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'''त्वरित अपरदन''' वह प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य द्वारा अपरदन की दर को बढ़ाया जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भौगोलिक शब्दावली|लेखक=आर. पी. चतुर्वेदी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= रावत पब्लिकिशन, जयपुर व नई दिल्ली|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=03|url=}}</ref> इस प्रक्रिया में मृदा का कटाव काफ़ी तेज़ी से होता है।
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'''त्वरित अपरदन''' वह प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य द्वारा [[अपरदन]] की दर को बढ़ाया जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भौगोलिक शब्दावली|लेखक=आर. पी. चतुर्वेदी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= रावत पब्लिकिशन, जयपुर व नई दिल्ली|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=03|url=}}</ref> इस प्रक्रिया में मृदा का कटाव काफ़ी तेज़ी से होता है।
  
  

11:31, 29 मार्च 2015 के समय का अवतरण

त्वरित अपरदन वह प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य द्वारा अपरदन की दर को बढ़ाया जाता है।[1] इस प्रक्रिया में मृदा का कटाव काफ़ी तेज़ी से होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भौगोलिक शब्दावली |लेखक: आर. पी. चतुर्वेदी |प्रकाशक: रावत पब्लिकिशन, जयपुर व नई दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 03 |

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