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[[उत्तर भारत]] में जैसे [[गोवर्धन|गिरिराज गोवर्धन]] और कामदगिरि पर्वत ही भगवद रूप माने जाते हैं, वैसे ही दक्षिण भारत में तीन [[पर्वत]] त्रिदेवों के स्वरूप माने जाते हैं। इनमें पक्षितीर्थ का [[वेदगिरि]] [[ब्रह्मा]] का स्वरूप, अरुणाचलम शिवस्वरूप और [[वेंकटाचल]] (तिरुपति) [[विष्णु]] स्वरूप माना जाता है। यहाँ लोग वेदगिरि की परिक्रमा करते हैं। यहाँ का परिक्रमा मार्ग अच्छा है।  
 
[[उत्तर भारत]] में जैसे [[गोवर्धन|गिरिराज गोवर्धन]] और कामदगिरि पर्वत ही भगवद रूप माने जाते हैं, वैसे ही दक्षिण भारत में तीन [[पर्वत]] त्रिदेवों के स्वरूप माने जाते हैं। इनमें पक्षितीर्थ का [[वेदगिरि]] [[ब्रह्मा]] का स्वरूप, अरुणाचलम शिवस्वरूप और [[वेंकटाचल]] (तिरुपति) [[विष्णु]] स्वरूप माना जाता है। यहाँ लोग वेदगिरि की परिक्रमा करते हैं। यहाँ का परिक्रमा मार्ग अच्छा है।  
 
===मुख्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल===
 
===मुख्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल===
पक्षितीर्थ के बाजार में शंखतीर्थ सरोवर है। कहते हैं कि 12 वर्ष में जब गुरु कन्याराशि पर आते हैं तो इस सरोवर में [[शंख]] उत्पन्न होता है। उस समय यहाँ बड़ा मेला लगता है। बाजार के दूसरे किनारे विशाल प्राचीन शिवमंदिर है। उसमें रुद्रकोटि लिंग प्रतिष्ठित है। अभिराम नायकी नामक पार्वती मंदिर उसके भीतर ही है। समीप में रुद्र कोटि तीर्थ सरोवर है। बाजार से ही पक्षितीर्थ जाने के लिए वेदगिरि पर सीढ़ियाँ बनी हैं। 500 सीढ़ियाँ चढ़ना पड़ता है। शिखर पर शिव मंदिर है। मार्ग संकीर्ण है। परिक्रमा करते हुये मंदिर में जाना पड़ता है। कदली स्तम्भ के समान दक्षिणामूर्ति (आचार्य विग्रह) लिंग यहाँ है। दर्शन करके परिक्रमा करके लौटने पर संकीर्ण गली में छोटे द्वार से जाकर कुछ नीचे गुफा में [[पार्वती]] मूर्ति है।  
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पक्षितीर्थ के बाज़ार में शंखतीर्थ सरोवर है। कहते हैं कि 12 वर्ष में जब गुरु कन्याराशि पर आते हैं तो इस सरोवर में [[शंख]] उत्पन्न होता है। उस समय यहाँ बड़ा मेला लगता है। बाज़ार के दूसरे किनारे विशाल प्राचीन शिवमंदिर है। उसमें रुद्रकोटि लिंग प्रतिष्ठित है। अभिराम नायकी नामक पार्वती मंदिर उसके भीतर ही है। समीप में रुद्र कोटि तीर्थ सरोवर है। बाज़ार से ही पक्षितीर्थ जाने के लिए वेदगिरि पर सीढ़ियाँ बनी हैं। 500 सीढ़ियाँ चढ़ना पड़ता है। शिखर पर शिव मंदिर है। मार्ग संकीर्ण है। परिक्रमा करते हुये मंदिर में जाना पड़ता है। कदली स्तम्भ के समान दक्षिणामूर्ति (आचार्य विग्रह) लिंग यहाँ है। दर्शन करके परिक्रमा करके लौटने पर संकीर्ण गली में छोटे द्वार से जाकर कुछ नीचे गुफा में [[पार्वती]] मूर्ति है।  
 
[[चित्र:Vedagiriswarar-Temple-Tirukalukundram.jpg|left|thumb|वेदागिरिस्वरार मंदिर, तिरुक्कलिकुंदरम]]
 
[[चित्र:Vedagiriswarar-Temple-Tirukalukundram.jpg|left|thumb|वेदागिरिस्वरार मंदिर, तिरुक्कलिकुंदरम]]
 
यहाँ बहुत अधिक शिव भक्तों ने तप किया है। वेद-गिरि के पूर्व में इंद्र-तीर्थ, अग्निकोण में रुद्र-तीर्थ, दक्षिण में वशिष्ठ-तीर्थ, नैऋत्य में अगस्त्य-तीर्थ, मार्कण्डेय-तीर्थ, विश्वामित्र-तीर्थ पश्चिम नन्दी एवं वरुण तीर्थ तथा वायव्य में अकलिका-तीर्थ हैं।  
 
यहाँ बहुत अधिक शिव भक्तों ने तप किया है। वेद-गिरि के पूर्व में इंद्र-तीर्थ, अग्निकोण में रुद्र-तीर्थ, दक्षिण में वशिष्ठ-तीर्थ, नैऋत्य में अगस्त्य-तीर्थ, मार्कण्डेय-तीर्थ, विश्वामित्र-तीर्थ पश्चिम नन्दी एवं वरुण तीर्थ तथा वायव्य में अकलिका-तीर्थ हैं।  

13:22, 15 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण

भक्तवत्सलेश्वर मंदिर, तिरुक्कलिकुंदरम

पक्षितीर्थ दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले में स्थित एक नगर है। यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। पक्षितीर्थ का स्थानीय नाम तिरुक्कलिकुंदरम है।

मार्ग स्थिति

चेंगल पेट रेलवे स्टेशन से यह 15 मील दूर है। मद्रास (वर्तमान चेन्नई) से चेंगल पेट होते हुए बसें जाती हैं, इस मार्ग से भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। यहाँ ठहरने के लिए धर्मशालाएँ भी हैं।

धार्मिक मान्यता

उत्तर भारत में जैसे गिरिराज गोवर्धन और कामदगिरि पर्वत ही भगवद रूप माने जाते हैं, वैसे ही दक्षिण भारत में तीन पर्वत त्रिदेवों के स्वरूप माने जाते हैं। इनमें पक्षितीर्थ का वेदगिरि ब्रह्मा का स्वरूप, अरुणाचलम शिवस्वरूप और वेंकटाचल (तिरुपति) विष्णु स्वरूप माना जाता है। यहाँ लोग वेदगिरि की परिक्रमा करते हैं। यहाँ का परिक्रमा मार्ग अच्छा है।

मुख्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल

पक्षितीर्थ के बाज़ार में शंखतीर्थ सरोवर है। कहते हैं कि 12 वर्ष में जब गुरु कन्याराशि पर आते हैं तो इस सरोवर में शंख उत्पन्न होता है। उस समय यहाँ बड़ा मेला लगता है। बाज़ार के दूसरे किनारे विशाल प्राचीन शिवमंदिर है। उसमें रुद्रकोटि लिंग प्रतिष्ठित है। अभिराम नायकी नामक पार्वती मंदिर उसके भीतर ही है। समीप में रुद्र कोटि तीर्थ सरोवर है। बाज़ार से ही पक्षितीर्थ जाने के लिए वेदगिरि पर सीढ़ियाँ बनी हैं। 500 सीढ़ियाँ चढ़ना पड़ता है। शिखर पर शिव मंदिर है। मार्ग संकीर्ण है। परिक्रमा करते हुये मंदिर में जाना पड़ता है। कदली स्तम्भ के समान दक्षिणामूर्ति (आचार्य विग्रह) लिंग यहाँ है। दर्शन करके परिक्रमा करके लौटने पर संकीर्ण गली में छोटे द्वार से जाकर कुछ नीचे गुफा में पार्वती मूर्ति है।

वेदागिरिस्वरार मंदिर, तिरुक्कलिकुंदरम

यहाँ बहुत अधिक शिव भक्तों ने तप किया है। वेद-गिरि के पूर्व में इंद्र-तीर्थ, अग्निकोण में रुद्र-तीर्थ, दक्षिण में वशिष्ठ-तीर्थ, नैऋत्य में अगस्त्य-तीर्थ, मार्कण्डेय-तीर्थ, विश्वामित्र-तीर्थ पश्चिम नन्दी एवं वरुण तीर्थ तथा वायव्य में अकलिका-तीर्थ हैं।

पक्षि दर्शन

यहाँ इस मंदिर से कुछ सीढ़ियाँ नीचे उतरकर समतल खुली भूमि है। यहीं लोग पक्षी के दर्शन करते हैं। यहीं एक ऊँची शिला है और समीप गृद्धतीर्थ नामक कुंड है। पुजारी दस बजे दोपहर में आता है। वह शिला पर कटोरी तश्तरी पटककर बार-बार संकेत करता है। पक्षियों के आने का समय दस बजे से दो बजे के मध्य है। इस बीच वे कभी भी आते हैं। दो काँक (चमरगीधा) जाति के पक्षी हैं। कभी वे बारी-बारी से आते हैं और कभी साथ आ जाते हैं। पुजारी के हाथ से भोजन करते हैं और पानी पीकर उड़ जाते हैं। पुजारी इन पक्षियों को ब्रह्मा के मानसपुत्र बताता है, जो शिव के शाप से इस योनि में आये; किंतु यह कथा शास्त्रीय नहीं है। यहाँ तीर्थ या पुण्य पक्षिदर्शन नहीं है। यहाँ का यह पर्वत ही तीर्थ है। यही पुण्यदर्शन मंदिर माना जाता है।

पौराणिक कथा

भगवान शिव की आज्ञा से नन्दीश्वर ने कैलाश के तीन शिखर पृथ्वी पर स्थापित किये। उनमें एक यहाँ वेद-गिरि है। एक श्रीशैल और तीसरा कालहस्ती में है। इन तीनों पर शंकरजी का नित्य निवास है[1]इन्हें भी देखें: तिरुक्कलिकुंदरम


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 103 |

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