एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

"प्रकाशवीर शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 12 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
|जन्म भूमि=गाँव रेहड़ा, [[उत्तर प्रदेश]]  
 
|जन्म भूमि=गाँव रेहड़ा, [[उत्तर प्रदेश]]  
 
|मृत्यु=[[23 नवम्बर]], [[1977]]
 
|मृत्यु=[[23 नवम्बर]], [[1977]]
|मृत्यु स्थान=उत्तर प्रदेश
+
|मृत्यु स्थान=[[उत्तर प्रदेश]]
 
|मृत्यु कारण=
 
|मृत्यु कारण=
|अविभावक=पिता- श्री दिलीप सिंह त्यागी
+
|अभिभावक=[[पिता]]- श्री दिलीप सिंह त्यागी
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
 
|संतान=
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
|कार्य काल=
 
|कार्य काल=
 
|विद्यालय=आगरा विश्वविद्यालय  
 
|विद्यालय=आगरा विश्वविद्यालय  
|शिक्षा=एम.ए.  
+
|शिक्षा=एम.ए. (स्नातकोत्तर)
 
|पुरस्कार-उपाधि=
 
|पुरस्कार-उपाधि=
 
|विशेष योगदान=
 
|विशेष योगदान=
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
|शीर्षक 2=
 
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
 
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=प्रकाशवीर शास्त्री [[संस्कृत]] के विद्वान और [[आर्यसमाज]] के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे।
+
|अन्य जानकारी=प्रकाशवीर शास्त्री [[संस्कृत]] के विद्वान् और [[आर्यसमाज]] के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) [[लोकसभा]] के [[सांसद]] रहे।
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
'''प्रकाशवीर शास्त्री''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prakash Vir Shastri'', जन्म- [[30 दिसम्बर]], [[1923]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[23 नवम्बर]], [[1977]]) भारतीय संसद के लोकसभा सदस्य थे। ये [[संस्कृत]] के विद्वान और [[आर्यसमाज]] के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। इनका वास्तविक नाम 'ओमप्रकाश त्यागी' था। प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है। प्रकाशवीर के भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार [[भारत]] के पूर्व [[प्रधानमंत्री]] और [[भारतीय जनता पार्टी]] के वरिष्ठ नेता [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
+
'''प्रकाशवीर शास्त्री''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prakash Vir Shastri'', जन्म- [[30 दिसम्बर]], [[1923]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[23 नवम्बर]], [[1977]]) [[संसद|भारतीय संसद]] के [[लोकसभा]] सदस्य थे। ये [[संस्कृत]] के विद्वान् और [[आर्यसमाज]] के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। इनका वास्तविक नाम 'विद्या शंकर शास्त्री' था। प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है। प्रकाशवीर के भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार [[भारत]] के पूर्व [[प्रधानमंत्री]] और [[भारतीय जनता पार्टी]] के वरिष्ठ नेता [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
 
प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म [[30 दिसम्बर]], [[1923]] को [[उत्तर प्रदेश]] के गाँव रेहड़ा में हुआ। वह किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये और इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्नातकोत्तर) की डिग्री प्राप्त की। बाद में प्रकाशवीर गुरुकुल वृन्दावन के कुलपति बने। उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से प्राप्त हुई।  
 
प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म [[30 दिसम्बर]], [[1923]] को [[उत्तर प्रदेश]] के गाँव रेहड़ा में हुआ। वह किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये और इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्नातकोत्तर) की डिग्री प्राप्त की। बाद में प्रकाशवीर गुरुकुल वृन्दावन के कुलपति बने। उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से प्राप्त हुई।  
 
==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
प्रकाशवीर शास्त्री ने [[हिंदी]], धर्मांतरण, अराष्ट्रीय गतिविधियों तथा पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। 1957 में आर्य समाज द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही [[पंजाब]] आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे। सन 1958 में स्वतंत्र रूप से लोकसभा सांसद बनकर [[संसद]] में गये। प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राज्य संगठन में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी।
+
प्रकाशवीर शास्त्री ने [[हिंदी]], धर्मांतरण, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों तथा पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। [[1957]] में [[आर्य समाज]] द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही [[पंजाब]] आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे। सन् [[1958]] में स्वतंत्र रूप से लोकसभा सांसद बनकर [[संसद]] में गये। प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राज्य संगठन में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी।  
 +
==आर्य समाज के समर्थक ==
 +
प्रकाशवीर शास्त्री, [[स्वामी दयानन्द सरस्वती|स्वामी दयानन्द जी]] तथा [[आर्य समाज]] के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे। इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने [[1939]] में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही [[हैदराबाद]] के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये। इनकी आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी, इस कारण ये अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरूप कार्य करने लगे। आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में इनका नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया और इनके व्याख्यान के लिए इनकी देश के विभिन्न भागों से माँग होने लगी।
 +
====हिन्दी रक्षा समिति====
 +
[[पंजाब]] में [[प्रताप सिंह कैरो|सरदार प्रताप सिंह कैरो]] के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने [[हिन्दी]] का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने [[सत्याग्रह आन्दोलन]] करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया।
 +
====अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन====
 +
इस समय [[आर्य समाज]] के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा [[लखनऊ]] तथा [[हैदराबाद]] में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। [[1962]] तथा फिर [[1967]] में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप [[लोकसभा]] के लिए चुने गए। एक [[सांसद]] के रूप में आपने [[आर्य समाज]] के बहुत-से कार्य निकलवाये।
 +
====विश्व हिन्दी सम्मेलन====
 +
वर्ष [[1975]] में [[प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन]], जो [[नागपुर]] में सम्पन्न हुआ, में भी इन्होंने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में, सम्मेलन में पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया। इस सभा में (हिन्दी सम्मेलन में [[पंजाब]] के प्रतिनिधि स्वरूप भाग लेने के कारण) मैं भी उपस्थित था, आपके भाव प्रवाह व्याख्यान से जन जन भाव विभोर हो गया।<ref name="आर्य मंतव्य">{{cite web |url=http://www.aryamantavya.in/2013/great-arya-men-women/pandit-prakash-vir-shastri/ |title=पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री |accessmonthday=21 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आर्य मंतव्य |language=हिन्दी }}</ref>
 +
==विदेश यात्रा==
 +
पण्डित प्रकाशवीर शास्त्री ने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे। जिस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उपदेशक बनकर आपने कार्यक्षेत्र में कदम बढ़ाया था, उस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के आप अनेक वर्ष तक प्रधान रहे। आप के ही पुरुषार्थ से [[मेरठ]], [[कानपुर]] तथा [[वाराणसी]] में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्बन्धी सम्मेलनों को सफलता मिली। इतना ही नहीं आपकी योग्यता के कारण सन् [[1974]] ईस्वी में इन्हें परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। इनका जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे। अन्त में [[जयपुर]] से [[दिल्ली]] की ओर आते हुए एक रेल दुर्घटना हुई। इस रेल गाड़ी में आप भी यात्रा कर रहे थे। इस दुर्घटना के कारण [[23 नवम्बर]], [[1977]] इस्वी को इनकी जीवन यात्रा भी पूर्ण हो गई तथा [[आर्य समाज]] का यह महान् योद्धा हमें सदा के लिए छोड़ कर चला गया।<ref name="आर्य मंतव्य"/>
 
====लोकसभा सांसद====
 
====लोकसभा सांसद====
ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।  
+
ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।
 +
 
 
==निधन==
 
==निधन==
[[संस्कृत भाषा]] के विद्वान और आर्यसमाज के इस नेता का निधन [[23 नवम्बर]] [[1977]] को [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ।  
+
[[संस्कृत भाषा]] के विद्वान् और आर्यसमाज के इस नेता का निधन [[23 नवम्बर]] [[1977]] को [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ।
  
  
पंक्ति 51: पंक्ति 62:
 
*[http://www.aryamantavya.in/2013/great-arya-men-women/pandit-prakash-vir-shastri/ पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री]
 
*[http://www.aryamantavya.in/2013/great-arya-men-women/pandit-prakash-vir-shastri/ पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{द्वितीय लोकसभा सांसद}} {{तीसरी लोकसभा सांसद}} {{चौथी लोकसभा सांसद}}  
+
{{द्वितीय लोकसभा सांसद}} {{तीसरी लोकसभा सांसद}} {{चौथी लोकसभा सांसद}}
[[Category:लोकसभा]][[Category:द्वितीय लोकसभा सांसद]][[Category:तीसरी लोकसभा सांसद]][[Category:चौथी लोकसभा सांसद]] [[Category:लोकसभा सांसद]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]]
+
[[Category:लोकसभा]][[Category:द्वितीय लोकसभा सांसद]][[Category:तीसरी लोकसभा सांसद]][[Category:चौथी लोकसभा सांसद]] [[Category:लोकसभा सांसद]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:उत्तर प्रदेश के लोकसभा सांसद]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के लोकसभा सांसद]]
 
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
__NOTOC__
 

10:05, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

प्रकाशवीर शास्त्री
प्रकाशवीर शास्त्री
पूरा नाम प्रकाशवीर शास्त्री
अन्य नाम ओमप्रकाश त्यागी (वास्तविक नाम)
जन्म 30 दिसम्बर, 1923
जन्म भूमि गाँव रेहड़ा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 23 नवम्बर, 1977
मृत्यु स्थान उत्तर प्रदेश
अभिभावक पिता- श्री दिलीप सिंह त्यागी
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है।
शिक्षा एम.ए. (स्नातकोत्तर)
विद्यालय आगरा विश्वविद्यालय
भाषा हिन्दी
अन्य जानकारी प्रकाशवीर शास्त्री संस्कृत के विद्वान् और आर्यसमाज के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।

प्रकाशवीर शास्त्री (अंग्रेज़ी: Prakash Vir Shastri, जन्म- 30 दिसम्बर, 1923, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 नवम्बर, 1977) भारतीय संसद के लोकसभा सदस्य थे। ये संस्कृत के विद्वान् और आर्यसमाज के नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे। इनका वास्तविक नाम 'विद्या शंकर शास्त्री' था। प्रकाशवीर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में उच्चकोटि के भाषण देने वालों में लिया जाता है। प्रकाशवीर के भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।

जीवन परिचय

प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म 30 दिसम्बर, 1923 को उत्तर प्रदेश के गाँव रेहड़ा में हुआ। वह किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये और इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्नातकोत्तर) की डिग्री प्राप्त की। बाद में प्रकाशवीर गुरुकुल वृन्दावन के कुलपति बने। उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई।

कार्यक्षेत्र

प्रकाशवीर शास्त्री ने हिंदी, धर्मांतरण, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों तथा पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। 1957 में आर्य समाज द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही पंजाब आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे। सन् 1958 में स्वतंत्र रूप से लोकसभा सांसद बनकर संसद में गये। प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राज्य संगठन में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी।

आर्य समाज के समर्थक

प्रकाशवीर शास्त्री, स्वामी दयानन्द जी तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे। इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने 1939 में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये। इनकी आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी, इस कारण ये अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरूप कार्य करने लगे। आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में इनका नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया और इनके व्याख्यान के लिए इनकी देश के विभिन्न भागों से माँग होने लगी।

हिन्दी रक्षा समिति

पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया।

अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन

इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनऊ तथा हैदराबाद में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। 1962 तथा फिर 1967 में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोकसभा के लिए चुने गए। एक सांसद के रूप में आपने आर्य समाज के बहुत-से कार्य निकलवाये।

विश्व हिन्दी सम्मेलन

वर्ष 1975 में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पन्न हुआ, में भी इन्होंने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में, सम्मेलन में पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया। इस सभा में (हिन्दी सम्मेलन में पंजाब के प्रतिनिधि स्वरूप भाग लेने के कारण) मैं भी उपस्थित था, आपके भाव प्रवाह व्याख्यान से जन जन भाव विभोर हो गया।[1]

विदेश यात्रा

पण्डित प्रकाशवीर शास्त्री ने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे। जिस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उपदेशक बनकर आपने कार्यक्षेत्र में कदम बढ़ाया था, उस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के आप अनेक वर्ष तक प्रधान रहे। आप के ही पुरुषार्थ से मेरठ, कानपुर तथा वाराणसी में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्बन्धी सम्मेलनों को सफलता मिली। इतना ही नहीं आपकी योग्यता के कारण सन् 1974 ईस्वी में इन्हें परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। इनका जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे। अन्त में जयपुर से दिल्ली की ओर आते हुए एक रेल दुर्घटना हुई। इस रेल गाड़ी में आप भी यात्रा कर रहे थे। इस दुर्घटना के कारण 23 नवम्बर, 1977 इस्वी को इनकी जीवन यात्रा भी पूर्ण हो गई तथा आर्य समाज का यह महान् योद्धा हमें सदा के लिए छोड़ कर चला गया।[1]

लोकसभा सांसद

ये तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।

निधन

संस्कृत भाषा के विद्वान् और आर्यसमाज के इस नेता का निधन 23 नवम्बर 1977 को उत्तर प्रदेश में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री (हिन्दी) आर्य मंतव्य। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख