मार्गशीर्ष

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मार्गशीर्ष
राम, लक्ष्मण और सीता
राम, लक्ष्मण और सीता
विवरण मार्गशीर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवाँ माह है। इस माह को अगहन भी कहा जाता है।
अंग्रेज़ी नवम्बर-दिसम्बर
हिजरी माह मुहर्रम - सफ़र
व्रत एवं त्योहार विहार पंचमी, मोक्षदा एकादशी, कालाष्टमी
जयंती एवं मेले अन्नपूर्णा जयन्ती
पिछला कार्तिक
अगला पौष
विशेष सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया।
अन्य जानकारी मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी अर्थात विहार पंचमी के दिन ही त्रेता युग में सीता-राम का विवाह हुआ था। मिथिलाचंल और अयोध्या में यह तिथि 'विवाह पंचमी' के नाम से प्रसिद्ध है।

मार्गशीर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवाँ माह है। इस माह को 'अगहन' भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है। मास भर प्रात:काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा कीर्तन करती हुई निकलती हैं। 'गीता'[1] में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है- मासानां मार्गशीर्षोऽयम्सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था। इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की थी। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए।

नामकरण

अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं? इस मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं जिसमें से एक है मृगशिरा। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है।

महत्त्व

  • भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि- "सभी माह में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है।" मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
  • श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि- "मार्गशीर्ष माह में यमुना में स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा।" तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।
  • मार्गशीर्ष माह में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए। स्नान के समय 'ॐ नमो नारायणाय' या 'गायत्री मंत्र' का जप करना चाहिए।[2]

धार्मिक क्रियाकलाप

  • मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को उपवास प्रारम्भ कर प्रतिमास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।
  • प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।[3]
  • मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था।
  • इस दिन गौओं का नमक दिया जाए तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए।
  • इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए।
  • मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनायी जानी चाहिए।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता (10.35
  2. अगहन मास को मार्गशीर्ष क्यों कहते हैं (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 18 नवम्बर, 2017।
  3. अनुशासन, अध्याय 10-, बृ. सं. 104.14-16
  4. कृत्यकल्पतरु का नैत्य कालिक काण्ड, 432-33; कृत्यरत्नाकर, 471-72

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