"एमिली एडवर्ड मोरे" के अवतरणों में अंतर

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'''एमिली एडवर्ड मोरे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Emili Edward Moreau'') एक [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसी]] लेखक थे, जिन्होंने [[भारत]] के सबसे बड़े बुकस्टोर चेन ‘ए.एच. व्हीलर’ की नींव रखी थी। भारत के लगभग हर रेलवे स्टेशन पर मौजूद, [[उपन्यास]], पुस्तकें एवं पत्र-[[पत्रिका|पत्रिकाएं]] बेचने वाले इस स्टॉल की [[कहानी]] काफ़ी रोचक है। इस समय भारत के 258 रेलवे स्टेशनों पर ए.एच. व्हीलर के स्टॉल हैं।
 
'''एमिली एडवर्ड मोरे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Emili Edward Moreau'') एक [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसी]] लेखक थे, जिन्होंने [[भारत]] के सबसे बड़े बुकस्टोर चेन ‘ए.एच. व्हीलर’ की नींव रखी थी। भारत के लगभग हर रेलवे स्टेशन पर मौजूद, [[उपन्यास]], पुस्तकें एवं पत्र-[[पत्रिका|पत्रिकाएं]] बेचने वाले इस स्टॉल की [[कहानी]] काफ़ी रोचक है। इस समय भारत के 258 रेलवे स्टेशनों पर ए.एच. व्हीलर के स्टॉल हैं।
 
=='ए.एच. व्हीलर' की नींव==
 
=='ए.एच. व्हीलर' की नींव==
इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से शुरू हुई इस कंपनी की नींव लेखक एमिली एडवर्ड मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के साथ [[1877]] में रखी थी। मोरे को किताबों का बहुत शौक था। घर में किताबें इधर-उधर बिखरी रहती थीं। एक दिन उनकी पत्नी ने गुस्से में आकर चेतावनी दे दी कि किताबें नहीं हटाई तो उन्हें बाहर फेंक दूंगी। पत्नी की चेतावनी से परेशान मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के सहयोग से रेलवे अधिकारियों से अनुमति ली और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक चादर बिछाकर अपनी पुरानी किताबों को भारी छूट पर बेचना शुरू कर दिया। पहले ही दिन थोड़ी देर में सारी किताबें बिक गईं। ये सिलसिला पांच दिनों तक चलता रहा और इस प्रकार मोरे व बनर्जी किताब बेचने वाले बन गए। कुछ दिनों बाद उन्होंने एक कंपनी बना ली। बाद में उन्होंने कंपनी का एक प्रतिशत शेयर देकर [[लंदन]] की कंपनी 'ए.एच. व्हीलर' का ब्रांड नेम खरीद लिया। उसी साल दोनों दोस्तों ने [[इलाहाबाद]] रेलवे स्टेशन पर अपना पहला स्टोर खोल दिया। इसमें 59 प्रतिशत हिस्सा मोरे, 40 प्रतिशत टी.के. बनर्जी और एक प्रतिशत हिस्सा आर्थ हेनरी व्हीलर<ref>ए.एच. व्हीलर</ref> के दामाद मार्टिन ब्रांड का था। टी.के. बनर्जी को कंपनी का हिस्सेदार होने के साथ कंपनी के एकाउंटेंट की भूमिका भी निभानी पड़ती थी।
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इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से शुरू हुई ए.एच. व्हीलर कंपनी की नींव लेखक एमिली एडवर्ड मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के साथ [[1877]] में रखी थी। मोरे को किताबों का बहुत शौक था। घर में किताबें इधर-उधर बिखरी रहती थीं। एक दिन उनकी पत्नी ने गुस्से में आकर चेतावनी दे दी कि किताबें नहीं हटाई तो उन्हें बाहर फेंक दूंगी। पत्नी की चेतावनी से परेशान मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के सहयोग से रेलवे अधिकारियों से अनुमति ली और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक चादर बिछाकर अपनी पुरानी किताबों को भारी छूट पर बेचना शुरू कर दिया। पहले ही दिन थोड़ी देर में सारी किताबें बिक गईं। ये सिलसिला पांच दिनों तक चलता रहा और इस प्रकार मोरे व बनर्जी किताब बेचने वाले बन गए। कुछ दिनों बाद उन्होंने एक कंपनी बना ली। बाद में उन्होंने कंपनी का एक प्रतिशत शेयर देकर [[लंदन]] की कंपनी 'ए.एच. व्हीलर' का ब्रांड नेम ख़रीद लिया। उसी साल दोनों दोस्तों ने [[इलाहाबाद]] रेलवे स्टेशन पर अपना पहला स्टोर खोल दिया। इसमें 59 प्रतिशत हिस्सा मोरे, 40 प्रतिशत टी.के. बनर्जी और एक प्रतिशत हिस्सा आर्थ हेनरी व्हीलर<ref>ए.एच. व्हीलर</ref> के दामाद मार्टिन ब्रांड का था। टी.के. बनर्जी को कंपनी का हिस्सेदार होने के साथ कंपनी के एकाउंटेंट की भूमिका भी निभानी पड़ती थी।
 
====कंपनी का विस्तार====
 
====कंपनी का विस्तार====
कंपनी का दूसरा स्टोर [[हावड़ा]] रेलवे स्टेशन और तीसरा [[नागपुर]] स्टेशन पर खोला गया। धीरे-धीरे कंपनी का नेटवर्क बढ़ता गया। [[1930]] में टी.के. बनर्जी 100 प्रतिशत शेयर लेकर कंपनी के मालिक हो गए। टी.के. बनर्जी के परपोते और वर्तमान में कंपनी के निदेशक अमित बनर्जी ने बताया कि विभाजन से पहले [[पाकिस्तान]] में भी इस कंपनी के कई स्टोर थे, लेकिन बाद में वहां की सारी दुकानें बंद कर दी गईं।
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कंपनी का दूसरा स्टोर हावड़ा रेलवे स्टेशन और तीसरा [[नागपुर]] स्टेशन पर खोला गया। धीरे-धीरे कंपनी का नेटवर्क बढ़ता गया। [[1930]] में टी.के. बनर्जी 100 प्रतिशत शेयर लेकर कंपनी के मालिक हो गए। टी.के. बनर्जी के परपोते और वर्तमान में कंपनी के निदेशक अमित बनर्जी ने बताया कि विभाजन से पहले [[पाकिस्तान]] में भी इस कंपनी के कई स्टोर थे, लेकिन बाद में वहां की सारी दुकानें बंद कर दी गईं।
;दस हज़ार लोगों को दी है नौकरी
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;दस हज़ार लोगों को नौकरी
एएच व्हीलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने 10 हजार से अधिक लोगों को नौकरी दे रखी है। कंपनी की 78 फीसदी कमाई न्यूजपेपर और मैगजीन से होती है। 20 प्रतिशत कमाई किताबों और दो फीसदी का कमाई का जरिया सरकारी प्रकाशन और टाइम टेबल से होती है।
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ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने 10 हज़ार से अधिक लोगों को नौकरी दे रखी है। कंपनी की 78 फीसदी कमाई न्यूजपेपर और मैगजीन से होती है। 20 प्रतिशत कमाई किताबों और दो फीसदी का कमाई का जरिया सरकारी प्रकाशन और टाइम टेबल से होती है।
;रुडयार्ड किपलिंग को दी पहचान
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====रुडयार्ड किपलिंग को दी पहचान====
एएच व्हीलर ने अंग्रेजी के जाने-माने लेखक रुडयार्ड किपलिंग को भी पहचान बनाने में काफी मदद की। अमित बनर्जी बताते हैं कि कंपनी ने 1888 में किपलिंग की पहली किताब का प्रकाशन किया। उस वक्त किपलिंग को लेखक के रूप में पहचान नहीं मिल सकी थी।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-0-0-233748.html |title=मियां-बीवी के झगड़े ने रखी एएच व्हीलर की नींव |accessmonthday=25 अगस्त |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दुस्तान लाइव |language=हिन्दी }}</ref>
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ए.एच. व्हीलर ने [[अंग्रेज़ी]] के जाने-माने लेखक रुडयार्ड किपलिंग को भी पहचान बनाने में काफ़ी मदद की। अमित बनर्जी के अनुसार- कंपनी ने [[1888]] में किपलिंग की पहली किताब का प्रकाशन किया। उस वक्त किपलिंग को लेखक के रूप में पहचान नहीं मिल सकी थी।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-0-0-233748.html |title=मियां-बीवी के झगड़े ने रखी एएच व्हीलर की नींव |accessmonthday=25 अगस्त |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दुस्तान लाइव |language=हिन्दी }}</ref> एमिली एडवर्ड मोरे द्वारा स्थापित 'ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी' का काम धीरे-धीरे बढ़ता गया था। रेलवे के विस्तार के साथ ही इस कंपनी का भी विस्तार होने लगा। एमिली एडवर्ड मोरे ने 'हाउस ऑफ़ व्हीलर्स' नामक प्रकाशन कंपनी भी खोली। इसी से लेखक रूडयार्ड किपलिंग, जिन्होंने बहुचर्चित 'जंगल बुक' लिखी थी कि कहानियों का पहला संग्रह ‘प्लेन ऑक्स फ्रॉम द हिल’ छापा। इंडियन रेलवे लाइब्रेरी सीरीज के तहत छह कहानियों के संग्रह वाली इस किताब का दाम एक [[रुपया]] था। करीब 25 साल तक ए.एच. व्हीलर के ग्राहकों व कर्मचारियों में सिर्फ [[अंग्रेज़]] व एंग्लो इंडियन लोग ही हुआ करते थे।
==ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी==
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==टी.के. बनर्जी का योगदान==
[[1857]] के विद्रोह के बाद ब्रिटेन में बस चुके फ्रांसीसी नागरिक एमिली एडवर्ड मोरे घूमने के लिए भारत आए। वे ब्रिटिश बर्ड एंड कंपनी में काम करते थे। वे काफी समय तक [[प्रयाग]] ([[इलाहाबाद]]) में रहे। उन्हें पढ़ने का काफी शौक था और उन्हें यहां अंग्रेज़ी की किताबें मिलने में काफी दिक्कत होती थी। उनके पास अपनी भी काफ़ी किताबें थीं। जब वे देश से जाने का मन बना रहे थे तो उन्होंने इन किताबों को बेचने का फैसला किया। उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर से अनुरोध किया कि वे उसे प्लेटफार्म पर अपनी किताबें बेचने की अनुमति दे दें। तीन दिन के अंदर उनकी सारी किताबें बिक गईं। यह देख कर उनके मन में बुक स्टॉल खोलने का विचार आया। उन्होंने लंदन के जाने-माने बुक स्टॉल ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी से उसके नाम का इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी। क्योंकि यह नाम अंग्रेज़ों के बीच काफ़ी लोकप्रिय था। उसने इसकी अनुमति दे दी और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर पहला बुक स्टॉल खुल गया। <br />
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एमिली एडवर्ड मोरे के [[कलकत्ता]] दफ्तर में टी.के. बनर्जी नामक एक कर्मचारी काम करता था, जो कि एकाउंटस व ऑडिटिंग में माहिर था। उसका तबादला [[इलाहाबाद]] कर दिया और वह मोरे के काफ़ी करीब आ गया। उसने उन्हें रेलवे के विज्ञापन का काम देखने के लिए विज्ञापन कंपनी खोलने की सलाह दी। वह जितना मालिक के करीब आता जा रहा था, अंग्रेज़ कर्मचारी उतना ही उसके विरुद्ध होते जा रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह कंपनी घाटे में जाने लगी। जब तमाम लोग कंपनी छोड़कर जाने लगे तो इसका परिणाम यह निकला कि मोरे ने टी.के. बनर्जी को सीनियर वर्किंग पार्टनर बना दिया और खुद गुडविल पार्टनर बन गए। कंपनी फिर से मुनाफा कमाने लगी। बाद में वे सब कुछ बनर्जी के हवाले करके ब्रिटेन लौट गए, जहां उनकी मृत्यु हो गई। टी. के. बनर्जी का [[26 सितंबर]], [[1944]] को देहांत हो गया और उनके बेटों ने यह धंधा संभाल लिया। जाने माने लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक बार कहा था कि आज़ादी की लड़ाई में ए.एच. व्हीलर की भी बहुत बड़ी भूमिका रही, क्योंकि उन दिनों हम लोग सुबह-सुबह अपने नेताओं के विचारों को जानने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंच जाया करते थे। आज इस [[परिवार]] की तीसरी पीढ़ी यह व्यवसाय संभाल रही है। इस कंपनी के पांच हज़ार कर्मचारी हैं।
धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता गया। रेलवे के विस्तार के साथ ही इस कंपनी का भी विस्तार होने लगा। उन्होंने हाउस ऑफ व्हीलर्स नामक प्रकाशन कंपनी भी खोली, जिससे जाने-माने लेखक रूडयार्ड किपलिंग, जिन्होंने बहुचर्चित "जंगल बुक" लिखी थी कि कहानियों का पहला संग्रह ‘प्लेन ऑक्स फ्रॉम द हिल’ छापा। इंडियन रेलवे लाइब्रेरी सीरीज के तहत छह कहानियों के संग्रह वाली इस किताब का दाम एक रुपए था। करीब 25 साल तक ए.एच. व्हीलर के ग्राहकों व कर्मचारियों में सिर्फ अंग्रेज़ व एंग्लो इंडियन लोग ही हुआ करते थे।
 
उसके कलकत्ता दफ्तर में टी. के. बनर्जी नामक एक कर्मचारी काम करता था जो कि एकाउंटस व ऑडिटिंग में माहिर था। उसका तबादला इलाहाबाद कर दिया और वह मोरे के काफी करीब आ गया उसने उन्हें रेलवे के विज्ञापन का काम देखने के लिए विज्ञापन कंपनी खोलने की सलाह दी। वह जितना मालिक के करीब आता जा रहा था अंग्रेज कर्मचारी उतना ही उसके खिलाफ होते जा रहे थे। <br />
 
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह कंपनी घाटे में जाने लगी। जब तमाम लोग कंपनी छोड़कर जाने लगे तो इसका परिणाम यह निकला कि उन्होंने उसे सीनियर वर्किंग पार्टनर बना दिया और खुद गुडविल पार्टनर बन गए। कंपनी फिर से मुनाफा कमाने लगी। बाद में वे सब कुछ उसके हवाले करके [[ब्रिटेन]] लौट गए, जहां उनकी मृत्यु हो गई। टी. के. बनर्जी का [[26 सितंबर]], [[1944]] को देहांत हो गया और उनके बेटों ने यह धंधा संभाल लिया। जाने माने लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक बार कहा था कि आज़ादी की लड़ाई में एएच व्हीलर की भी बहुत बड़ी भूमिका रही क्योंकि उन दिनों हम लोग सुबह-सुबह अपने नेताओं के विचारों को जानने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पहुचं जाया करते थे। आज इस परिवार की तीसरी पीढ़ी यह व्यवसाय संभाल रही है। इस कंपनी के पांच हजार कर्मचारी हैं। <br />
 
कुछ समय पहले व्हीलर कंपनी ने मुंबई सेंट्रल स्थित अपने स्टॉल को हैरिटेज का दर्जा दिए जाने के लिए सरकार को पत्र लिखा। बरमा टीक से बने इस स्टॉल को [[1905]] में [[इंग्लैंड]] से तैयार करवाकर जहाज के जरिए [[इलाहाबाद]] लाया गया था। यह फोल्डिंग स्टाल है। बाद में [[1930]] में उसे मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर स्थापित कर दिया गया, जहां यह आज भी वैसा ही है।<ref>{{cite web |url=http://www.nayaindia.com/hindi-news-paper/reporter-dairy/strange-story-of-a-h-wheeler-448281.html |title=एएच व्हीलर की अजीब दास्तान |accessmonthday=25 अगस्त |accessyear=2015 |last=विनम्र |first= |authorlink= |format= |publisher=नया इंडिया |language=हिन्दी }}</ref>
 
  
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*[http://qz.com/486051/the-mysterious-european-businessman-who-gave-india-its-iconic-railway-book-stalls/ The mysterious European businessman who gave India its iconic railway book stalls]
 
==संबंधित लेख==
 
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एमिली एडवर्ड मोरे
एमिली एडवर्ड मोरे
पूरा नाम एमिली एडवर्ड मोरे
कर्म भूमि फ़्राँस तथा भारत
कर्म-क्षेत्र लेखक
भाषा अंग्रेज़ी
विशेष योगदान एमिली एडवर्ड मोरे वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत में सबसे पहले इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल लगाया था। इन्होंने भारत के सबसे बड़े बुकस्टोर चेन ‘ए.एच. व्हीलर’ की नींव रखी थी।
नागरिकता फ़्राँसीसी
अन्य जानकारी एमिली एडवर्ड मोरे ने 'हाउस ऑफ़ व्हीलर्स' नामक प्रकाशन कंपनी भी खोली। इसी से लेखक रूडयार्ड किपलिंग, जिन्होंने बहुचर्चित 'जंगल बुक' लिखी थी कि कहानियों का पहला संग्रह ‘प्लेन ऑक्स फ्रॉम द हिल’ छापा।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

एमिली एडवर्ड मोरे (अंग्रेज़ी: Emili Edward Moreau) एक फ़्राँसीसी लेखक थे, जिन्होंने भारत के सबसे बड़े बुकस्टोर चेन ‘ए.एच. व्हीलर’ की नींव रखी थी। भारत के लगभग हर रेलवे स्टेशन पर मौजूद, उपन्यास, पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाएं बेचने वाले इस स्टॉल की कहानी काफ़ी रोचक है। इस समय भारत के 258 रेलवे स्टेशनों पर ए.एच. व्हीलर के स्टॉल हैं।

'ए.एच. व्हीलर' की नींव

इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से शुरू हुई ए.एच. व्हीलर कंपनी की नींव लेखक एमिली एडवर्ड मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के साथ 1877 में रखी थी। मोरे को किताबों का बहुत शौक था। घर में किताबें इधर-उधर बिखरी रहती थीं। एक दिन उनकी पत्नी ने गुस्से में आकर चेतावनी दे दी कि किताबें नहीं हटाई तो उन्हें बाहर फेंक दूंगी। पत्नी की चेतावनी से परेशान मोरे ने अपने दोस्त टी.के. बनर्जी के सहयोग से रेलवे अधिकारियों से अनुमति ली और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक चादर बिछाकर अपनी पुरानी किताबों को भारी छूट पर बेचना शुरू कर दिया। पहले ही दिन थोड़ी देर में सारी किताबें बिक गईं। ये सिलसिला पांच दिनों तक चलता रहा और इस प्रकार मोरे व बनर्जी किताब बेचने वाले बन गए। कुछ दिनों बाद उन्होंने एक कंपनी बना ली। बाद में उन्होंने कंपनी का एक प्रतिशत शेयर देकर लंदन की कंपनी 'ए.एच. व्हीलर' का ब्रांड नेम ख़रीद लिया। उसी साल दोनों दोस्तों ने इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर अपना पहला स्टोर खोल दिया। इसमें 59 प्रतिशत हिस्सा मोरे, 40 प्रतिशत टी.के. बनर्जी और एक प्रतिशत हिस्सा आर्थ हेनरी व्हीलर[1] के दामाद मार्टिन ब्रांड का था। टी.के. बनर्जी को कंपनी का हिस्सेदार होने के साथ कंपनी के एकाउंटेंट की भूमिका भी निभानी पड़ती थी।

कंपनी का विस्तार

कंपनी का दूसरा स्टोर हावड़ा रेलवे स्टेशन और तीसरा नागपुर स्टेशन पर खोला गया। धीरे-धीरे कंपनी का नेटवर्क बढ़ता गया। 1930 में टी.के. बनर्जी 100 प्रतिशत शेयर लेकर कंपनी के मालिक हो गए। टी.के. बनर्जी के परपोते और वर्तमान में कंपनी के निदेशक अमित बनर्जी ने बताया कि विभाजन से पहले पाकिस्तान में भी इस कंपनी के कई स्टोर थे, लेकिन बाद में वहां की सारी दुकानें बंद कर दी गईं।

दस हज़ार लोगों को नौकरी

ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने 10 हज़ार से अधिक लोगों को नौकरी दे रखी है। कंपनी की 78 फीसदी कमाई न्यूजपेपर और मैगजीन से होती है। 20 प्रतिशत कमाई किताबों और दो फीसदी का कमाई का जरिया सरकारी प्रकाशन और टाइम टेबल से होती है।

रुडयार्ड किपलिंग को दी पहचान

ए.एच. व्हीलर ने अंग्रेज़ी के जाने-माने लेखक रुडयार्ड किपलिंग को भी पहचान बनाने में काफ़ी मदद की। अमित बनर्जी के अनुसार- कंपनी ने 1888 में किपलिंग की पहली किताब का प्रकाशन किया। उस वक्त किपलिंग को लेखक के रूप में पहचान नहीं मिल सकी थी।[2] एमिली एडवर्ड मोरे द्वारा स्थापित 'ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी' का काम धीरे-धीरे बढ़ता गया था। रेलवे के विस्तार के साथ ही इस कंपनी का भी विस्तार होने लगा। एमिली एडवर्ड मोरे ने 'हाउस ऑफ़ व्हीलर्स' नामक प्रकाशन कंपनी भी खोली। इसी से लेखक रूडयार्ड किपलिंग, जिन्होंने बहुचर्चित 'जंगल बुक' लिखी थी कि कहानियों का पहला संग्रह ‘प्लेन ऑक्स फ्रॉम द हिल’ छापा। इंडियन रेलवे लाइब्रेरी सीरीज के तहत छह कहानियों के संग्रह वाली इस किताब का दाम एक रुपया था। करीब 25 साल तक ए.एच. व्हीलर के ग्राहकों व कर्मचारियों में सिर्फ अंग्रेज़ व एंग्लो इंडियन लोग ही हुआ करते थे।

टी.के. बनर्जी का योगदान

एमिली एडवर्ड मोरे के कलकत्ता दफ्तर में टी.के. बनर्जी नामक एक कर्मचारी काम करता था, जो कि एकाउंटस व ऑडिटिंग में माहिर था। उसका तबादला इलाहाबाद कर दिया और वह मोरे के काफ़ी करीब आ गया। उसने उन्हें रेलवे के विज्ञापन का काम देखने के लिए विज्ञापन कंपनी खोलने की सलाह दी। वह जितना मालिक के करीब आता जा रहा था, अंग्रेज़ कर्मचारी उतना ही उसके विरुद्ध होते जा रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह कंपनी घाटे में जाने लगी। जब तमाम लोग कंपनी छोड़कर जाने लगे तो इसका परिणाम यह निकला कि मोरे ने टी.के. बनर्जी को सीनियर वर्किंग पार्टनर बना दिया और खुद गुडविल पार्टनर बन गए। कंपनी फिर से मुनाफा कमाने लगी। बाद में वे सब कुछ बनर्जी के हवाले करके ब्रिटेन लौट गए, जहां उनकी मृत्यु हो गई। टी. के. बनर्जी का 26 सितंबर, 1944 को देहांत हो गया और उनके बेटों ने यह धंधा संभाल लिया। जाने माने लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक बार कहा था कि आज़ादी की लड़ाई में ए.एच. व्हीलर की भी बहुत बड़ी भूमिका रही, क्योंकि उन दिनों हम लोग सुबह-सुबह अपने नेताओं के विचारों को जानने के लिए अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंच जाया करते थे। आज इस परिवार की तीसरी पीढ़ी यह व्यवसाय संभाल रही है। इस कंपनी के पांच हज़ार कर्मचारी हैं।

कुछ समय पहले व्हीलर कंपनी ने मुंबई सेंट्रल स्थित अपने स्टॉल को हैरिटेज का दर्जा दिए जाने के लिए सरकार को पत्र लिखा। बरमा टीक से बने इस स्टॉल को 1905 में इंग्लैंड से तैयार करवाकर जहाज़ के जरिए इलाहाबाद लाया गया था। यह फोल्डिंग स्टॉल है। बाद में 1930 में उसे मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर स्थापित कर दिया गया, जहां यह आज भी वैसा ही है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ए.एच. व्हीलर
  2. मियां-बीवी के झगड़े ने रखी एएच व्हीलर की नींव (हिन्दी) हिन्दुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2015।
  3. विनम्र। एएच व्हीलर की अजीब दास्तान (हिन्दी) नया इंडिया। अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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