जीवाश्म
किसी समय पृथ्वी पर जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं, उन्हें जीवाश्म (अंग्रेज़ी: Fossil) कहते हैं। इनके अध्ययन को 'जीवाश्म विज्ञान' या पैलेन्टोलॉजी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाश्मों के निरीक्षण से पता चलता है कि पृथ्वी पर अलग-अलग कालों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जन्तु हुए हैं। जीवाश्मों की सहायता से हम यह पता लगा सकते हैं कि किस स्थान पर डेल्टा, पर्वत, नदी, समुद्रतट, छिछले अथवा गहरे समुद्र थे। जीवाश्म की उपस्थिति के कारण मृदा में उर्वरा शक्ति होती है। जिस मृदा में जीवाश्म पर्याप्त मात्रा में होते हैं, वह अधिक उपजाऊ होती है।
अर्थ
- जीवाश्म शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘जीव’ तथा ‘अश्म’। अश्म का अर्थ होता है- पत्थर। इस प्रकार जीवाश्म का अर्थ हुआ 'वह जीव जो पत्थर बन गया'। अंग्रेज़ी में जीवाश्म को फॉसिल कहा जाता है। ‘फॉसिल’ लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- 'जमीन खोदकर निकाला गया पदार्थ'।
- शुरुआत में जीवाश्म शब्द उन सभी पदार्थों के लिए उपयोग में लाया जाता था जो भू-सतह को खोदकर निकाले जाते थे। इनमें शामिल थे खनिज, मानव निर्मित पुरातन औजार, पत्थर तथा प्राचीन पौधों एवं जंतुओं के अवशेष। लेकिन धीरे-धीरे जीवाश्म शब्द सिर्फ पौधों एवं जंतुओं के पुरावशेषों के लिए ही सीमित रह गया। ये अवशेष तलछटी चट्टानों में ही पाए जाते हैं लेकिन कभी-कभी ये दलदल, बालू तथा बर्फ में भी मिलते हैं।
- भू-सतह के नीचे असंख्य जीवाश्म दबे पड़े हैं। कुछ चट्टानें जैसे- चूना पत्थर तथा खड़िया प्राय: असंख्य छोटे-छोटे जीवाश्मों से निर्मित रहती हैं। खनिज कोयला जीवाश्मित वनस्पतियों का संगठित रूप है। इसी प्रकार से खनिज तेल पुराने मृत सूक्ष्मजीवियों का परिवर्तित रूप है। इसीलिए इन्हें जीवाश्म ईंधन कहते हैं।
सूचक जीवाश्म
जीवाश्म वैज्ञानिकों के मतानुसार प्रत्येक भूगर्भीय काल के दौरान कुछ विशिष्ट प्रकार के जंतु या पौधे पाए जाते हैं और इनके जीवाश्म एक भूगर्भ स्तंभ में किसी भी शैल स्तर के काल का ज्ञान कराते हैं। इस प्रकार के जीवाश्म जो किसी विशेष काल की चट्टान में ही पाए जाते हैं सूचक जीवाश्म कहे जाते हैं।
किसी भी जीव पर उसके पर्यावरण की छाप अवश्य पाई जाती है। अत: जीवाश्मों से उस काल के पर्यावरण का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। कुछ जीवाश्मों के वितरण के अध्ययन से अतीत में थल तथा समुद्र के वितरण, धाराओं की दिशा, तथा प्राचीन जीवों के प्रजनन वगैरह का अनुमान लगाया जा सकता है। अत: जीवाश्म प्राचीन काल के भूगोल की उपयोगी जानकारी भी प्रदान कर सकते हैं।
निर्माण
एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि, जीवाश्म निर्मित कैसे होते हैं? मृत जीव सड़कर प्राय: नष्ट हो जाते हैं। लेकिन जीवाश्म किसी मृत जीव का ऐसा अवशेष है जो सड़कर नष्ट नहीं हो सका। सड़ने की क्रिया कई कारणों से धीमी हो सकती है या बिलकुल रुक भी सकती है। जीवश्म के निर्माण या परिरक्षण की विधि जंतु या वनस्पति की प्रकृति, उसकी जीवन शैली, तथा उसके मरने तथा सड़ने की परिस्थिति पर निर्भर करती है। जीवाश्म-निर्माण के लिए दो बातें आवश्यक हैं-
- जीव के शरीर में कड़े अंश की उपस्थिति
- मरणोपरांत अविलम्ब तलछट से ढंक जाना
कड़े कवच वाले जीवों के जीवाश्मित होने की संभावना कवच विहीन या कंकाल विहीन जीवों की अपेक्षा अधिक है। इसी प्रकार जो जीव दलदल में दब जाता है उसके जीवाश्मित होने की संभावना खुले मैदान में मरने वाले जीव से अधिक है। इसका कारण यह है कि खुले मैदान में बैक्टीरिया द्वारा मृत जीव के शरीर का नष्ट होना निश्चित है। चूंकि जीवाश्म तलछट के अंदर बनते हैं, इसलिए अधिकांश जीवाश्मों का निर्माण छिछले पानी के नीचे होता है, जहां तलछट शीघ्रतापूर्वक तथा लंबे समय तक लगातार जमा होती रहती है।
प्राप्ति स्थान
जीवाश्म प्राय: समुद्र के नीचे जमीन से सटे हुए स्थानों या नदियों के मुहानों पर बनते हैं। यहां जीवों के अवशेष या तो पानी के साथ बहकर आते हैं या फिर उसी स्थान पर जीवों के मरने से प्राप्त होते हैं। थलचर जीवों के अवशेष प्राय: नदियां या झीलों में निर्मित तलछटी चट्टानों में पाए जाते हैं। अकशेरुकी जीवों के खोल ज्ञात जीवाश्मों में सबसे अच्छी स्थिति में मिले हैं। इनके जीवाश्मित होने की विधि एक ही तरह की है। इन जीवों का तलछट में दबा हुआ खोल उस समय कई प्रकार के परिवर्तनों के दौर से गुजरता है जब उसके चारों ओर का सांचा पत्थर के रूप में जमता जाता है। धीरे-धीरे बहता हुआ भूमिगत जल जीवन के खोल को पूरी तरह घोल देता है तथा उसके स्थान पर एक रिक्त स्थान या सांचा बना रह जाता है। यह सांचा मूल खोल के आकार तथा उसकी सतह के चिह्नों को पूर्णत: सुरक्षित रूप से दर्शाता है। यदि कुछ समय के बाद सांचे का यह रिक्त स्थान खनिजों से भर जाता है तो मूल खोल का ढांचा बन जाता है।
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