"मैं तो एक भूत हूँ -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) |
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"कमाल के भूत हो यार तुम भी... अरे ! इंसान को डराने में क्या है, किसी को अकेला देखो और डरा दो बस... तुमने ग़ायब होने की... प्रकट होने की... ट्रांसपेरेन्ट होने की सारी ट्रेनिंग कर ली हैं ना ?... अगर नहीं की तो सामने शीशा लगा है कर लो" | "कमाल के भूत हो यार तुम भी... अरे ! इंसान को डराने में क्या है, किसी को अकेला देखो और डरा दो बस... तुमने ग़ायब होने की... प्रकट होने की... ट्रांसपेरेन्ट होने की सारी ट्रेनिंग कर ली हैं ना ?... अगर नहीं की तो सामने शीशा लगा है कर लो" | ||
भूत ने धरती पर आकर डराने के लिए 'क्लाइन्ट' देखना शुरू कर दिया... सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग महिला दिखी- | भूत ने धरती पर आकर डराने के लिए 'क्लाइन्ट' देखना शुरू कर दिया... सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग महिला दिखी- | ||
− | "वाह ! अकेली आंटी, सुनसान सड़क, रात का वक़्त, मज़ा आ जाएगा डराने में..." | + | "वाह ! अकेली आंटी, सुनसान सड़क, रात का वक़्त, मज़ा आ जाएगा डराने में..." भूत ने सोचा... और अचानक उस औरत के सामने वैसे ही प्रकट हो गया जैसे कि धार्मिक सीरियलों में देवता और राक्षस प्रकट हो जाते हैं... |
− | भूत ने सोचा... और अचानक उस औरत के सामने वैसे ही प्रकट हो गया जैसे कि धार्मिक सीरियलों में देवता और राक्षस प्रकट हो जाते हैं... लेकिन ये क्या ?... उस औरत पर तो कोई फ़र्ख़ ही नहीं पड़ा... | + | लेकिन ये क्या ?... उस औरत पर तो कोई फ़र्ख़ ही नहीं पड़ा... |
"ए ! हलो आंटी जी ! डर नहीं लगता क्या ?" | "ए ! हलो आंटी जी ! डर नहीं लगता क्या ?" | ||
"लगता है बेटा ! बहुत लगता है कि कहीं कोई कार टक्कर न मार दे। इसीलिए तो इन्तज़ार कर रही थी कि बूढ़ी अन्धी को कोई रास्ता पार करा दे।" | "लगता है बेटा ! बहुत लगता है कि कहीं कोई कार टक्कर न मार दे। इसीलिए तो इन्तज़ार कर रही थी कि बूढ़ी अन्धी को कोई रास्ता पार करा दे।" | ||
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"सर मैं साबित करना चाहता हूँ कि मैं भूत हूँ" | "सर मैं साबित करना चाहता हूँ कि मैं भूत हूँ" | ||
"तुमको जो भी साबित करना है अदालत में करना... यहाँ मेरे घर में साबित करके क्या होगा... अब जाओ और मुझे काम करने दो।" | "तुमको जो भी साबित करना है अदालत में करना... यहाँ मेरे घर में साबित करके क्या होगा... अब जाओ और मुझे काम करने दो।" | ||
− | दूसरा अनुभव पहले से भी ज़्यादा बेकार | + | दूसरा अनुभव पहले से भी ज़्यादा बेकार निकला। भूत रुँआसा होकर वकील के घर से चला आया और सड़क पर चलती एक कार में घुस गया। कार एक अधेड़ महिला चला रही थी। |
"हा हा हा हा! मैं आप की कार में कैसे आया ? " भूत ने पिछली सीट पर बैठ कर बनावटी हँसी के साथ कहा | "हा हा हा हा! मैं आप की कार में कैसे आया ? " भूत ने पिछली सीट पर बैठ कर बनावटी हँसी के साथ कहा | ||
− | "क्योंकि मैं पार्किंग में कार लॉक करना भूल गई और आप छुप के बैठ गये... ख़ैर छोड़िए... आप ही बताइए... ये तो आपको पता होगा क्योंकि कार में घुसे तो आप हैं ना !" महिला शांत भाव से बोली | + | "क्योंकि मैं, आज पार्किंग में अपनी कार लॉक करना भूल गई और इसमें आप छुप के बैठ गये... ख़ैर छोड़िए... आप ही बताइए... ये तो आपको ही पता होगा... क्योंकि कार में घुसे तो आप हैं ना !" महिला शांत भाव से बोली |
"मैं एक भूत हूँ सचमुच का जीता-जागता डरावना भूत हा हा हा हा" | "मैं एक भूत हूँ सचमुच का जीता-जागता डरावना भूत हा हा हा हा" | ||
"अच्छाऽऽऽ तो आप भूत हैं ? तो भूत जी ! थोड़ा इत्मीनान से शांत बैठिए, मैं ज़रा ड्राइव कर रही हूँ ओ.के, वैसे आपका नाम क्या है ?" | "अच्छाऽऽऽ तो आप भूत हैं ? तो भूत जी ! थोड़ा इत्मीनान से शांत बैठिए, मैं ज़रा ड्राइव कर रही हूँ ओ.के, वैसे आपका नाम क्या है ?" | ||
पंक्ति 46: | पंक्ति 46: | ||
"ठीक है मैं प्रॉमिज़ करती हूँ कि मैं आपसे डरूँगी लेकिन पहले हम वहाँ पहुँच जायें जहाँ जा रहे हैं" | "ठीक है मैं प्रॉमिज़ करती हूँ कि मैं आपसे डरूँगी लेकिन पहले हम वहाँ पहुँच जायें जहाँ जा रहे हैं" | ||
"हम कहाँ जा रहे हैं ?" | "हम कहाँ जा रहे हैं ?" | ||
− | "हम मेन्टल हॉस्पीटल जा रहे हैं। आज मेरी नाइट शिफ़्ट है, मैं डॉक्टर हूँ... साइकायट्रिस्ट हूँ। हॉस्पीटल पहुँच कर सबसे पहले | + | "हम मेन्टल हॉस्पीटल जा रहे हैं। आज मेरी नाइट शिफ़्ट है, मैं डॉक्टर हूँ... साइकायट्रिस्ट हूँ। हॉस्पीटल पहुँच कर सबसे पहले आपसे ख़ूऽऽऽब डरूँगी जिससे आपको ऐसा ना लगे कि आप भूत नहीं हैं, ओ.के.। नाउ काम डाउन, बी रिलेक्स्ड, टेक डीप ब्रेद। लंबी-लंबी सांस लीजिए और आँखें बन्द कर लीजिए। जस्ट रिलेक्स... मैं आपके लिए अच्छा सा म्यूज़िक लगाती हूँ..." |
भूत दुखी होकर कार से ग़ायब हो गया। अगली रात शुरू होते ही वह एक कॉलोनी के पार्क में पहुँच गया जहाँ कुछ बच्चे खेल रहे थे। यहाँ भी भूत अचानक प्रकट हुआ तो बच्चों में से एक ने पूछा- | भूत दुखी होकर कार से ग़ायब हो गया। अगली रात शुरू होते ही वह एक कॉलोनी के पार्क में पहुँच गया जहाँ कुछ बच्चे खेल रहे थे। यहाँ भी भूत अचानक प्रकट हुआ तो बच्चों में से एक ने पूछा- | ||
"आप एक-दम से कैसे यहाँ आ गये... ? मॅजिक से... ?" एक बच्चा बोला | "आप एक-दम से कैसे यहाँ आ गये... ? मॅजिक से... ?" एक बच्चा बोला | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 54: | ||
बस फिर तो सवाल जवाब और भूत के जादू सब कुछ शुरू हो गया और भूत भी भूल गया कि वह यहाँ बच्चों को डराने आया था। | बस फिर तो सवाल जवाब और भूत के जादू सब कुछ शुरू हो गया और भूत भी भूल गया कि वह यहाँ बच्चों को डराने आया था। | ||
− | अब हमारे पास भूत-वूत से डरने का समय नहीं है। हम व्यस्त हैं और ख़ुद ही में मस्त हैं। ये दुनियाँ बदल गई है... अचानक तो नहीं धीरे-धीरे बदलती जा रही है। लोग व्यस्त हो गए हैं... और इस व्यस्तता के अभ्यस्थ हो गए हैं। अक़्सर सुनने में आता है कि अरे ! क्या करें ? इतना काम है कि 'मरने' का भी टाइम नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि इतना काम है कि 'जीने' का भी समय नहीं है। मान लीजिए कि ये भूत अगर मेरे पास आता तो हो सकता है कि मैं, इससे भी भारतकोश पर काम करने की कहता और ये ख़याल मेरे मन में नहीं आता कि अरे ये तो भूत है। मेरी हालत भी कुछ अलग नहीं है। | + | अब हमारे पास भूत-वूत से डरने का समय नहीं है। भूत तो क्या भगवान भी सामने आजाएँ तो वो भी दुखी हो जाएँगे हमारे व्यवहार से क्योंकि हम व्यस्त हैं और ख़ुद ही में मस्त हैं। ये दुनियाँ बदल गई है... अचानक तो नहीं धीरे-धीरे बदलती जा रही है। लोग व्यस्त हो गए हैं... और इस व्यस्तता के अभ्यस्थ हो गए हैं। अक़्सर सुनने में आता है कि अरे ! क्या करें ? इतना काम है कि 'मरने' का भी टाइम नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि इतना काम है कि 'जीने' का भी समय नहीं है। मान लीजिए कि ये भूत अगर मेरे पास आता तो हो सकता है कि मैं, इससे भी भारतकोश पर काम करने की कहता और ये ख़याल मेरे मन में नहीं आता कि अरे ! ये तो भूत है। मेरी हालत भी कुछ अलग नहीं है। |
इस व्यस्तता का एक कारण, हमारा बहुत आसानी से हर एक के लिए उपलब्ध होना है। यदि आप किसी से सम्पर्क करना चाहे तो मोबाइल फोन, ई-मेल, एस.एम.एस आदि से तुरंत सम्पर्क कर सकते हैं। प्रत्येक गतिविधि की जानकारी ले सकते हैं और दे सकते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि आप हर समय अपने परिचितों के लिए उपलब्ध हैं। वे जब भी चाहें आपसे सम्पर्क कर सकते हैं। इसलिए कोई ना कोई परिचित दिन में और कभी-कभी रात में भी हमसे सम्पर्क करता रहता है। | इस व्यस्तता का एक कारण, हमारा बहुत आसानी से हर एक के लिए उपलब्ध होना है। यदि आप किसी से सम्पर्क करना चाहे तो मोबाइल फोन, ई-मेल, एस.एम.एस आदि से तुरंत सम्पर्क कर सकते हैं। प्रत्येक गतिविधि की जानकारी ले सकते हैं और दे सकते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि आप हर समय अपने परिचितों के लिए उपलब्ध हैं। वे जब भी चाहें आपसे सम्पर्क कर सकते हैं। इसलिए कोई ना कोई परिचित दिन में और कभी-कभी रात में भी हमसे सम्पर्क करता रहता है। | ||
इस निरंतर उपलब्धता के कारण अब कलाकार, साहित्यकार और रचनात्मक कार्य करने वाले अन्य लोग अपनी कृतित्व में वह उत्कृष्टता नहीं ला पाते जो कुछ वर्षों पहले हुआ करती थी। पुराने समय में विद्यार्थी कला का अध्ययन करने गुरु के पास जाते थे तो वर्षों तक अपने परिवार और परिचितों से कटे रहते थे। उनका विद्याध्यन का स्थान भी एकांत और शांत वातावरण में हुआ करता था। जहाँ उनकी साधना में कोई अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न होना लगभग असम्भव ही होता था। | इस निरंतर उपलब्धता के कारण अब कलाकार, साहित्यकार और रचनात्मक कार्य करने वाले अन्य लोग अपनी कृतित्व में वह उत्कृष्टता नहीं ला पाते जो कुछ वर्षों पहले हुआ करती थी। पुराने समय में विद्यार्थी कला का अध्ययन करने गुरु के पास जाते थे तो वर्षों तक अपने परिवार और परिचितों से कटे रहते थे। उनका विद्याध्यन का स्थान भी एकांत और शांत वातावरण में हुआ करता था। जहाँ उनकी साधना में कोई अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न होना लगभग असम्भव ही होता था। |
13:41, 28 अप्रैल 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ