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# इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है।  
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* इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है।  
# इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
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* इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
# इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
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* इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
# इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
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* इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
# इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
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* इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
# इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
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* इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
# इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
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* इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
# 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
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* 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
# इन दिनों जाग्रत्‌ [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
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* इन दिनों जाग्रत्‌ [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
# इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है।
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* इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है।
# इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
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* इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
  
 
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# '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।  
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* '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।  
# ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
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* ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
# ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
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* ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
# ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
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* ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
# '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
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* '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
# ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
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* ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
# ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
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* ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
# ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।
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* ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।
  
 
'''उ'''
 
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# उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।  
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* उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।  
# उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
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* उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
# उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
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* उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
# उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
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* उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
# उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
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* उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
# उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।  
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* उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।  
# उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
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* उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
# उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
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* उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
# उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
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* उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
# उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
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* उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
# उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
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* उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
# उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं।
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* उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं।
# उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
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* उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
# उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
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* उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
# उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें।
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* उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें।
  
 
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# ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।  
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* ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।  
# ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।
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* ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।
# ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
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* ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
# ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।  
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* ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।  
  
 
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'''ए'''
# एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
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* एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
# एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।  
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* एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।  
# एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।  
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* एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।  
# एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
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* एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
# एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
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* एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
# एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
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* एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
# एकाग्रता से ही विजय मिलती है।  
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* एकाग्रता से ही विजय मिलती है।  
  
 
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19:19, 24 सितम्बर 2011 का अवतरण

इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत

अनमोल वचन
अनमोल वचन

  • अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
  • अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
  • अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता।
  • अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
  • अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के।
  • अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
  • अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।
  • अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है।
  • अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
  • अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें।
  • अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है।
  • अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है।
  • अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है।
  • अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
  • अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है।
  • अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।
  • अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
  • अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
  • अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है।
  • अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें।
  • अपनी स्वंय की आत्मा के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है।
  • अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
  • अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं।
  • अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे।
  • अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
  • अपनी महान संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
  • अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
  • अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं।
  • अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
  • अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे।
  • अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है।
  • अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे।
  • अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना।
  • अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है।
  • अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
  • अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है।
  • अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ।
  • अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें।
  • अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंजिल मानो।
  • अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है।
  • अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।
  • अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
  • अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।
  • अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
  • अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।
  • अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
  • अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
  • अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।
  • अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
  • असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
  • अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
  • अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।
  • असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
  • असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है।
  • अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
  • असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
  • अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
  • अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
  • अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
  • अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
  • अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
  • अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
  • अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
  • अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है।
  • अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है।
  • अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।
  • अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
  • असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती।
  • अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
  • असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
  • 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
  • अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
  • अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
  • अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है।
  • अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो।
  • अब भगवान गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये।
  • अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
  • अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है।
  • अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं।
  • अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
  • अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख बनाए रहें।

  • आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।
  • आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
  • आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
  • आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
  • आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
  • आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
  • आयुर्वेद हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है।
  • आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है।
  • आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा।
  • आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है।
  • आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। - वाङ्गमय
  • आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है।
  • आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।
  • आत्म निर्माण का अर्थ है - भाग्य निर्माण।
  • आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन्‌ अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है।
  • आत्मा की पुकार अनसुनी न करें।
  • आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है।
  • आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें।
  • आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है।
  • आत्मबल ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है।
  • आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है।
  • आत्म निर्माण ही युग निर्माण है।
  • आत्मविश्वासी कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।
  • आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
  • आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है।
  • आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है।
  • आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है।
  • आज के काम कल पर मत टालिए।
  • आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है।
  • आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
  • आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है।
  • आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं।
  • आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
  • आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा।
  • आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं।
  • आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है।

  • इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है।
  • इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
  • इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
  • इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
  • इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
  • इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
  • इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
  • 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
  • इन दिनों जाग्रत्‌ आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
  • इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है।
  • इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।

  • ईश्वर की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।
  • ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
  • ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
  • ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
  • ईमानदार होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
  • ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
  • ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
  • ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।

  • उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।
  • उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
  • उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
  • उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
  • उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
  • उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
  • उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
  • उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
  • उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
  • उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
  • उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
  • उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं।
  • उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
  • उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
  • उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें।

  • ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।
  • ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।
  • ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
  • ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।

  • एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
  • एक झूठ छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।
  • एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
  • एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
  • एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
  • एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
  • एकाग्रता से ही विजय मिलती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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