"सोबरांव का युद्ध" के अवतरणों में अंतर

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*[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के क़ब्ज़े वाले [[सतलुज नदी]] के पूर्वी तट पर [[सिक्ख|सिक्खों]] ने मोर्चा संभाला हुआ था। उनके बच निकलने का एकमात्र रास्ता एक नौका पुल था।
 
*[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के क़ब्ज़े वाले [[सतलुज नदी]] के पूर्वी तट पर [[सिक्ख|सिक्खों]] ने मोर्चा संभाला हुआ था। उनके बच निकलने का एकमात्र रास्ता एक नौका पुल था।
 
*जमकर हुई गोलाबारी के बाद सिक्खों के मोर्चे तहस-नहस हो गए।
 
*जमकर हुई गोलाबारी के बाद सिक्खों के मोर्चे तहस-नहस हो गए।
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*[[लालसिंह]] और [[तेजा सिंह]] के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था।
 
*नौका पुल के ध्वस्त होने से बचने का रास्ता मौत के रास्ते में तब्दील हो गया।
 
*नौका पुल के ध्वस्त होने से बचने का रास्ता मौत के रास्ते में तब्दील हो गया।
 
*नदी पार करने की कोशिश में 10,000 से अधिक सिक्खों की मृत्यु हो गई।
 
*नदी पार करने की कोशिश में 10,000 से अधिक सिक्खों की मृत्यु हो गई।
 
*सोबरांव के इस युद्ध में अंग्रेज़ों को भी भारी नुक़सान उठाना पड़ा। उनके 2,383 लोग मारे गए या घायल हुए।
 
*सोबरांव के इस युद्ध में अंग्रेज़ों को भी भारी नुक़सान उठाना पड़ा। उनके 2,383 लोग मारे गए या घायल हुए।
 
*सिक्खों द्वारा और प्रतिरोध असंभव हो गया तथा पश्चिमोत्तर भारत का सिक्ख राज्य ब्रिटिश प्रभाव में आ गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-6|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=118|url=}}</ref>
 
*सिक्खों द्वारा और प्रतिरोध असंभव हो गया तथा पश्चिमोत्तर भारत का सिक्ख राज्य ब्रिटिश प्रभाव में आ गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-6|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=118|url=}}</ref>
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11:18, 2 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

सोबरांव का युद्ध 10 फ़रवरी, 1846 ई. को लड़ा गया था। यह 'प्रथम सिक्ख युद्ध' (1845-1846 ई.) के अंतर्गत लड़ा गया पाँचवाँ और निर्णायक युद्ध था।

  • अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े वाले सतलुज नदी के पूर्वी तट पर सिक्खों ने मोर्चा संभाला हुआ था। उनके बच निकलने का एकमात्र रास्ता एक नौका पुल था।
  • जमकर हुई गोलाबारी के बाद सिक्खों के मोर्चे तहस-नहस हो गए।
  • लालसिंह और तेजा सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था।
  • नौका पुल के ध्वस्त होने से बचने का रास्ता मौत के रास्ते में तब्दील हो गया।
  • नदी पार करने की कोशिश में 10,000 से अधिक सिक्खों की मृत्यु हो गई।
  • सोबरांव के इस युद्ध में अंग्रेज़ों को भी भारी नुक़सान उठाना पड़ा। उनके 2,383 लोग मारे गए या घायल हुए।
  • सिक्खों द्वारा और प्रतिरोध असंभव हो गया तथा पश्चिमोत्तर भारत का सिक्ख राज्य ब्रिटिश प्रभाव में आ गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-6 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 118 |

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