रहमान राही

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अब्दुर रहमान राही (अंग्रेज़ी: Abdur Rehman Rahi, जन्म- 6 मई, 1925) कश्मीरी कवि, अनुवादक और आलोचक हैं। उन्हें उनके कविता संग्रह 'नवाज़-ए-सबा' के लिए साल 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वहीं वर्ष 2004 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया।

परिचय

6 मई, 1925 को जन्मे रहमान राही का मूल नाम 'अब्दुर रहमान' है। वह कश्मीर विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण करने के बाद स्वतंत्र लेखन कर रहे है। एक पत्रकार के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले राही पहले उर्दू में लिखते रहे। बाद में उन्होंने अपनी मातृभाषा कश्मीरी में लिखना शुरू किया। रहमान पिछले पाँच दशकों से कश्मीरी भाषा में अपना साहित्यिक सृजन करते आए हैं और इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण और विशिष्ट रचनाएं लिखी हैं। वह लगभग 700 वर्ष पुरानी कश्मीरी भाषा में अपना साहित्यिक योगदान देते रहे हैं। रहमान कवि हैं और अपनी कविताओं के माध्यम से भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाते रहे हैं।

प्रमुख कृतियाँ

अब्दुर रहमान राही की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-

नवरोज़े सबा, सनवन्य साज़ सुबहुक सोंदा, कलामेराही, सियाह रूद् जर्पन मंज़ (कविता); कहवॅट, शारशिनॉसी, बज़नुक सूरते हाल (आलोचना); बाबा फरीद, फरमोव ज़रथुस्थन, सबा-ए-मुलाकात, फाउस्टस (अनुवाद); संगलाब, ऑज़िच कॉशिर शॉयरी, कॉशिर शार सोंबरन (संपादित); त्रिभाषा कोश, उर्दू-कश्मीरी फरहंग (सह संपादित शब्दकोश)।

ज्ञानपीठ पुरस्कार

कश्मीर के दुख-दर्द को अपनी कलम से बयां करने वाले कवि, आलोचक अब्दुर रहमान राही को 40वें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से नवाजा गया है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद भवन के बालयोगी सभागार में राही को एक गरिमापूर्ण एवं भव्य समारोह में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया। उनका चयन ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता उड़िया कवि सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता वाली जूरी ने किया था। मनमोहन सिंह ने पुरस्कार में राही को पांच लाख रुपये का चैक, वाग्देवी की एक प्रतिमा तथा प्रशस्ति पत्र एवं शाल प्रदान किया। अब्दुर रहमान राही यह पुरस्कार पाने वाले पहले कश्मीरी लेखक हैं।

अब्दुर रहमान राही को पद्म श्री भी मिल चुका है। उन्हें साहित्य अकादमी का फैलो भी बनाया गया है जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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