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लिखने के लिए यदा-कदा कपड़े का भी इस्तेमाल हुआ है। अल्बेरूनी (973-1048 ई.) लिखते हैं कि, [[काबुल]] के [[शाहियावंशी]] राजाओं की रेशम के कपड़े पर लिखी हुई वंशावली नगरकोट के क़िले में होने की उन्हें जानकारी मिली थी, मगर वे उसे देख नहीं पाए।  
 
लिखने के लिए यदा-कदा कपड़े का भी इस्तेमाल हुआ है। अल्बेरूनी (973-1048 ई.) लिखते हैं कि, [[काबुल]] के [[शाहियावंशी]] राजाओं की रेशम के कपड़े पर लिखी हुई वंशावली नगरकोट के क़िले में होने की उन्हें जानकारी मिली थी, मगर वे उसे देख नहीं पाए।  
 
==चर्मपट का प्रयोग==
 
==चर्मपट का प्रयोग==
जब [[मिस्र]] से पेपीरस-[[काग़ज़]] मिलना कठिन हो गया, तो [[यूनानी|यूनानियों]] ने ई.पू. दूसरी सदी से चर्मपट पर लिखना शुरू कर दिया था। पश्चिम [[एशिया]] और [[यूरोप]] में मध्यकाल तक लिखने के लिए चर्मपट का काफ़ी इस्तेमाल हुआ। मगर [[भारत]] में लेखन-सामग्री के रूप में चर्मपट का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है। अल्बेरूनी लिखते हैं कि "प्राचीन के यूनानियों की तरह भारत में चर्म पर लिखने का प्रचलन नहीं है।" कुछ [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] ग्रन्थों में लिखने के लिए चमड़े के उपयोग के उल्लेख मिलते हैं।  
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जब [[मिस्र]] से पेपीरस-[[काग़ज़़]] मिलना कठिन हो गया, तो [[यूनानी|यूनानियों]] ने ई.पू. दूसरी सदी से चर्मपट पर लिखना शुरू कर दिया था। पश्चिम [[एशिया]] और [[यूरोप]] में मध्यकाल तक लिखने के लिए चर्मपट का काफ़ी इस्तेमाल हुआ। मगर [[भारत]] में लेखन-सामग्री के रूप में चर्मपट का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है। अल्बेरूनी लिखते हैं कि "प्राचीन के यूनानियों की तरह भारत में चर्म पर लिखने का प्रचलन नहीं है।" कुछ [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] ग्रन्थों में लिखने के लिए चमड़े के उपयोग के उल्लेख मिलते हैं।  
 
==लेख प्रमाण==
 
==लेख प्रमाण==
 
सुबंधु (600 ई.) की कृति वासवदत्ता की एक उपमा से पता चलता है कि लिखने के लिए [[बाघ]] या चीते की खाल (संस्कृत में ‘अजन’) का प्रयोग होता था। मध्य-[[एशिया]] के कुछ स्थलों से चमड़े पर लिखे हुए लेख मिले हैं।
 
सुबंधु (600 ई.) की कृति वासवदत्ता की एक उपमा से पता चलता है कि लिखने के लिए [[बाघ]] या चीते की खाल (संस्कृत में ‘अजन’) का प्रयोग होता था। मध्य-[[एशिया]] के कुछ स्थलों से चमड़े पर लिखे हुए लेख मिले हैं।

14:05, 26 जनवरी 2011 का अवतरण

प्राचीन भारत में लिखने के लिए सूती कपड़े के खण्ड संस्कृत में ‘पट’ का भी काफ़ी इस्तेमाल हुआ है। सिकन्दर के नौसेनाध्यक्ष नियार्कस (ईसा पूर्व चौथी सदी) का उल्लेख है कि, भारतीय लोग अच्छी तरह कूटे गए कपास के कपड़े पर पत्र लिखते थे।

लिखने का कपड़ा

लिखने वाले कपड़े के छिद्रों को बन्द करने के लिए आटा, चावल या मांड या लेई अथवा पिघला हुआ मोम लगाकर परत सुखा लेते थे और फिर अकीक, पत्थर या शंख आदि से घोटकर उसे चिकना बनाते थे। उसके बाद लिखने या चित्र बनाने के लिए उस पर कार्पासिक पट का उपयोग किया जाता था। आमतौर पर ऐसे पटों का उपयोग पूजा-पाठ के यंत्र-मंत्र लिखने के लिए होता था।

पट तैयार करना

पुराने समय में कपड़े के पटों पर पंचांग लिखे जाते थे और जन्म कुंडलियाँ भी बनाई जाती थीं। राजस्थान से पटों वाले ऐसे पंचांगों की कई कुंडलियाँ प्राप्त हुई हैं। केरल और कर्नाटक के इलाकों में इमली के बीजों के चूरे की लेई बनाकर उसे कपड़े पर लगाया जाता था। सूख जाने पर उसे लकड़ी के कोयले से काला कर दिया जाता था। तब व्यापारी लोग सफ़ेद खड़िया से उस काले पट पर अपना हिसाब-किताब लिखते थे। श्रृंगेरी मठ से ऐसी कई बहियाँ, जिन्हें कडितम् कहते थे, मिली हैं।

अल्बेरूनी का कथन

लिखने के लिए यदा-कदा कपड़े का भी इस्तेमाल हुआ है। अल्बेरूनी (973-1048 ई.) लिखते हैं कि, काबुल के शाहियावंशी राजाओं की रेशम के कपड़े पर लिखी हुई वंशावली नगरकोट के क़िले में होने की उन्हें जानकारी मिली थी, मगर वे उसे देख नहीं पाए।

चर्मपट का प्रयोग

जब मिस्र से पेपीरस-काग़ज़़ मिलना कठिन हो गया, तो यूनानियों ने ई.पू. दूसरी सदी से चर्मपट पर लिखना शुरू कर दिया था। पश्चिम एशिया और यूरोप में मध्यकाल तक लिखने के लिए चर्मपट का काफ़ी इस्तेमाल हुआ। मगर भारत में लेखन-सामग्री के रूप में चर्मपट का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है। अल्बेरूनी लिखते हैं कि "प्राचीन के यूनानियों की तरह भारत में चर्म पर लिखने का प्रचलन नहीं है।" कुछ बौद्ध ग्रन्थों में लिखने के लिए चमड़े के उपयोग के उल्लेख मिलते हैं।

लेख प्रमाण

सुबंधु (600 ई.) की कृति वासवदत्ता की एक उपमा से पता चलता है कि लिखने के लिए बाघ या चीते की खाल (संस्कृत में ‘अजन’) का प्रयोग होता था। मध्य-एशिया के कुछ स्थलों से चमड़े पर लिखे हुए लेख मिले हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ