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[[गंगा नदी]] के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें राजा सगर की कथा और  मिथकों के अनुसार [[ब्रह्मा]] ने [[विष्णु]] के पैर के पसीनों की बूँदों से गंगा के जन्म की कथाओं के अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी काफ़ी रोचक हैं।
 
[[गंगा नदी]] के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें राजा सगर की कथा और  मिथकों के अनुसार [[ब्रह्मा]] ने [[विष्णु]] के पैर के पसीनों की बूँदों से गंगा के जन्म की कथाओं के अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी काफ़ी रोचक हैं।
 
==राजा सगर की कथा==
 
==राजा सगर की कथा==
एक अन्य कथा के अनुसार राजा [[सगर]] ने जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति की।<ref name="इंडिया वाटर">{{cite web |url= http://hindi.indiawaterportal.org/?q=content/गंगा|title=गंगा - इंडिया वाटर पोर्टल |accessmonthday= जून 14 |accessyear= 2009|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= |work= |publisher= इंडिया वाटर पोर्टल |pages= |language= [[हिन्दी]]|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक [[यज्ञ]] किया। यज्ञ के लिये [[घोड़ा]] आवश्यक था जो ईर्ष्यालु [[इंद्र]] ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा [[पाताल]] लोक में मिला जो एक [[ऋषि ]] के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ॠषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया । [[तपस्या]] में लीन ॠषि ने हज़ारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये ।<ref>{{cite web |url= http://forum.spiritualindia.org/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%A5-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-t16004.0.html|title=  भगीरथ और गंगा|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= 14 |year=2009 |month=जून |format=एच.टी.एम.एल |work= |publisher= स्पिरिचुअल इण्डिया|pages= |language= [[हिन्दी]]|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref>  सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका [[अंतिम संस्कार]] नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में [[अंशुमान]] के पुत्र दिलीप ने भी। [[भगीरथ]] राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे । उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया । उन्होंने गंगा को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर लाने का प्रण किया जिससे उनके संस्कार की राख गंगाजल में प्रवाह कर भटकती आत्माएं [[स्वर्ग]] में जा सके। [[भगीरथ]] ने [[ब्रह्मा]] की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके।  [[ब्रह्मा]] प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद [[पाताल]] में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों के आत्माओं की [[मुक्ति]] संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर गिरूंगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब [[भगीरथ]] ने भगवान [[शिव]] से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे पीछे [[गंगा सागर]] संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को [[मन्दाकिनी]] और पाताल में [[भागीरथी]] कहते हैं।
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एक अन्य कथा के अनुसार राजा [[सगर]] ने जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति की।<ref name="इंडिया वाटर">{{cite web |url= http://hindi.indiawaterportal.org/?q=content/गंगा|title=गंगा - इंडिया वाटर पोर्टल |accessmonthday= जून 14 |accessyear= 2009|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= |work= |publisher= इंडिया वाटर पोर्टल |pages= |language= [[हिन्दी]]|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक [[यज्ञ]] किया। यज्ञ के लिये [[घोड़ा]] आवश्यक था जो ईर्ष्यालु [[इंद्र]] ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा [[पाताल]] लोक में मिला जो एक [[ऋषि ]] के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ॠषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया । [[तपस्या]] में लीन ॠषि ने हज़ारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये ।<ref>{{cite web |url= http://forum.spiritualindia.org/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%A5-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-t16004.0.html|title=  भगीरथ और गंगा|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= 14 |year=2009 |month=जून |format=एच.टी.एम.एल |work= |publisher= स्पिरिचुअल इण्डिया|pages= |language= [[हिन्दी]]|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref>  सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका [[अंतिम संस्कार]] नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में [[अंशुमान]] के पुत्र दिलीप ने भी। [[भगीरथ]] राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे । उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया । उन्होंने गंगा को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर लाने का प्रण किया जिससे उनके संस्कार की राख गंगाजल में प्रवाह कर भटकती आत्माएं [[स्वर्ग]] में जा सके। [[भगीरथ]] ने [[ब्रह्मा]] की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके।  [[ब्रह्मा]] प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को [[पृथ्वी]] पर और उसके बाद [[पाताल]] में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों के आत्माओं की [[मुक्ति]] संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर गिरूंगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब [[भगीरथ]] ने भगवान [[शिव]] से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे पीछे [[गंगा सागर]] संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को [[मन्दाकिनी नदी|मन्दाकिनी]] और पाताल में [[भागीरथी]] कहते हैं।
  
 
==गंगा और राजा शांतनु की कथा==
 
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==ब्रह्मा का कमंडल से गंगा का जन्म==
 
==ब्रह्मा का कमंडल से गंगा का जन्म==
 
एक प्रफुल्लित सुंदरी युवती का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस ख़ास जन्म के बारे में दो विचार हैं। एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया। जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।<ref>{{cite web |url= http://210.212.78.56/50cities/gangotri/hindi/profile_mythology.asp/|title=पौराणिक|accessmonthday=[[23 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=गंगोत्री|language=}}</ref>
 
एक प्रफुल्लित सुंदरी युवती का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस ख़ास जन्म के बारे में दो विचार हैं। एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया। जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।<ref>{{cite web |url= http://210.212.78.56/50cities/gangotri/hindi/profile_mythology.asp/|title=पौराणिक|accessmonthday=[[23 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=गंगोत्री|language=}}</ref>
 
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09:34, 4 फ़रवरी 2012 का अवतरण

गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें राजा सगर की कथा और मिथकों के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से गंगा के जन्म की कथाओं के अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी काफ़ी रोचक हैं।

राजा सगर की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार राजा सगर ने जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति की।[1] एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक यज्ञ किया। यज्ञ के लिये घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ॠषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया । तपस्या में लीन ॠषि ने हज़ारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये ।[2] सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे । उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया । उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके संस्कार की राख गंगाजल में प्रवाह कर भटकती आत्माएं स्वर्ग में जा सके। भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों के आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर गिरूंगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे पीछे गंगा सागर संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।

गंगा और राजा शांतनु की कथा

भरतवंश में शान्तनु नामक बड़े प्रतापी राजा थे। एक दिन गंगा तट पर आखेट खेलते समय उनहें गंगा देवी दिखाई पड़ी। शान्तनु ने उससे विवाह करना चाहा। गंगा ने इसे इस शर्त पर स्वीकार कर लिया कि वे जो कुछ भी करेंगी उस विषय में राजा कोई प्रश्न नहीं करेंगे। शान्तनु से गंगा को एक के बाद एक सात पुत्र हुए। परन्तु गंगा देवी ने उन सभी को नदी में फेंक दिया। राजा ने इस विषय में उनसे को प्रश्न नहीं किया। बाद में जब उन्हें आठवाँ पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसे नदी में फेंकने के विरुद्ध शान्तनु ने आपत्ति की। इस प्रकार गंगा को दिया गया उनका वचन टूट गया और गंगा ने अपना विवाह रद्द कर स्वर्ग चली गयीं। जाते जाते उन्होंने शांतनु को वचन दिया कि वह स्वयं बच्चे का पालन-पोषण कर बड़ा कर शान्तनु को लौटा देंगी।[3]

ब्रह्मा का कमंडल से गंगा का जन्म

एक प्रफुल्लित सुंदरी युवती का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस ख़ास जन्म के बारे में दो विचार हैं। एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया। जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।[4]

संदर्भ

  1. गंगा - इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) इंडिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: जून 14, 2009।
  2. भगीरथ और गंगा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) स्पिरिचुअल इण्डिया (14)।
  3. महाभारत भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 23 जून, 2009
  4. पौराणिक गंगोत्री। अभिगमन तिथि: 23 जून, 2009

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