"रानी गाइदिनल्यू" के अवतरणों में अंतर
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+ | '''रानी गाइदिनल्यू''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rani Gaidinliu'' जन्म: [[26 जनवरी]], [[1915]] - मृत्यु: [[17 फ़रवरी]], [[1993]]) ने [[भारत]] को आज़ादी दिलाने के लिए [[नागालैण्ड]] में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था। [[झाँसी]] की रानी [[लक्ष्मीबाई]] के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है। जब रानी गाइदिनल्यू को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने गिरफ्तार कर लिया, तब [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] ने कई वर्षों की सज़ा काट चुकी रानी को रिहाई दिलाने के प्रयास किए। किंतु अंग्रेज़ों ने उनकी इस बात को नहीं माना, क्योंकि वे रानी से बहुत भयभीत थे और उन्हें अपने लिए ख़तरनाक मानते थे। | ||
==जन्म तथा स्वभाव== | ==जन्म तथा स्वभाव== | ||
'नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई' कही जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, 1915 ई. को [[मणिपुर]] राज्य के पश्चिमी ज़िले में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की उम्र में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेज़ों ने उन्हें [[29 अगस्त]], [[1931]] को फांसी पर लटका दिया। | 'नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई' कही जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, 1915 ई. को [[मणिपुर]] राज्य के पश्चिमी ज़िले में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की उम्र में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेज़ों ने उन्हें [[29 अगस्त]], [[1931]] को फांसी पर लटका दिया। | ||
====क्रांतिकारी जीवन==== | ====क्रांतिकारी जीवन==== | ||
अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने [[गांधी जी]] के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे। नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। [[अंग्रेज़]] उसे बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था। | अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने [[गांधी जी]] के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे। नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। [[अंग्रेज़]] उसे बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था। | ||
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इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुले आम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि [[17 अप्रैल]], [[1932]] को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं। उस पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उसने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए। | इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुले आम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि [[17 अप्रैल]], [[1932]] को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं। उस पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उसने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए। | ||
====अंग्रेज़ों का भय==== | ====अंग्रेज़ों का भय==== | ||
[[1937]] में [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] को [[असम]] जाने पर गाइदिनल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उसे 'नागाओं की रानी' की संज्ञा दी। नेहरू जी ने उसकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन [[मणिपुर]] के एक देशी रियासत होने के कारण इस कार्य में सफलता नहीं मिली। [[अंग्रेज़]] अब भी उसे ख़तरनाक मानते थे और उसकी रिहाई से भयभीत थे। | [[1937]] में [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] को [[असम]] जाने पर गाइदिनल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उसे 'नागाओं की रानी' की संज्ञा दी। नेहरू जी ने उसकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन [[मणिपुर]] के एक देशी रियासत होने के कारण इस कार्य में सफलता नहीं मिली। [[अंग्रेज़]] अब भी उसे ख़तरनाक मानते थे और उसकी रिहाई से भयभीत थे। | ||
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[[1947]] में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ [[1960]] में भूमिगत हो जाना पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए [[प्रधानमंत्री]] की ओर से ताम्रपत्र देकर और [[राष्ट्रपति]] की ओर से '[[पद्मभूषण]]' की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया। | [[1947]] में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ [[1960]] में भूमिगत हो जाना पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए [[प्रधानमंत्री]] की ओर से ताम्रपत्र देकर और [[राष्ट्रपति]] की ओर से '[[पद्मभूषण]]' की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया। | ||
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11:34, 20 जनवरी 2013 का अवतरण
रानी गाइदिनल्यू
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पूरा नाम | रानी गाइदिनल्यू |
जन्म | 26 जनवरी, 1915 |
जन्म भूमि | मणिपुर |
मृत्यु | 17 फ़रवरी, 1993 |
कर्म भूमि | मणिपुर |
कर्म-क्षेत्र | स्वतंत्रता सेनानी |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मभूषण |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है। |
रानी गाइदिनल्यू (अंग्रेज़ी: Rani Gaidinliu जन्म: 26 जनवरी, 1915 - मृत्यु: 17 फ़रवरी, 1993) ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए नागालैण्ड में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है। जब रानी गाइदिनल्यू को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार कर लिया, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कई वर्षों की सज़ा काट चुकी रानी को रिहाई दिलाने के प्रयास किए। किंतु अंग्रेज़ों ने उनकी इस बात को नहीं माना, क्योंकि वे रानी से बहुत भयभीत थे और उन्हें अपने लिए ख़तरनाक मानते थे।
जन्म तथा स्वभाव
'नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई' कही जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, 1915 ई. को मणिपुर राज्य के पश्चिमी ज़िले में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की उम्र में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेज़ों ने उन्हें 29 अगस्त, 1931 को फांसी पर लटका दिया।
क्रांतिकारी जीवन
अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने गांधी जी के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे। नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। अंग्रेज़ उसे बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था।
गिरफ़्तारी
इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुले आम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल, 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं। उस पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उसने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए।
अंग्रेज़ों का भय
1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को असम जाने पर गाइदिनल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उसे 'नागाओं की रानी' की संज्ञा दी। नेहरू जी ने उसकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन मणिपुर के एक देशी रियासत होने के कारण इस कार्य में सफलता नहीं मिली। अंग्रेज़ अब भी उसे ख़तरनाक मानते थे और उसकी रिहाई से भयभीत थे।
रिहाई तथा सम्मान
1947 में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ 1960 में भूमिगत हो जाना पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र देकर और राष्ट्रपति की ओर से 'पद्मभूषण' की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 720 |
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