सन्न्यासी और एक चूहे की कहानी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण (Text replacement - "स्वरुप" to "स्वरूप")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

सन्यासी और एक चूहे की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।

कहानी

गौतम महर्षि के तपोवन में महातपा नामक एक मुनि था। वहाँ उस मुनि ने कौऐ से लाये हुए एक चूहे के बच्चे को देखा। फिर स्वभाव से दयामय उस मुनि ने तृण के धान्य से उसको बड़ा किया। फिर बिलाव उस चूहे को खाने के लिए दौड़ा। उसे देख कर चूहा उस मुनि की गोद में चला गया। फिर मुनि ने कहा कि, हे चूहे, तू बिलाव हो जाए। फिर वह बिलाव कुत्ते को देखकर भागने लगा। फिर मुनि ने कहा -- तू कुत्ते से डरता है ? जा तू भी कुत्ता हो जा। बाद में वह कुत्ता बाघ से डरने लगा। फिर उस मुनि ने उस कुत्ते को बाघ बना दिया।

वह मुनि, उस बाघ को,"" यह तो चूहा है, यही समझता और देखता था। उस मुनि को और व्याघ्र को देखकर लोग कहा करते थे कि इस मुनि ने इस चूहे को बाघ बना दिया है। यह सुन कर बाघ सोचेन लगा -- जब तक यह मुनि जिंदा रहेगा, तब तक यह मेरा अपयश करने वाले स्वरूप की कहानी नहीं मिटेगी। यह विचार कर चूहा उस मुनि को मारने के लिए चला, फिर मुनि ने यह जान कर, फिर चूहा हो जा, यह कह कर उसे पुनः चूहा बना दिया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख