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एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
 
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
 
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
 
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।।
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अपजस होएत जगत् भरि हे जानि करिअ उधारी।।
 
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
 
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
 
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
 
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।

13:48, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

कुंज भवन सएँ निकसलि -विद्यापति
विद्यापति का काल्पनिक चित्र
कवि विद्यापति
जन्म सन् 1350 से 1374 के मध्य
जन्म स्थान बिसपी गाँव, मधुबनी ज़िला, बिहार
मृत्यु सन् 1440 से 1448 के मध्य
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ कीर्तिलता, मणिमंजरा नाटिका, गंगावाक्यावली, भूपरिक्रमा आदि
भाषा संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
विद्यापति की रचनाएँ

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत् भरि हे जानि करिअ उधारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।


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