घोड़े का परिचय

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हाथी और ऊँट की भांति घोड़ा भी उपयोगी पशु है। संस्कृत में इसे 'अश्व' और अंग्रेज़ी में 'हॉर्स' (Horse) कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली जानवर है। इसे सवारी के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्राचीन काल में घोड़ा राजा-महाराजाओं की सेना का प्रमुख अंग था। उनके रथों में इसका उपयोग होता था। घोड़े का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। विवाहोत्सव और धार्मिक जलूसों में सजे-धजे घोड़ों को देखकर उत्साह का संचार हो जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जयंती, महाराणा प्रताप जयंती और रामनवमी के शुभ अवसर पर सुसज्जित अश्व भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं।

सामान्य परिचय

घोड़े का वैज्ञानिक नाम ईक्वस[1] लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरी छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस[2] है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जाते हैं। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापित करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्हीं पालतू घोड़ों के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते हैं। यद्यपि कुछ लोग मध्य एशिया के पश्चिमी मंगोलिया और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलने वाले ईक्वस प्रज्वेलस्की[3] नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते हैं, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजों में से है।

आवास

दक्षिणी अमरीका के जंगलों में आज भी घोड़े बृहत्‌ झुंडों में पाए जाते हैं। एक झुंड में एक नर और कई मादाएँ रहती हैं। सबसे अधिक 1,000 तक घोड़े एक साथ एक जंगल में पाए गए हैं। परंतु ये सब घोड़े ईक्वस कैबेलस के ही जंगली पूर्वज हैं और एक घोड़े को नेता मानकर उसकी आज्ञा में अपना सामाजिक जीवन व्यतीत करते हैं। एक गुट के घोड़े दूसरे गुट के जीवन और शांति को भंग नहीं करते। संकटकाल में नर चारों तरफ से मादाओं को घेर खड़े हो जाते हैं और आक्रमणकारी का सामना करते हैं। एशिया में काफ़ी संख्या में इनके ठिगने क़द के जंगली संबंधी 50 से लेकर कई सौ तक के झुंडों में मिलते हैं। मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार उन्हें पालतू बनाता रहता है।

बनावट और रंग-रूप

संसार के वास्तविक जंगली घोड़े ईक्वस प्रज़्वलेस्की का नाम रूसी यात्री, कर्नल एन. एम. प्रज़्वेलस्की के नाम पर रखा गया है, क्योंकि इन्हें एक जंगली घोड़ा एक अधिकारी ने जैसान (Zaisan) में भेंट किया था। यह वर्तमान घोड़े और घोड़-खर के बीच का जानवर था। इसकी चारों टाँगों पर घोड़े के समान 'चेस्टनट'[4] थे, परंतु घोड़-खर के समान केवल इसकी पूँछ के निचले भाग पर लंबे बाल थे। शरीर का रंग बादामी[5] था और पीठ पर पीलापन। पिछले हिस्से पर और हल्का रंग था, जो उदर पर बिल्कुल सफ़ेद हो गया था। शरीर पर कोई काली पट्टी नहीं थी। गर्दन पर छोटे और सीधे बाल थे, किंतु कानों के बीच और माथे पर न थे। खोपड़ी और खुर घोड़े के समान थे। कोबडो[6] ज़िले में 20 वर्ष बाद बहुत से इसी प्रकार के बच्चे मंगोलिया से मिले थे। उसके बाद भी इस प्रकार के जंगली घोड़े कई बार मिल चुके हैं। कहा जाता है कि हिमयुग के अंत तक अमरीका से सारे घोड़े समाप्त होकर प्राय: लुप्त हो गए। यही नहीं, इस काल में रहने वाले अन्य अनेक बड़े बड़े जानवर भी किसी अज्ञात कारण से लुप्त हो गए। यूरेशिया में भी हिमयुग में जंगली घोड़े पर्याप्त संख्या में थे, परंतु आज एशिया के स्टेप्स[7] में प्रज़्वेलस्की घोड़े के अतिरिक्त कोई वास्तविक जंगली घोड़ा नहीं मिलता। टट्टू नाम के ठिगने घोड़े, जो आज भारत और एशिया के अन्य भागों में मिलते हैं, सब पालतू घोड़े के पूर्वज है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Equus
  2. Equus caballus
  3. Equus przwalski
  4. chestnut
  5. अरुण
  6. Kobdo
  7. steppes

बाहरी कड़ियाँ

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