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एयर ब्रश एयर ब्रश (Air Brush) अथवा वायुकूर्चिका एक यंत्र है जो संपीडित वायु से चलता है और चित्र आदि रँगने के काम में आता है। इसे हम वायुतूलिका भी कह सकते हैं। बड़े एयर ब्रश को साधारणत: स्प्रेगन कहते हैं। इसे हम झींसीमार या सीकरयंत्र कह सकते हैं। इससे कपड़ा, फर्नीचर, मोटरकार, भवन, रेल पुल आदि रँगे जाते हैं। बड़े यंत्रों से सीमेंट मिश्रण भी दीवालों पर लगाया जा सकता है। इन सब यंत्रों का सिद्धांत यही है कि जब संपीडित वायु सँकरी नली से निकलती है तो वह अपने मार्ग में पड़नेवाले द्रव को झींसी या फुहार में बदल देती है और यह झींसी रँगी जानेवाली वस्तु पर जा चिपकती है। द्रव रंग, वार्निश, आदि दो प्रकार से वायुमार्ग में डाले जाते हैं। एक रीति में रंग की कटोरी को वायुनलिका के ऊपर रखकर रंग को वायुमार्ग में टपकने दिया जाता है। दूसरी रीति में कटोरी को नीचे रखा जाता है। इस दशा में दोनों ओर खुली एक नलिका का नीचेवाला सिरा रंग में डूबा रहता है और दूसरा सिरा वायुमार्ग में पहुँचा रहता है। वायु अपने वेग के कारण इस नलिका द्वारा रंग चूस लेती है। रंग आदि के पतला या गाढ़ा होने के अनुसार वायुकूर्चिका या झींसीमार पर छोटे बड़े का मुख लगाया जा सकता है।
आरंभ में फोटोग्राफो को सुधारने के लिए छोटी वायुकूर्चिकाओं का असफल प्रयोग हुआ। इससे बारीक से बारीक रेखाएँ खींची जा सकती हैं और बढ़िया छाया और प्रकाश का काम भी हो सकता है। फुहार की मोटाई एक घुंडी या घोड़े (ट्रिगर) को दबाने से नियंत्रित की जाती है। अब अधिकांश रँगाई का काम झींसी से ही किया जाता है। इससे बहुत समय बचता है और रंग सर्वत्र एक समान चढ़ता है। कई झींसीमार लगे स्वयंचालित यंत्र में एक ओर से बिना रँगा मोटर घुसता है और दूसरी ओर से वही चमचमाता रँगा हुआ निकलता है, और इस क्रिया में एक मिनट से भी कम समय लगता है।
वायुसंपीडन के लिए साधारण विद्युत् मोटर या इंजन से चलनेवाले संपीडकों का प्रयोग होता है, परंतु छोटे यंत्रों के लिए पदचालित पंपों से काम अच्छी तरह चल जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 245 |