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'''ऊर्जा संघटक''' का कार्य [[पृथ्वी]] की सतह तथा निचले [[वायुमण्डल]] में [[ऊष्मा]] संतुलन को बनाये रखना है। पृथ्वी अपनी [[ऊर्जा]] का अधिकांश भाग लघु तरंगों के माध्यम से [[सूर्य]] से प्राप्त करती है। सूर्य से पृथ्वी की ओर विकीर्ण कुल ऊर्जा का 1/2 अरब वां भाग ही पृथ्वी को प्राप्त होता है, क्योंकि वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के कारण सौर्यिक ऊर्जा का कृछ भाग शून्य में लौट जाता है। वायुमण्डल सौर्यिक विकिरण द्वारा 14 प्रतिशत और पृथ्वी से होने वाले विकिरण से 34 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है। इस सकल ऊर्जा का पुनः शून्य में गमन हो जाता है और इस तरह पृथ्वी तथा निचले वायुमण्डल में ऊष्मा का संतुलन बना रहता है। ध्यातव्य है कि पृथ्वी पर प्राप्त होने वाली ऊष्मीय ऊर्जा सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है जबकि वायुमण्डल को उष्मीय ऊर्जा पृथ्वी तल और सूर्य दोनों से प्राप्त होती है।
 
'''ऊर्जा संघटक''' का कार्य [[पृथ्वी]] की सतह तथा निचले [[वायुमण्डल]] में [[ऊष्मा]] संतुलन को बनाये रखना है। पृथ्वी अपनी [[ऊर्जा]] का अधिकांश भाग लघु तरंगों के माध्यम से [[सूर्य]] से प्राप्त करती है। सूर्य से पृथ्वी की ओर विकीर्ण कुल ऊर्जा का 1/2 अरब वां भाग ही पृथ्वी को प्राप्त होता है, क्योंकि वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के कारण सौर्यिक ऊर्जा का कृछ भाग शून्य में लौट जाता है। वायुमण्डल सौर्यिक विकिरण द्वारा 14 प्रतिशत और पृथ्वी से होने वाले विकिरण से 34 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है। इस सकल ऊर्जा का पुनः शून्य में गमन हो जाता है और इस तरह पृथ्वी तथा निचले वायुमण्डल में ऊष्मा का संतुलन बना रहता है। ध्यातव्य है कि पृथ्वी पर प्राप्त होने वाली ऊष्मीय ऊर्जा सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है जबकि वायुमण्डल को उष्मीय ऊर्जा पृथ्वी तल और सूर्य दोनों से प्राप्त होती है।
  
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14:44, 9 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

ऊर्जा संघटक का कार्य पृथ्वी की सतह तथा निचले वायुमण्डल में ऊष्मा संतुलन को बनाये रखना है। पृथ्वी अपनी ऊर्जा का अधिकांश भाग लघु तरंगों के माध्यम से सूर्य से प्राप्त करती है। सूर्य से पृथ्वी की ओर विकीर्ण कुल ऊर्जा का 1/2 अरब वां भाग ही पृथ्वी को प्राप्त होता है, क्योंकि वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के कारण सौर्यिक ऊर्जा का कृछ भाग शून्य में लौट जाता है। वायुमण्डल सौर्यिक विकिरण द्वारा 14 प्रतिशत और पृथ्वी से होने वाले विकिरण से 34 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है। इस सकल ऊर्जा का पुनः शून्य में गमन हो जाता है और इस तरह पृथ्वी तथा निचले वायुमण्डल में ऊष्मा का संतुलन बना रहता है। ध्यातव्य है कि पृथ्वी पर प्राप्त होने वाली ऊष्मीय ऊर्जा सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है जबकि वायुमण्डल को उष्मीय ऊर्जा पृथ्वी तल और सूर्य दोनों से प्राप्त होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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