हेईग्रु हिडोंगबा

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हेईग्रु हिडोंगबा (अंग्रेज़ी: He।gru H।dongba) मणिपुर के मैतेई समुदाय का एक प्राचीन त्योहार है। यह त्योहार सितंबर महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार आनंद का उत्सव है जिसका धार्मिक महत्व भी है। नाव दौड़ इस लोकप्रिय त्योहार का एक अभिन्न अंग है। दौड़ शुरू होने से पहले विष्णु की मूर्ति स्थापित की जाती है।

इतिहास

मणिपुर में यह त्योहार राजर्षि भाग्यचंद्र से बहुत पहले से मनाया जा रहा था। यह ‘सनमही पखंगबा’ की पूजा से संबंधित उत्सव था। उत्सव का कोई निश्चित दिन नहीं था। जिस दिन से राजर्षि भाग्यचंद्र ने अपने चाचा नोंगपोक लेईरीखोम्बा (अनंतसई) के साथ श्री बिजय गोविंद की उपासना शुरू की, उस अवसर को यादगार बनाने के लिए हेईग्रु हिडोंगबा का भव्य उत्सव आरंभ किया। यह निर्णय लिया गया कि अगले वर्ष से यह उत्सव मनाया जाएगा। तब से यह त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया जाता है।[1]

बदलाव

मेइडिंग-यू इरेंगा के समय से इस त्योहार के आयोजन में कई बदलाव हुए हैं। राजर्षि भाग्यचंद्र ने प्राचीन मैतेई पारंपरिक तत्वों के साथ वैष्णववाद के तत्वों जैसे - पूजा, फल-फूल अर्पण, संकीर्तन, शंख ध्वनि आदि का मिश्रण किया और नाव पर चढ़ने के बाद श्री बिजय गोविंद की आरती की। हेईग्रु हिडोंगबा के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक नौका दौड़ का शानदार दृश्यांकन है।

नौका दौड़

दौड़ शुरू होने से पहले खबक लकपा नाव (एक साथ बंधी दो नावें) में सवार होकर श्री बिजय गोविंदा जुलूस में जाते हैं जिसे ‘लाई लमयेंगबा’ के नाम से जाना जाता है। श्री बिजय गोविंद को फल, फूल अर्पित किया जाता है और उनकी आरती की जाती है। जुलूस के बाद श्री बिजय गोविंद को ले जाने वाली नाव पूर्व की ओर जाती है। यहाँ प्रत्येक टीम का नेता नाव पर आकर देवता को प्रसाद अर्पित करता है। संक्षिप्त विश्राम के बाद नौकाओं को दौड़ क्षेत्र में लाया जाता है और दौड़ शुरू होती है।[1]

नाव की दौड़ से एक दिन पहले सुबह के समय प्रत्येक टीम का नेतृत्व करने वाले दो व्यक्ति एक कंटेनर में चांदी और सोने से बने सामान डालते हैं और इसे श्री बिजय गोविंदा को भेंट करते हैं। इससे यह प्रदर्शित किया जाता है कि सभी लोग ब्रह्मांड के सर्वोच्च स्वामी के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। ये मैतेई परंपरा में पूजा के प्राचीन तरीके हैं। दौड़ के दिन एक सौ आठ हेईक्रू से बनी एक माला और एक सौ आठ चावल के दानों से बनी दूसरी माला श्री बिजय गोविंदा को अर्पित की जाती है और फिर उन्हें दो नावों पर रखा जाता है। कौन सी माला किस नाव पर रखी जाएगी, यह पंडितों द्वारा दौड़ के दिन तय किया जाता है। जब दौड़ का विजेता घोषित किया जाता है तो यह घोषणा की जाती है कि या तो हेईक्रू परेंग टीम या चेंग परेंग टीम की जीत हुई है। चेंग परेंग का महत्व यह दर्शाना है कि जिस ईश्वर ने हमें अन्न दिया है, वह अन्न बदले में उसे वापस दिया जा रहा है। चेंग परेंग व्यक्ति की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मणिपुर के पर्व–त्योहार (हिंदी) apnimaati.com। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2021।

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