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{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र
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|अन्य जानकारी=दौलतराव के [[फ़्राँसीसी]] सेनापति पेरों ने नौकरी छोड़ दी। विवश होकर शिन्दे को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से [[30 दिसम्बर]], 1820 ई. को सन्धि करनी पड़ी, जो [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] के नाम से प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार उसे अपना दक्षिण का प्रदेश तथा [[गंगा]]-[[यमुना]] के बीच का दौआब अंग्रेज़ों को दे देना पड़ा।
 
|बाहरी कड़ियाँ=[http://ketkardnyankosh.com/index.php/2012-09-06-10-43-51/8709-2013-02-15-07-54-23 महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश], [http://www.wikiwand.com/hi/%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%87 दौलतराव शिंदे]
 
 
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07:05, 13 मई 2016 का अवतरण

नवनीत
शिवाजी
विवरण पेशवा मराठा साम्राज्य में राजा के सलाहकार को कहा जाता था। पेशवा का पद मूलरूप से शिवाजी द्वारा नियुक्त अष्टप्रधानों में से एक था।
पेशवा बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव, माधवराव प्रथम, नारायणराव, माधवराव द्वितीय, बाजीराव द्वितीय
विशेष मराठा साम्राज्य में पेशवा का पद पहले वंशगत नहीं था, लेकिन बालाजी बाजीराव ने 1749 ई. में महाराज शाहू की मृत्यु के बाद पेशवा पद को वंशागत बना दिया था।
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, जीजाबाई, शम्भाजी, शाहू, ताराबाई, नाना फड़नवीस, मराठा साम्राज्य, मराठा,
अन्य जानकारी शाहू के राज्यकाल में बालाजी विश्वनाथ ने इस पद का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ा दिया था। वह 1713 ई. में पेशवा नियुक्त हुआ और 1720 ई. में मृत्यु होने तक इस पद पर बना रहा।