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'''डोंगरगढ़''' [[छत्तीसगढ़]] के [[राजनांदगाँव ज़िला|राजनांदगाँव]] के ज़िलान्तर्गत दक्षिण-पूर्वी मध्य रेलवे के हावड़ा-[[मुम्बई]] रेल मार्ग पर और [[रायपुर]]-[[नागपुर]] राष्ट्रीय राजमार्ग में [[महाराष्ट्र]] प्रांत से लगा सीमांत तहसील मुख्यालय है। [[ब्रिटिश शासन|ब्रिटिश शासन काल]] में यह एक ज़मींदारी थी। प्राचीन काल से विमलाई देवी यहाँ की अधिष्ठात्री हैं, जो आज बमलेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है।
 
'''डोंगरगढ़''' [[छत्तीसगढ़]] के [[राजनांदगाँव ज़िला|राजनांदगाँव]] के ज़िलान्तर्गत दक्षिण-पूर्वी मध्य रेलवे के हावड़ा-[[मुम्बई]] रेल मार्ग पर और [[रायपुर]]-[[नागपुर]] राष्ट्रीय राजमार्ग में [[महाराष्ट्र]] प्रांत से लगा सीमांत तहसील मुख्यालय है। [[ब्रिटिश शासन|ब्रिटिश शासन काल]] में यह एक ज़मींदारी थी। प्राचीन काल से विमलाई देवी यहाँ की अधिष्ठात्री हैं, जो आज बमलेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है।
  
*किंवदंती है कि यहाँ पहाड़ी पर किसी समय एक दुर्ग था, जिसमें माधवानल-कामकन्दला नामक प्रसिद्ध उपाख्यान की नायिका 'कामकंदला' का निवास स्थान था। इसी दुर्ग में कामकंदला की भेंट माधवानल से हुई थी। यह प्रेम कहानी [[छत्तीसगढ़]] में सर्वत्र प्रचलित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=382|url=}}</ref>
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*किंवदंती है कि यहाँ पहाड़ी पर किसी समय एक दुर्ग था, जिसमें [[माधवानल कामकंदला]] नामक प्रसिद्ध उपाख्यान की नायिका 'कामकंदला' का निवास स्थान था। इसी दुर्ग में कामकंदला की भेंट माधवानल से हुई थी। यह प्रेम कहानी [[छत्तीसगढ़]] में सर्वत्र प्रचलित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=382|url=}}</ref>
 
*डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर प्राचीन मूर्तियों के [[अवशेष]] मिलते हैं। इसकी [[मूर्तिकला]] पर गौंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है।
 
*डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर प्राचीन मूर्तियों के [[अवशेष]] मिलते हैं। इसकी [[मूर्तिकला]] पर गौंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है।
 
*यहाँ से प्राप्त मूर्तियाँ अधिकांशत: 15वीं-16वीं शती ई. में निर्मित की गई थीं। स्टेशन के समीप की पहाड़ी पर 'विमलाई देवी' का सिद्धपीठ है।
 
*यहाँ से प्राप्त मूर्तियाँ अधिकांशत: 15वीं-16वीं शती ई. में निर्मित की गई थीं। स्टेशन के समीप की पहाड़ी पर 'विमलाई देवी' का सिद्धपीठ है।

12:30, 7 मई 2015 के समय का अवतरण

डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव के ज़िलान्तर्गत दक्षिण-पूर्वी मध्य रेलवे के हावड़ा-मुम्बई रेल मार्ग पर और रायपुर-नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग में महाराष्ट्र प्रांत से लगा सीमांत तहसील मुख्यालय है। ब्रिटिश शासन काल में यह एक ज़मींदारी थी। प्राचीन काल से विमलाई देवी यहाँ की अधिष्ठात्री हैं, जो आज बमलेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है।

  • किंवदंती है कि यहाँ पहाड़ी पर किसी समय एक दुर्ग था, जिसमें माधवानल कामकंदला नामक प्रसिद्ध उपाख्यान की नायिका 'कामकंदला' का निवास स्थान था। इसी दुर्ग में कामकंदला की भेंट माधवानल से हुई थी। यह प्रेम कहानी छत्तीसगढ़ में सर्वत्र प्रचलित है।[1]
  • डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर प्राचीन मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। इसकी मूर्तिकला पर गौंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है।
  • यहाँ से प्राप्त मूर्तियाँ अधिकांशत: 15वीं-16वीं शती ई. में निर्मित की गई थीं। स्टेशन के समीप की पहाड़ी पर 'विमलाई देवी' का सिद्धपीठ है।
  • पहाड़ी के पीछे 'तपसी काल' नामक एक दुर्ग है, जिसके अंदर भगवान विष्णु का एक मंदिर अवस्थित है। कुछ लोगों के मत में विमलाई देवी, मैना जाति के आदि निवासियों की कुलदेवी हैं। धमतरी, रायपुर ज़िला में भी इस देवी का थान है।
  • छत्तीसगढ़ में विमलाईगढ़ नामक एक दुर्ग भी है, जो इसी देवी के नाम पर प्रसिद्ध है। वास्तव में, छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों के आदिवासियों की इस देवी का स्थानीय संस्कृति में प्रमुख स्थान है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 382 |

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