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'''ईनियस ताक्तिकस''' संभवत: स्तींफालस का निवासी जो ई.पू. 367 में आर्कादी संघ का सेनापति था। इसने युद्ध विद्या के संबंध में अनके ग्रंथों की रचना की थी जिनका सारसंग्रह पिर्हस ने किया था। दुर्गरक्षा संबंधी इसकी रचना नष्ट होने से बच गई हैं। इस ग्रंथ से पता चलता है कि उन दिनों दुर्ग की रक्षा, बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक विरोधी गुटों से की जानी अधिक आवश्यक थी। भाषा की दृष्टि से भी इस अवशिष्ट रचना का इसलिए महत्व है कि इसमें अत्तिका की भाषा से बाहर की यूनानी भाषा का स्वरूप देखने को मिलता है जिससे पश्चात्‌कालीन जनसामान्य की भाषा के तत्वों का कुछ पता चलता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=29 |url=}}</ref>
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'''ईनियस ताक्तिकस''' संभवत: स्तींफालस का निवासी जो ई.पू. 367 में आर्कादी संघ का सेनापति था। इसने युद्ध विद्या के संबंध में अनके ग्रंथों की रचना की थी जिनका सारसंग्रह पिर्हस ने किया था। दुर्गरक्षा संबंधी इसकी रचना नष्ट होने से बच गई हैं। इस ग्रंथ से पता चलता है कि उन दिनों दुर्ग की रक्षा, बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक विरोधी गुटों से की जानी अधिक आवश्यक थी। भाषा की दृष्टि से भी इस अवशिष्ट रचना का इसलिए महत्व है कि इसमें अत्तिका की भाषा से बाहर की यूनानी भाषा का स्वरूप देखने को मिलता है जिससे पश्चात्‌कालीन जनसामान्य की भाषा के तत्वों का कुछ पता चलता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=29 |url=}}</ref>
  
  

10:40, 29 जून 2018 के समय का अवतरण

ईनियस ताक्तिकस संभवत: स्तींफालस का निवासी जो ई.पू. 367 में आर्कादी संघ का सेनापति था। इसने युद्ध विद्या के संबंध में अनके ग्रंथों की रचना की थी जिनका सारसंग्रह पिर्हस ने किया था। दुर्गरक्षा संबंधी इसकी रचना नष्ट होने से बच गई हैं। इस ग्रंथ से पता चलता है कि उन दिनों दुर्ग की रक्षा, बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक विरोधी गुटों से की जानी अधिक आवश्यक थी। भाषा की दृष्टि से भी इस अवशिष्ट रचना का इसलिए महत्व है कि इसमें अत्तिका की भाषा से बाहर की यूनानी भाषा का स्वरूप देखने को मिलता है जिससे पश्चात्‌कालीन जनसामान्य की भाषा के तत्वों का कुछ पता चलता है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 29 |

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