कनिंघम

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कनिंघम
पूरा नाम अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम
जन्म 23 जनवरी, 1814
मृत्यु 18 नवम्बर, 1893
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पुरातत्त्व अन्वेषक
प्रसिद्धि 'भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण के पिता'
अन्य जानकारी कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई ग्रंथ भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है।

अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम (अंग्रेज़ी: Alexander Cunningham, जन्म- 23 जनवरी, 1814; मृत्यु- 18 नवम्बर, 1893) को "भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण का पिता" कहा जाता है। कॅनिंघम एक ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री तथा सेना में अभियांत्रिक पद पर नियुक्त थे। इनके दोनों भाई फ़्रैन्सिस कॅनिंघम एवं जोसफ़ कॅनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे।

भारत आगमन

1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह ब्रिटेन से भारत आये थे, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में बर्मा (वर्तमान म्यांमार) और पश्चिमोत्तर प्रांत के मुख्य अभियंता रहे। वर्ष 1861 ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह पुरातत्त्व के काम में लग गये तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र के अधिकारी विद्वान् माने जाने लगे।

खुदाई का कार्य

कॅनिंघम ने मथुरा, उत्तर प्रदेश में वर्ष 1871 और 1882-1883 में खुदाई का कार्य कराया। सर अलेक्जंडर कनिंघम ने भारत के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में 1870 से 1885 ई. तक काम किया। उनकी रुचि विविध विषयों में थी।

लेखन

कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई ग्रंथ भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है। जनरल एलेक्जेंडर कॅनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय यह माना कि क्लीसीबोरा नाम वृन्दावन के लिए है। इसके विषय में उन्होंने लिखा है कि कालिय नाग के वृन्दावन निवास के कारण यह नगर `कालिकावर्त' नाम से जाना गया। यूनानी लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे `कालिसोबोर्क' या `कालिकोबोर्त' मानते हैं। उन्हें 'इंडिका' की एक प्राचीन प्रति में `काइरिसोबोर्क' पाठ मिला, जिससे उनके इस अनुमान को बल मिला।[1] परंतु सम्भवतः कनिंघम का यह अनुमान सही नहीं है।

कॅनिंघम ने अपनी 1882-1883 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'[2] माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है। केशव या श्रीकृष्ण का जन्म स्थान होने के कारण यह स्थान 'केशवपुरा' कहलाता है।

पुरस्कार व सम्मान

कॅनिंघम को इनके योगदानों के लिए 20 मई, 1870 को 'ऑर्डर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया' (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में 1878 में इन्हें 'ऑर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर' से भी सम्मानित किया गया। 1887 में इन्हें 'नाइट कमांडर ऑफ़ इंडियन एंपायर' घोषित किया गया।

कॅनिंघम का मत

कॅनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवार के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा। कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी।[3] जनरल कॅनिंघम का यह मत विचारणीय है। यह कहा जा सकता है कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख पुराणों या अन्य सहित्य में अवश्य होता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखिए कनिंघम्स ऎंश्यंट जिओग्रफी आफ इंडिया (कलकत्ता 1924) पृ0 429।
  2. लैसन ने भाषा-विज्ञान के आधार पर क्लीसोबोरा का मूल संस्कृत रूप `कृष्णपुर' माना है। उनका अनुमान है कि यह स्थान आगरा में रहा होगा। (इंडिश्चे आल्टरटुम्सकुण्डे, वॉन 1869, जिल्द 1, पृष्ठ 127, नोट 3।
  3. कनिंघम-आर्केंओलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऐनुअल रिपोर्ट, जिल्द 20 (1882-83), पृ0 31-32।

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