"प्रयोग:नवनीत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|चित्र का नाम=[[शिवाजी]]
 
|चित्र का नाम=[[शिवाजी]]
 
|विवरण=पेशवा [[मराठा साम्राज्य]] में राजा के सलाहकार को कहा जाता था। पेशवा का पद मूलरूप से [[शिवाजी]] द्वारा नियुक्त अष्टप्रधानों में से एक था।
 
|विवरण=पेशवा [[मराठा साम्राज्य]] में राजा के सलाहकार को कहा जाता था। पेशवा का पद मूलरूप से [[शिवाजी]] द्वारा नियुक्त अष्टप्रधानों में से एक था।
|शीर्षक 1=पेशवा
+
|शीर्षक 1=मराठा पेशवा
|पाठ 1=[[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बालाजी बाजीराव]], [[माधवराव प्रथम]], [[नारायणराव]], [[माधवराव द्वितीय]], [[बाजीराव द्वितीय]]  
+
|पाठ 1=[[बालाजी विश्वनाथ]] - 1713-1720 ई.<br />
 +
[[बाजीराव प्रथम]] - 1720-1740 ई.<br />
 +
[[बालाजी बाजीराव]] - 1740-1761 ई.<br />
 +
[[माधवराव प्रथम]] - 1761-1772 ई.<br />
 +
[[नारायणराव]] - 1772-1773 ई.<br />
 +
[[रघुनाथराव]] - 1773-1774 ई.<br />
 +
[[माधवराव द्वितीय]] - 1774-1795 ई.<br />
 +
[[बाजीराव द्वितीय]] - 1796-1818 ई.
 
|शीर्षक 2=विशेष
 
|शीर्षक 2=विशेष
 
|पाठ 2=मराठा साम्राज्य में पेशवा का पद पहले वंशगत नहीं था, लेकिन [[बालाजी बाजीराव]] ने 1749 ई. में महाराज [[शाहू]] की मृत्यु के बाद पेशवा पद को वंशागत बना दिया था।  
 
|पाठ 2=मराठा साम्राज्य में पेशवा का पद पहले वंशगत नहीं था, लेकिन [[बालाजी बाजीराव]] ने 1749 ई. में महाराज [[शाहू]] की मृत्यु के बाद पेशवा पद को वंशागत बना दिया था।  

13:04, 14 मई 2016 का अवतरण

नवनीत
शिवाजी
विवरण पेशवा मराठा साम्राज्य में राजा के सलाहकार को कहा जाता था। पेशवा का पद मूलरूप से शिवाजी द्वारा नियुक्त अष्टप्रधानों में से एक था।
मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ - 1713-1720 ई.

बाजीराव प्रथम - 1720-1740 ई.
बालाजी बाजीराव - 1740-1761 ई.
माधवराव प्रथम - 1761-1772 ई.
नारायणराव - 1772-1773 ई.
रघुनाथराव - 1773-1774 ई.
माधवराव द्वितीय - 1774-1795 ई.
बाजीराव द्वितीय - 1796-1818 ई.

विशेष मराठा साम्राज्य में पेशवा का पद पहले वंशगत नहीं था, लेकिन बालाजी बाजीराव ने 1749 ई. में महाराज शाहू की मृत्यु के बाद पेशवा पद को वंशागत बना दिया था।
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, जीजाबाई, शम्भाजी, शाहू, ताराबाई, नाना फड़नवीस, मराठा साम्राज्य, मराठा,
अन्य जानकारी शाहू के राज्यकाल में बालाजी विश्वनाथ ने इस पद का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ा दिया था। वह 1713 ई. में पेशवा नियुक्त हुआ और 1720 ई. में मृत्यु होने तक इस पद पर बना रहा।