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'''बल्देव विद्याभूषण''' [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय]] के प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका समय सं. 1750 से सं. 1840 के मध्य है। इन्होंंने बहुत सी टीकाएँ तथा मौलिक रचनाएँ प्रस्तुत कर चैतन्यसाहित्य की विशेष रूप से सेवा की है।
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'''बल्देव विद्याभूषण''' [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय]] के प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका समय [[संवत]] 1750 (1693 ई.) से संवत 1840 (1783 ई.) के मध्य है। इन्होंंने बहुत-सी [[टीका|टीकाएँ]] तथा मौलिक रचनाएँ प्रस्तुत कर चैतन्यसाहित्य की विशेष रूप से सेवा की है।
*इनका जन्म [[उड़ीसा]] के अंतर्गत [[बालेश्वर|बालेश्वर ज़िला]] के रेमुना के पास एक ग्राम में हुआ।  
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*[[चिल्का झील]] के तटस्थ एक बस्ती में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा वेदाध्ययन के लिए महीशुर गए।  
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*इनका जन्म [[उड़ीसा]] के अंतर्गत [[बालेश्वर|बालेश्वर ज़िला]] के रेमुना के पास एक [[ग्राम]] में हुआ।  
*इसी समय इन्होंने [[माध्व सम्प्रदाय]] में दीक्षा ली।  
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*[[चिल्का झील]] के तटस्थ एक बस्ती में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा वेदाध्ययन के लिए महीशुर गए। इसी समय इन्होंने [[माध्व सम्प्रदाय]] में दीक्षा ली।  
*इसके अनंतर संन्यास ग्रहण कर [[पुरी]] गए और वहाँ के पंडितसमाज को परास्त किया।  
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*इसके अनंतर संन्यास ग्रहण कर बल्देव विद्याभूषण [[पुरी]] गए और वहाँ के पंडित समाज को परास्त किया।  
*रसिकानंद प्रभु के प्रशिष्य श्री राधादामोदर से षटसंदर्भ पढ़कर उन्हीं के शिष्य हो गए।  
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*रसिकानंद प्रभु के प्रशिष्य श्री राधादामोदर से षटसंदर्भ पढ़कर बल्देव विद्याभूषण जी उन्हीं के शिष्य हो गए।
*विरक्त [[वैष्णव]] होने पर गोविंददास नाम हुआ।  
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*बल्देव विद्याभूषण जी के विरक्त [[वैष्णव]] होने पर उनका नाम 'गोविंददास' हुआ।
*पुरी से [[नवद्वीप]] होते हुए यह [[वृंदावन]] चले आए और वहाँ भक्ति-रस-तत्त्व की शिक्षा ली।  
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*पुरी से [[नवद्वीप]] होते हुए यह [[वृंदावन]] चले आए और वहाँ भक्ति-रस-तत्त्व की शिक्षा ली। उस समय वृंदावन [[जयपुर]] नरेश [[जयसिंह द्वितीय]] के प्रभावक्षेत्र में था, जिन्हें [[गौड़ीय संप्रदाय]] के विरुद्ध यह कहकर भड़का दिया गया कि यह मत अवैदिक था। इस पर [[जयपुर]] में [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव समाज]] बुलाया गया।  
*उस समय वृंदावन जयपुर नरेश [[जयसिंह द्वितीय]] के प्रभावक्षेत्र में था, जिन्हें [[गौड़ीय संप्रदाय]] के विरुद्ध यह कहकर भड़का दिया गया कि यह मत अवैदिक था।  
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*बल्देव विद्याभूषण ने स्वसंप्रदाय तथा परकीयावाद को वेदानुकूल प्रतिपादित किया और '[[ब्रह्मसूत्र]]' पर 'गोविंदभाष्य' प्रस्तुत किया।  
*इस पर [[जयपुर]] में [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव समाज]] बुलाया गया।  
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*[[गलता मन्दिर|गलता]] में बल्देव विद्याभूषण ने गोपाल विग्रह प्रतिष्ठापित किया, जो मंदिर आज भी वर्तमान है।
*इन्होंने स्वसंप्रदाय तथा परकीयावाद को वेदानुकूल प्रतिपादित किया और ब्रह्मसूत्र पर गोविंद भाष्य प्रस्तुत किया।  
 
*[[गलता मन्दिर|गलता]] में गोपाल विग्रह प्रतिष्ठापित किया, जो मंदिर आज भी वर्तमान है।
 
  
  
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बल्देव विद्याभूषण गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका समय संवत 1750 (1693 ई.) से संवत 1840 (1783 ई.) के मध्य है। इन्होंंने बहुत-सी टीकाएँ तथा मौलिक रचनाएँ प्रस्तुत कर चैतन्यसाहित्य की विशेष रूप से सेवा की है।

  • इनका जन्म उड़ीसा के अंतर्गत बालेश्वर ज़िला के रेमुना के पास एक ग्राम में हुआ।
  • चिल्का झील के तटस्थ एक बस्ती में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा वेदाध्ययन के लिए महीशुर गए। इसी समय इन्होंने माध्व सम्प्रदाय में दीक्षा ली।
  • इसके अनंतर संन्यास ग्रहण कर बल्देव विद्याभूषण पुरी गए और वहाँ के पंडित समाज को परास्त किया।
  • रसिकानंद प्रभु के प्रशिष्य श्री राधादामोदर से षटसंदर्भ पढ़कर बल्देव विद्याभूषण जी उन्हीं के शिष्य हो गए।
  • बल्देव विद्याभूषण जी के विरक्त वैष्णव होने पर उनका नाम 'गोविंददास' हुआ।
  • पुरी से नवद्वीप होते हुए यह वृंदावन चले आए और वहाँ भक्ति-रस-तत्त्व की शिक्षा ली। उस समय वृंदावन जयपुर नरेश जयसिंह द्वितीय के प्रभावक्षेत्र में था, जिन्हें गौड़ीय संप्रदाय के विरुद्ध यह कहकर भड़का दिया गया कि यह मत अवैदिक था। इस पर जयपुर में वैष्णव समाज बुलाया गया।
  • बल्देव विद्याभूषण ने स्वसंप्रदाय तथा परकीयावाद को वेदानुकूल प्रतिपादित किया और 'ब्रह्मसूत्र' पर 'गोविंदभाष्य' प्रस्तुत किया।
  • गलता में बल्देव विद्याभूषण ने गोपाल विग्रह प्रतिष्ठापित किया, जो मंदिर आज भी वर्तमान है।


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