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*बुंदेला सरदार चम्पतराय के पुत्र और उत्तराधिकारी का नाम छत्रसाल था।  
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[[चित्र:1987-Chhatrasal.jpg|thumb|छत्रसाल के सम्मान में जारी भारतीय डाक टिकट]]
*छत्रसाल ने [[शिवाजी]] के विरुद्ध मुग़ल बादशाह [[औरंगज़ेब]] की फ़ौजों का साथ दिया, लेकिन बाद में उसे इस मराठा नेता से प्रेरणा मिली।
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बुंदेला सरदार [[चम्पतराय]] के पुत्र और उत्तराधिकारी का नाम छत्रसाल था। अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की आशा के साथ उसने [[शिवाजी]] की तरह साहस और जोख़िमपूर्ण जीवन बिताने का फ़ैसला किया। [[बुन्देलखंड]] की भूमि  प्राकृतिक सुषमा और शौर्य पराक्रम की भूमि है, जो [[विंध्याचल पर्वत]] की पहाडि़यों से घिरी है। [[चंपतराय]] जिन्होंने बुन्देलखंड में [[बुन्देला]] राज्य की आधार शिला रखी थी, महाराज छत्रसाल ने उस बुन्देला राज्य का विस्तार किया और उसे समृद्धि प्रदान की।
*अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की आशा के साथ उसने शिवाजी की तरह साहस और जोख़िमपूर्ण जीवन बिताने का फ़ैसला किया।  
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*दक्षिण के फ़ौजी अभियान से लौटने के बाद छत्रसाल ने [[बुंदेलखण्ड]] और [[मालवा]] के असंतुष्ट हिन्दुओं के हितों की रक्षा का बीड़ा उठाया।
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छत्रसाल के [[पिता]] चंपतराय जब [[मुग़ल]] सेना से घिर गये तो उन्होंने अपनी पत्नी 'रानी लाल कुंवरि' के साथ अपनी ही कटार से प्राण त्याग दिये, किंतु मुग़लों को स्वीकार नहीं किया। छत्रसाल उस समय चौदह वर्ष की आयु के थे। अपने बड़े भाई 'अंगद राय' के साथ वह कुछ दिनों मामा के घर रहे, किंतु उनके मन में सदैव मुग़लों से बदला लेकर पितृ ऋण से मुक्त होने की अभिलाषा थी। बालक छत्रसाल मामा के यहाँ रहता हुआ [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्रों]] का संचालन और युद्ध कला में पारंगत होता रहा। दस वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल सैनिक बन गए थे। अंगद राय ने जब सैनिक बनकर [[जयसिंह|राजा जयसिंह]] के यहाँ कार्य करना चाहा तो छोटे भाई छत्रसाल को यह सहन नहीं हुआ। छत्रसाल ने अपनी माता के कुछ गहने बेचकर एक  छोटी सा सैनिक दल तैयार करने का विचार किया।  छोटी सी पूंजी से उन्होंने 30 घुड़सवार और 347 पैदल सैनिकों का एक दल बनाया और मुग़लों पर आक्रमण करने की तैयारी की। 22 वर्ष की आयु में छत्रसाल युद्ध भूमि में कूद पड़े।
*मुग़लों के ख़िलाफ़ उसने कई लड़ाइयाँ जीतीं और 1671 ई. तक पूर्वी मालवा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया।
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==जीवन परिचय==
*उसने अपनी राजधानी पन्ना को बनाया और 1731 ई. तक मृत्यु पर्यन्त शासन किया।
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'बुंदेलखंड के शिवाजी' के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। इस बहादुर वीर बालक की माता जी का नाम लालकुँवरि था और पिता का नाम चम्पतराय था। चम्पतराय बहुत ही  वीर व बहादुर थे। चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में लालकुँवरि भी साथ ही  रहती थीं और अपने पति को उत्साहित करती रहती थीं। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। यही युद्ध के प्रभाव उसके जीवन पर असर डालते रहे। माता लालकुँवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियाँ बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं। अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या 'देवकुंअरि'  से विवाह किया।
*छत्रसाल स्वयं कवि थे।
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==दूरदर्शी==
*छत्तरपुर  इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कला प्रेमी और भक्त के रुप में थी।
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कविलाल ने लिखा है -
*बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई।
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''संवत सत्रैसे अट्ठाईस लिखे आगरे बीस लागत बरस बाइसई उमड़ चलयो अवनीश''<br />
*छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग हिरदेशाह, दूसरा जगतराय और तीसरा पेशवा को मिला।
 
*छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन 1731 में हुई थी।  
 
*छत्रसाल के समय तक बुंदेलखंड की सीमायें अत्यंत व्यापक थीं। इस प्रदेश में [[उत्तर प्रदेश]] के [[झाँसी]], हमीरपुर, जालौन, बाँदा, [[मध्य प्रदेश]] के सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, मण्डला, मालवा संघ के शिवपुरी, कटेरा, पिछोर, कोलारस, भिण्ड और मोण्डेर के ज़िले और परगने शामिल थे।
 
  
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छत्रसाल बहुत दूरदर्शी थे। उन्होंने ऐसे लोगों को पहले हटाया जो मुग़लों की मदद कर रहे थे। दक्षिण भारत में जो स्थान [[समर्थ रामदास|समर्थगुरु रामदास]] का है वही स्थान बुन्देलखंड में 'प्राणनाथ' का रहा है, जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति [[शिवाजी]] ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता से, चातुर्यपूर्ण रणनीति से और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था। प्राणनाथ छत्रसाल के मार्ग दर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। छत्रसाल एक आदर्शवादी, स्वतंत्रता प्रेमी, गुणी और धर्मनिरपेक्ष [[हिन्दू]] शासक थे। उन्होंने [[मुस्लिम]] कन्याओं को उचित सम्मान दिया, महिलाओं की रक्षा की और मुस्लिम सैनिकों को अपने सैन्य बल में सम्मानित पद देकर उनका विश्वास प्राप्त किया। छत्रसाल मुग़लों के विरोधी नहीं थे, वह मुग़ल साम्राज्य के विरोधी थे।
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*सन 1668 में जब शिवाजी से भेंट हुई तो शिवाजी ने छत्रसाल को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियों का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी एवं समर्थ गुरु रामदास के आशीषों सहित 'भवानी’ तलवार भेंट की-
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करो देस के राज छतारे
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हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
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दौर देस मुग़लन को मारो
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दपटि दिली के दल संहारो।
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तुम हो महावीर मरदाने
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करि हो भूमि भोग हम जाने।
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जो इतही तुमको हम राखें
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तो सब सुयस हमारे भाषें।</poem>
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==औरंगज़ेब से युद्ध==
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[[औरंगज़ेब]] छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। उसने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हज़ार सैनिकों की टुकडी  [[मुग़ल]] सरदारों के साथ छत्रसाल का पीछा करने के लिए भेजी थी। छत्रसाल अपने रणकौशल व छापामार युद्ध नीति के बल पर मुग़लों के छक्के छुड़ाता रहा। छत्रसाल को मालूम था कि मुग़ल छलपूर्ण घेराबंदी में सिद्धहस्त है। उनके पिता चंपतराय मुग़लों से धोखा खा चुके थे। छत्रसाल ने मुग़ल सेना से [[इटावा]], [[खिमलासा]], [[गढ़ाकोटा]], धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, रानगिरि, शाहगढ़, वांसाकला सहित अनेक स्थानों पर लड़ाई लड़ी। छत्रसाल की शक्ति बढ़ती गयी। बन्दी बनाये गये मुग़ल सरदारों से छत्रसाल ने दंड वसूला और उन्हें मुक्त कर दिया। बुन्देलखंड से मुग़लों का एकछत्र शासन छत्रसाल ने समाप्त कर दिया।
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==छत्रसाल का राज्याभिषेक==
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छत्रसाल के राष्ट्र प्रेम, वीरता  और हिन्दूत्व के कारण छत्रसाल को भारी जन समर्थन प्राप्त था। छत्रसाल ने एक विशाल सेना तैयार कर ली। इसमें 72 प्रमुख सरदार थे। वसिया के युद्ध के बाद मुग़लों ने छत्रसाल को 'राजा' की मान्यता प्रदान की थी। उसके बाद छत्रसाल ने '[[कालिंजर|कालिंजर का क़िला]]' भी जीता और मांधाता चौबे को क़िलेदार घोषित किया। छत्रसाल ने 1678 में पन्ना में राजधानी स्थापित की। विक्रम संवत 1744 मे योगीराज प्राणनाथ के निर्देशन में छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था।
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छत्रसाल के शौर्य और  पराक्रम से आहत होकर मुग़ल सरदार तहवर ख़ाँ, अनवर ख़ाँ, सहरूदीन, हमीद बुन्देलखंड से [[दिल्ली]] का रुख़ कर चुके थे। बहलोद ख़ाँ छत्रसाल के साथ लड़ाई में मारा गया  था। मुराद ख़ाँ, दलेह ख़ाँ, सैयद अफगन जैसे सिपहसलार [[बुन्देला]] वीरों से पराजित होकर भाग गये थे। छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ आजीवन हिन्दू मुस्लिम एकता के संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश '[[कुलजम स्वरूप]]' में एकत्र किये गये। पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ती है कि जहाँ तक छत्रसाल के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयी। छत्रसाल के विशाल राज्य के विस्तार के बारे में यह पंक्तियाँ गौरव के साथ दोहरायी जाती है- 
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'इत यमुना उत नर्मदा इत चंबल उत टोस
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छत्रसाल सों लरन की रही न काहूहौस।'
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छत्रसाल अपने समय के महान् शूरवीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल को अपने जीवन की संध्या में भी आक्रमणों से जूझना पडा। 1729 में सम्राट मुहम्मद शाह के शासन काल में [[प्रयाग]] के सूबेदार बंगस ने छत्रसाल पर आक्रमण किया। उसकी इच्छा एरच, कौच, सेहुड़ा, सोपरी, जालोन पर अधिकार कर लेने की थी। छत्रसाल को मुग़लों से लड़ने में दतिया, सेहुड़ा के राजाओं ने सहयोग नहीं दिया। उनका पुत्र हृदयशाह भी उदासीन होकर अपनी जागीर में बैठा रहा। तब छत्रसाल ने  [[बाजीराव प्रथम|बाजीराव पेशवा]] को संदेश भेजा -
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<poem>'जो गति मई गजेन्द्र की सोगति पहुंची आय
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बाजी जात बुन्देल की राखो बाजीराव'</poem>
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बाजीराव सेना सहित सहायता के लिये पहुंचा और उसने बंगस को 30 मार्च 1729 को पराजित कर दिया। बंगस हार कर वापिस लौट गया।
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==विजय उत्सव==
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4 अप्रैल 1729 को छत्रसाल ने विजय उत्सव मनाया। इस विजयोत्सव में बाजीराव का अभिनन्दन किया गया और बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र स्वीकार कर अपने राज्य का तीसरा भाग बाजीराव पेशवा को सौंप दिया।
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*प्रथम पुत्र हृदयशाह पन्ना, मऊ, गढ़कोटा, कालिंजर, एरिछ, धामोनी इलाका के ज़मींदार हो गये जिसकी आमदनी 42 लाख रू. थी।
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*दूसरे पुत्र जगतराय को [[जैतपुर]], अजयगढ़, चरखारी, नांदा, सरिला, इलाका सौपा गया जिसकी आय 36 लाख थी।
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*[[बाजीराव प्रथम|बाजीराव पेशवा]] को काल्पी, जालौन, गुरसराय, गुना, हटा, सागर, हृदय नगर मिलाकर 33 लाख आय की जागीर सौपी गयी। 
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छत्रसाल का राज्य प्रसिद्ध चंदेल महाराजा कीर्तिवर्धन से बड़ा था। छत्रसाल तलवार के धनी थे और कुशल शस्त्र संचालक भी थे। वह शस्त्रों का आदर करते थे। वह अपनी सभा में विद्वानों को सम्मानित करते थे। वह स्वयं भी बहुत विद्वान् थे। वह  कवि थे, शांति के समय में कविता करना छत्रसाल का प्रिय कार्य रहा है।
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शौर्य और सृजन की ऐसी उपलब्धि बेमिसाल है-
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<poem>इत जमना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस।
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छत्रसाल से लरन की रही न काह होंस।</poem>
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==भूषण द्वारा प्रशंसा==
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कविराज [[भूषण]]  ने शिवाजी के दरबार में रहते हुए छत्रसाल की वीरता और बहादुरी की प्रशंसा में अनेक कविताएँ  ने लिखीं। 'छत्रसाल दशक' में इस वीर बुंदेले के शौर्य और पराक्रम की गाथा गाई गई है। बुंदेलखंड का शक्तिशाली राज्य छत्रसाल ने ही बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी [[महोबा]] थी। छत्रसाल धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में व शांतिकाल में दैनिक पूजा अर्चना करना छत्रसाल का कार्य रहा। छत्रसाल कलम और तलवार दोनों के धनी थे। वे एक अच्छे कवि थे जिनकी भक्ति तथा नीति संबंधी कविताएँ [[ब्रजभाषा]] में प्राप्त होती हैं। इनके आश्रित दरबारी कवियों में [[भूषण]], लालकवि, हरिकेश, निवाज, ब्रजभूषण आदि मुख्य हैं। भूषण ने आपकी प्रशंसा में जो कविताएँ लिखीं वे 'छत्रसाल दशक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 'छत्रप्रकाश' जैसे चरितकाव्य के प्रणेता गोरेलाल उपनाम 'लाल कवि' आपके ही दरबार में थे। यह ग्रंथ तत्कालीन ऐतिहासिक सूचनाओं से भरा है, साथ ही छत्रसाल की जीवनी के लिए उपयोगी है।
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==निधन==
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इस वीर बहादुर छत्रसाल का 83 वर्ष की अवस्था में 13 मई 1731 ईस्वी को मृत्यु हो गयी। छत्रसाल के लिए कहावत है -
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<poem>'छत्ता तेरे राज में,
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धक-धक धरती होय।
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जित-जित घोड़ा मुख करे,
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तित-तित फत्ते होय।'
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</poem>
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*छत्तरपुर  इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कला प्रेमी और भक्त के रूप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल के समय तक बुंदेलखंड की सीमायें अत्यंत व्यापक थीं। इस प्रदेश में [[उत्तर प्रदेश]] के [[झाँसी]], [[हमीरपुर उत्तर प्रदेश|हमीरपुर]], [[जालौन]], [[बांदा|बाँदा]], [[मध्य प्रदेश]] के सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, [[होशंगाबाद]], मण्डला, मालवा संघ के शिवपुरी, कटेरा, पिछोर, कोलारस, भिण्ड और मोण्डेर के ज़िले और परगने शामिल थे।
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14:22, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

छत्रसाल के सम्मान में जारी भारतीय डाक टिकट

बुंदेला सरदार चम्पतराय के पुत्र और उत्तराधिकारी का नाम छत्रसाल था। अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की आशा के साथ उसने शिवाजी की तरह साहस और जोख़िमपूर्ण जीवन बिताने का फ़ैसला किया। बुन्देलखंड की भूमि प्राकृतिक सुषमा और शौर्य पराक्रम की भूमि है, जो विंध्याचल पर्वत की पहाडि़यों से घिरी है। चंपतराय जिन्होंने बुन्देलखंड में बुन्देला राज्य की आधार शिला रखी थी, महाराज छत्रसाल ने उस बुन्देला राज्य का विस्तार किया और उसे समृद्धि प्रदान की।

छत्रसाल के पिता चंपतराय जब मुग़ल सेना से घिर गये तो उन्होंने अपनी पत्नी 'रानी लाल कुंवरि' के साथ अपनी ही कटार से प्राण त्याग दिये, किंतु मुग़लों को स्वीकार नहीं किया। छत्रसाल उस समय चौदह वर्ष की आयु के थे। अपने बड़े भाई 'अंगद राय' के साथ वह कुछ दिनों मामा के घर रहे, किंतु उनके मन में सदैव मुग़लों से बदला लेकर पितृ ऋण से मुक्त होने की अभिलाषा थी। बालक छत्रसाल मामा के यहाँ रहता हुआ अस्त्र-शस्त्रों का संचालन और युद्ध कला में पारंगत होता रहा। दस वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल सैनिक बन गए थे। अंगद राय ने जब सैनिक बनकर राजा जयसिंह के यहाँ कार्य करना चाहा तो छोटे भाई छत्रसाल को यह सहन नहीं हुआ। छत्रसाल ने अपनी माता के कुछ गहने बेचकर एक छोटी सा सैनिक दल तैयार करने का विचार किया। छोटी सी पूंजी से उन्होंने 30 घुड़सवार और 347 पैदल सैनिकों का एक दल बनाया और मुग़लों पर आक्रमण करने की तैयारी की। 22 वर्ष की आयु में छत्रसाल युद्ध भूमि में कूद पड़े।

जीवन परिचय

'बुंदेलखंड के शिवाजी' के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। इस बहादुर वीर बालक की माता जी का नाम लालकुँवरि था और पिता का नाम चम्पतराय था। चम्पतराय बहुत ही वीर व बहादुर थे। चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में लालकुँवरि भी साथ ही रहती थीं और अपने पति को उत्साहित करती रहती थीं। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। यही युद्ध के प्रभाव उसके जीवन पर असर डालते रहे। माता लालकुँवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियाँ बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं। अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या 'देवकुंअरि' से विवाह किया।

दूरदर्शी

कविलाल ने लिखा है - संवत सत्रैसे अट्ठाईस लिखे आगरे बीस लागत बरस बाइसई उमड़ चलयो अवनीश

छत्रसाल बहुत दूरदर्शी थे। उन्होंने ऐसे लोगों को पहले हटाया जो मुग़लों की मदद कर रहे थे। दक्षिण भारत में जो स्थान समर्थगुरु रामदास का है वही स्थान बुन्देलखंड में 'प्राणनाथ' का रहा है, जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता से, चातुर्यपूर्ण रणनीति से और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था। प्राणनाथ छत्रसाल के मार्ग दर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। छत्रसाल एक आदर्शवादी, स्वतंत्रता प्रेमी, गुणी और धर्मनिरपेक्ष हिन्दू शासक थे। उन्होंने मुस्लिम कन्याओं को उचित सम्मान दिया, महिलाओं की रक्षा की और मुस्लिम सैनिकों को अपने सैन्य बल में सम्मानित पद देकर उनका विश्वास प्राप्त किया। छत्रसाल मुग़लों के विरोधी नहीं थे, वह मुग़ल साम्राज्य के विरोधी थे।

  • सन 1668 में जब शिवाजी से भेंट हुई तो शिवाजी ने छत्रसाल को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियों का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी एवं समर्थ गुरु रामदास के आशीषों सहित 'भवानी’ तलवार भेंट की-

करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुग़लन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषें।

औरंगज़ेब से युद्ध

औरंगज़ेब छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। उसने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हज़ार सैनिकों की टुकडी मुग़ल सरदारों के साथ छत्रसाल का पीछा करने के लिए भेजी थी। छत्रसाल अपने रणकौशल व छापामार युद्ध नीति के बल पर मुग़लों के छक्के छुड़ाता रहा। छत्रसाल को मालूम था कि मुग़ल छलपूर्ण घेराबंदी में सिद्धहस्त है। उनके पिता चंपतराय मुग़लों से धोखा खा चुके थे। छत्रसाल ने मुग़ल सेना से इटावा, खिमलासा, गढ़ाकोटा, धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, रानगिरि, शाहगढ़, वांसाकला सहित अनेक स्थानों पर लड़ाई लड़ी। छत्रसाल की शक्ति बढ़ती गयी। बन्दी बनाये गये मुग़ल सरदारों से छत्रसाल ने दंड वसूला और उन्हें मुक्त कर दिया। बुन्देलखंड से मुग़लों का एकछत्र शासन छत्रसाल ने समाप्त कर दिया।

छत्रसाल का राज्याभिषेक

छत्रसाल के राष्ट्र प्रेम, वीरता और हिन्दूत्व के कारण छत्रसाल को भारी जन समर्थन प्राप्त था। छत्रसाल ने एक विशाल सेना तैयार कर ली। इसमें 72 प्रमुख सरदार थे। वसिया के युद्ध के बाद मुग़लों ने छत्रसाल को 'राजा' की मान्यता प्रदान की थी। उसके बाद छत्रसाल ने 'कालिंजर का क़िला' भी जीता और मांधाता चौबे को क़िलेदार घोषित किया। छत्रसाल ने 1678 में पन्ना में राजधानी स्थापित की। विक्रम संवत 1744 मे योगीराज प्राणनाथ के निर्देशन में छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था।

छत्रसाल के शौर्य और पराक्रम से आहत होकर मुग़ल सरदार तहवर ख़ाँ, अनवर ख़ाँ, सहरूदीन, हमीद बुन्देलखंड से दिल्ली का रुख़ कर चुके थे। बहलोद ख़ाँ छत्रसाल के साथ लड़ाई में मारा गया था। मुराद ख़ाँ, दलेह ख़ाँ, सैयद अफगन जैसे सिपहसलार बुन्देला वीरों से पराजित होकर भाग गये थे। छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ आजीवन हिन्दू मुस्लिम एकता के संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश 'कुलजम स्वरूप' में एकत्र किये गये। पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ती है कि जहाँ तक छत्रसाल के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयी। छत्रसाल के विशाल राज्य के विस्तार के बारे में यह पंक्तियाँ गौरव के साथ दोहरायी जाती है- 'इत यमुना उत नर्मदा इत चंबल उत टोस छत्रसाल सों लरन की रही न काहूहौस।'

छत्रसाल अपने समय के महान् शूरवीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल को अपने जीवन की संध्या में भी आक्रमणों से जूझना पडा। 1729 में सम्राट मुहम्मद शाह के शासन काल में प्रयाग के सूबेदार बंगस ने छत्रसाल पर आक्रमण किया। उसकी इच्छा एरच, कौच, सेहुड़ा, सोपरी, जालोन पर अधिकार कर लेने की थी। छत्रसाल को मुग़लों से लड़ने में दतिया, सेहुड़ा के राजाओं ने सहयोग नहीं दिया। उनका पुत्र हृदयशाह भी उदासीन होकर अपनी जागीर में बैठा रहा। तब छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को संदेश भेजा -

'जो गति मई गजेन्द्र की सोगति पहुंची आय
बाजी जात बुन्देल की राखो बाजीराव'

बाजीराव सेना सहित सहायता के लिये पहुंचा और उसने बंगस को 30 मार्च 1729 को पराजित कर दिया। बंगस हार कर वापिस लौट गया।

विजय उत्सव

4 अप्रैल 1729 को छत्रसाल ने विजय उत्सव मनाया। इस विजयोत्सव में बाजीराव का अभिनन्दन किया गया और बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र स्वीकार कर अपने राज्य का तीसरा भाग बाजीराव पेशवा को सौंप दिया।

  • प्रथम पुत्र हृदयशाह पन्ना, मऊ, गढ़कोटा, कालिंजर, एरिछ, धामोनी इलाका के ज़मींदार हो गये जिसकी आमदनी 42 लाख रू. थी।
  • दूसरे पुत्र जगतराय को जैतपुर, अजयगढ़, चरखारी, नांदा, सरिला, इलाका सौपा गया जिसकी आय 36 लाख थी।
  • बाजीराव पेशवा को काल्पी, जालौन, गुरसराय, गुना, हटा, सागर, हृदय नगर मिलाकर 33 लाख आय की जागीर सौपी गयी।

छत्रसाल का राज्य प्रसिद्ध चंदेल महाराजा कीर्तिवर्धन से बड़ा था। छत्रसाल तलवार के धनी थे और कुशल शस्त्र संचालक भी थे। वह शस्त्रों का आदर करते थे। वह अपनी सभा में विद्वानों को सम्मानित करते थे। वह स्वयं भी बहुत विद्वान् थे। वह कवि थे, शांति के समय में कविता करना छत्रसाल का प्रिय कार्य रहा है। शौर्य और सृजन की ऐसी उपलब्धि बेमिसाल है-

इत जमना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस।
छत्रसाल से लरन की रही न काह होंस।

भूषण द्वारा प्रशंसा

कविराज भूषण ने शिवाजी के दरबार में रहते हुए छत्रसाल की वीरता और बहादुरी की प्रशंसा में अनेक कविताएँ ने लिखीं। 'छत्रसाल दशक' में इस वीर बुंदेले के शौर्य और पराक्रम की गाथा गाई गई है। बुंदेलखंड का शक्तिशाली राज्य छत्रसाल ने ही बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी महोबा थी। छत्रसाल धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में व शांतिकाल में दैनिक पूजा अर्चना करना छत्रसाल का कार्य रहा। छत्रसाल कलम और तलवार दोनों के धनी थे। वे एक अच्छे कवि थे जिनकी भक्ति तथा नीति संबंधी कविताएँ ब्रजभाषा में प्राप्त होती हैं। इनके आश्रित दरबारी कवियों में भूषण, लालकवि, हरिकेश, निवाज, ब्रजभूषण आदि मुख्य हैं। भूषण ने आपकी प्रशंसा में जो कविताएँ लिखीं वे 'छत्रसाल दशक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 'छत्रप्रकाश' जैसे चरितकाव्य के प्रणेता गोरेलाल उपनाम 'लाल कवि' आपके ही दरबार में थे। यह ग्रंथ तत्कालीन ऐतिहासिक सूचनाओं से भरा है, साथ ही छत्रसाल की जीवनी के लिए उपयोगी है।

निधन

इस वीर बहादुर छत्रसाल का 83 वर्ष की अवस्था में 13 मई 1731 ईस्वी को मृत्यु हो गयी। छत्रसाल के लिए कहावत है -

'छत्ता तेरे राज में,
धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा मुख करे,
तित-तित फत्ते होय।'

  • छत्तरपुर इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कला प्रेमी और भक्त के रूप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल के समय तक बुंदेलखंड की सीमायें अत्यंत व्यापक थीं। इस प्रदेश में उत्तर प्रदेश के झाँसी, हमीरपुर, जालौन, बाँदा, मध्य प्रदेश के सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, मण्डला, मालवा संघ के शिवपुरी, कटेरा, पिछोर, कोलारस, भिण्ड और मोण्डेर के ज़िले और परगने शामिल थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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