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'''आनन्दपाल हिन्दूशाही राजवंश''' के राजा जयपाल का पुत्र था। वह 1002 ई में सिंहासन पर आसीन हुआ था। जब महमूद गज़नवी ने 1006 ई. में उसके राज्य पर अधिकार किया, तब उसके कुछ समय बाद ही वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।
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*'''आनन्दपाल''' [[सिन्धु नदी]] के तट पर स्थित उदभांडपुर अथवा ओहिन्द के 'हिन्दूशाही राजवंश' के राजा जयपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था।
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*वह 1002 ई. के क़रीब हिन्दूशाही राजवंश की राजगद्दी पर बैठा।
====राजगद्दी की प्राप्ती====
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*सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] ने उसके [[पिता]] जयपाल को 1001 ई. में परास्त किया था।
[[सिन्धु नदी]] के तट पर स्थित [[उदभांडपुर]] अथवा ओहिन्द के हिन्दूशाही राजवंश के राजा [[जयपाल]] का पुत्र और उत्तराधिकारी था। वह 1002 ई. के क़रीब गद्दी पर बैठा।
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*इसलिए गद्दी पर बैठने के बाद आनन्दपाल का पहला कर्तव्य यही था कि, वह सुल्तान महमूद ग़ज़नवी से इस हार का बदला लेता।
====महमूद गज़नवी से सामना====
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*सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने 1006 ई. में उसके प्रतिरोध के बावजूद [[मुल्तान]] पर क़ब्ज़ा कर लिया और 1008 ई. में आनन्दपाल के राज्य पर फिर से हमला किया।
सुल्तान [[महमूद गज़नवी]] ने उसके पिता जयपाल को 1001 ई. में परास्त किया था। इसलिए गद्दी पर बैठने के बाद आनन्दपाल का पहला कर्तव्य यही था कि वह सुल्तान महमूद गज़नवी से इस हार का बदला लेता। सुल्तान महमूद गज़नवी ने 1006 ई. में उसके प्रतिरोध के बावजूद [[मुल्तान]] पर क़ब्ज़ा कर लिया और 1008 ई. में आनन्दपाल के राज्य पर फिर से हमला किया। आनन्दपाल ने [[उज्जैन]], [[ग्वालियर]], [[कन्नौज]], [[दिल्ली]] और [[अजमेर]] के हिन्दू राजाओं का संघ बनाकर सुल्तान की सेना का पेशावर के मैदान में सामना किया।
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*आनन्दपाल ने [[उज्जैन]], [[ग्वालियर]], [[कन्नौज]], [[दिल्ली]] और [[अजमेर]] के [[हिन्दू]] राजाओं का संघ बनाकर सुल्तान की सेना का [[पेशावर]] के मैदान में सामना किया।
====दुर्घटना का घटना====
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*दोनों ओर की सेनाएँ 40 दिन तक एक-दूसरे के सामने डटी रहीं। अन्त में भारतीय सशस्त्र सेना ने सुल्तान की सेना पर हमला बोल दिया।
दोनों ओर की सेनाएँ 40 दिन तक एक-दूसरे के सामने डटी रहीं। अन्त में [[भारतीय सशस्त्र सेना]] ने सुल्तान की सेना पर हमला बोल दिया और जिस समय हिन्दुओं की विजय निकट मालूम होती थी, उसी समय एक दुर्घटना घट गई। जिस हाथी पर आनन्दपाल अथवा उसका पुत्र [[ब्राह्मणपाल]] बैठा था, वह पीछे मुड़कर भागने लगा। यह देखते ही भारतीय सेना छिन्न-भिन्न होकर भागने लगी। इस युद्ध में युवराज ब्राह्मणपाल मारा गया।
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*इस युद्ध में जिस समय हिन्दुओं की विजय निकट मालूम होती थी, उसी समय एक दुर्घटना घट गई।
====साहसी व्यक्तित्व====
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*जिस [[हाथी]] पर आनन्दपाल अथवा उसका पुत्र ब्राह्मणपाल बैठा था, वह पीछे मुड़कर भागने लगा।
सुल्तान की विजयी सेना आनन्दपाल के राज्य में घुस गई और [[कांगड़ा]] और [[भीमनगर]] के क़िलों और मन्दिरों पर हमला करके उन्हें लूटा। आनन्दपाल ने इस पर भी पराजय स्वीकार नहीं की और नमक की पहाड़ियों से मुसलमानों का लगातार प्रतिरोध करता रहा। कुछ वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई।  
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*हाथी के इस प्रकार भागने से देखते ही देखते भारतीय सेना छिन्न-भिन्न होकर भागने लगी।
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*इस भयंकर युद्ध में आनन्दपाल का पुत्र युवराज ब्राह्मणपाल मारा गया।
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*सुल्तान की विजयी सेना आनन्दपाल के राज्य में घुस गई और कांगड़ा तथा भीमनगर के क़िलों और मन्दिरों पर हमला करके उन्हें लूटा।
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*आनन्दपाल ने इस पर भी पराजय स्वीकार नहीं की और नमक की पहाड़ियों से [[मुसलमान|मुसलमानों]] का लगातार प्रतिरोध करता रहा।
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*इस युद्ध के कुछ वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
  
 
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10:50, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण

  • आनन्दपाल सिन्धु नदी के तट पर स्थित उदभांडपुर अथवा ओहिन्द के 'हिन्दूशाही राजवंश' के राजा जयपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था।
  • वह 1002 ई. के क़रीब हिन्दूशाही राजवंश की राजगद्दी पर बैठा।
  • सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने उसके पिता जयपाल को 1001 ई. में परास्त किया था।
  • इसलिए गद्दी पर बैठने के बाद आनन्दपाल का पहला कर्तव्य यही था कि, वह सुल्तान महमूद ग़ज़नवी से इस हार का बदला लेता।
  • सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने 1006 ई. में उसके प्रतिरोध के बावजूद मुल्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया और 1008 ई. में आनन्दपाल के राज्य पर फिर से हमला किया।
  • आनन्दपाल ने उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, दिल्ली और अजमेर के हिन्दू राजाओं का संघ बनाकर सुल्तान की सेना का पेशावर के मैदान में सामना किया।
  • दोनों ओर की सेनाएँ 40 दिन तक एक-दूसरे के सामने डटी रहीं। अन्त में भारतीय सशस्त्र सेना ने सुल्तान की सेना पर हमला बोल दिया।
  • इस युद्ध में जिस समय हिन्दुओं की विजय निकट मालूम होती थी, उसी समय एक दुर्घटना घट गई।
  • जिस हाथी पर आनन्दपाल अथवा उसका पुत्र ब्राह्मणपाल बैठा था, वह पीछे मुड़कर भागने लगा।
  • हाथी के इस प्रकार भागने से देखते ही देखते भारतीय सेना छिन्न-भिन्न होकर भागने लगी।
  • इस भयंकर युद्ध में आनन्दपाल का पुत्र युवराज ब्राह्मणपाल मारा गया।
  • सुल्तान की विजयी सेना आनन्दपाल के राज्य में घुस गई और कांगड़ा तथा भीमनगर के क़िलों और मन्दिरों पर हमला करके उन्हें लूटा।
  • आनन्दपाल ने इस पर भी पराजय स्वीकार नहीं की और नमक की पहाड़ियों से मुसलमानों का लगातार प्रतिरोध करता रहा।
  • इस युद्ध के कुछ वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ