- फ़कीर लोग शीशे की विभिन्न रंगों की गुरिया पिरोकर तस्वीर बनाते हैं।
- इस्लाम धर्म में तस्बीह के प्रचलन का इतिहास अनिश्चित है। कहते हैं, बौद्ध धर्म के प्रभाव स्वरूम इसका प्रचलन हुआ, किंतु प्राचीन साहित्य में इसकी आदिम परंपरा के संकेत इस मत को अमान्य ठहराने के लिये पर्याप्त हैं। ई. पू. 9वीं शताब्दी की एक परंपरा के अनुसार सौ-सौ तकबीर, तहलील और तस्बीह की गणना के लिये पत्थरों का उपयोग किया जाता था।
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