"प्रयोग:दीपिका3" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
− | {निम्नलिखित में से | + | {निम्नलिखित में से शक्ति संतुलन की विशेषता कौन-सी नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-15 |
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-इतिहासकार शक्ति संतुलन को वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखता है जबकि राजनीतिज्ञ उसे व्यक्तिनिष्ठ दृष्टि से देखता है। | -इतिहासकार शक्ति संतुलन को वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखता है जबकि राजनीतिज्ञ उसे व्यक्तिनिष्ठ दृष्टि से देखता है। | ||
− | -शक्ति-संतुलन की नीति गतिशील | + | -शक्ति-संतुलन की नीति गतिशील होती है। |
+शक्ति-संतुलन की स्थापना स्वत: हो जाती है। | +शक्ति-संतुलन की स्थापना स्वत: हो जाती है। | ||
-विश्व के राष्ट्रों के बीच शक्ति-संतुलन सदैव बना रह सकता है। | -विश्व के राष्ट्रों के बीच शक्ति-संतुलन सदैव बना रह सकता है। | ||
− | ||'शक्ति संतुलन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सबसे पुराने व महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। शक्ति संतुलन की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं- (1) इतिहासकार शक्ति संतुलन को | + | ||'शक्ति संतुलन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सबसे पुराने व महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। शक्ति संतुलन की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं- (1) इतिहासकार शक्ति संतुलन को वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखता है जबकि राजनीतिज्ञ उसे व्यक्तिनिष्ठ दृष्टि से देखता है। (2) इसकी स्थापना हेतु राज्यों/राष्ट्रों को सदैव प्रयत्नशील रहना पड़ता है। (3) शक्ति संतुलन की नीति गतिशील होती है। (4) शक्ति संतुलन मात्र बड़े राष्ट्रों द्वारा किया जाता है। (5) शक्ति संतुलन की स्थापना स्थायी रूप से भी हो सकती है। |
{'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' किसने लिखी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-12 | {'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' किसने लिखी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-12 | ||
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+जॉन राल्स ने | +जॉन राल्स ने | ||
− | -नेहरू ने | + | -[[जवाहर लाल नेहरू]] ने |
− | -अम्बेडकर ने | + | -[[भीमराव अम्बेडकर]] ने |
-लॉक ने | -लॉक ने | ||
||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||
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-राज्य व व्यक्ति का समर्थक | -राज्य व व्यक्ति का समर्थक | ||
-व्यक्ति का समर्थक | -व्यक्ति का समर्थक | ||
− | ||आदर्शवादी विचारक राज्य के समर्थक है। आदर्शवादी राज्य को नैतिक संस्था मानते हुए व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक मानता है। काण्ट, हीगल, ग्रीन, ब्रैडले, बोसांके आदि | + | ||आदर्शवादी विचारक राज्य के समर्थक है। आदर्शवादी राज्य को नैतिक संस्था मानते हुए व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक मानता है। काण्ट, हीगल, ग्रीन, ब्रैडले, बोसांके आदि विचारकों द्वारा प्रमुख रूप से इसका समर्थन किया गया, परंतु इस सिद्धांत का चरमोत्कर्ष हमें हीगल की विचारधारा में मिलता है। |
{लोक संप्रभुता के दर्शन को सर्वप्रथम किसने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-12 | {लोक संप्रभुता के दर्शन को सर्वप्रथम किसने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-12 | ||
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+रूसो | +रूसो | ||
-मिल | -मिल | ||
− | ||लोक संप्रभुता के दर्शन को सर्वप्रथम रूसो ने प्रतिपादित किया था। रूसो के अनुसार, मनुष्य आपस में समझौता करके ही सत्ता या प्रभुसत्ता | + | ||लोक संप्रभुता के दर्शन को सर्वप्रथम रूसो ने प्रतिपादित किया था। रूसो के अनुसार, मनुष्य आपस में समझौता करके ही सत्ता या प्रभुसत्ता की स्थापना करते हैं। परंतु यह प्रभुसत्ता किसी ऐसे शासक की विशेषता नहीं होती जिसका अस्तित्व समाज से अलग या समाज के बाहर हो, बल्कि यह जनसाधारण के पास ही रहती है। इस तरह रूसो ने लोकप्रिय प्रभुसत्ता के विचार को बढ़ावा दिया। |
{[[अरस्तू]] की नागरिकता की अवधारणा लागू करने पर- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34, प्रश्न-22 | {[[अरस्तू]] की नागरिकता की अवधारणा लागू करने पर- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34, प्रश्न-22 | ||
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-सभी अनिवासी भारतीय (NRIs) भारतीय नागरिक बनेंगे | -सभी अनिवासी भारतीय (NRIs) भारतीय नागरिक बनेंगे | ||
-उपर्युक्त में कोई नहीं | -उपर्युक्त में कोई नहीं | ||
− | ||अरस्तू की नागरिकता की अवधारणा लागू करने पर केवल कुछ भारतवासी भारत के नागरिक, भारत के माने जाएंगे क्योंकि अरस्तू ने राज्य में निवास करते हुए भी नागरिक न होने की चार दशाएं बतलाई हैं जो इस प्रकार है- 1.किसी राज्य में निवास करने से नागरिकता नहीं मिलती है क्योंकि स्त्री बच्चे, दास और विदेशी को नागरिक नहीं माना जाता है। 2.किसी पर अभियोग चलाने का अधिकार रखने वाले व्यक्ति को नागरिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि संधि के द्वारा यह अधिकार किसी विदेशी को भी प्राप्त हो सकता है। 3.उन व्यक्तियों को नागरिक नहीं माना जा सकता जिनके माता-पिता दूसरे राज्य के नागरिक हों। 4.निष्कासित तथा मताधिकार से वंचित व्यक्ति को भी राज्य का नागरिक नहीं माना जा सकता है। | + | ||अरस्तू की नागरिकता की अवधारणा लागू करने पर केवल कुछ भारतवासी भारत के नागरिक, भारत के माने जाएंगे क्योंकि अरस्तू ने राज्य में निवास करते हुए भी नागरिक न होने की चार दशाएं बतलाई हैं जो इस प्रकार है- 1. किसी राज्य में निवास करने से नागरिकता नहीं मिलती है क्योंकि स्त्री बच्चे, दास और विदेशी को नागरिक नहीं माना जाता है। 2. किसी पर अभियोग चलाने का अधिकार रखने वाले व्यक्ति को नागरिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि संधि के द्वारा यह अधिकार किसी विदेशी को भी प्राप्त हो सकता है। 3. उन व्यक्तियों को नागरिक नहीं माना जा सकता जिनके माता-पिता दूसरे राज्य के नागरिक हों। 4. निष्कासित तथा मताधिकार से वंचित व्यक्ति को भी राज्य का नागरिक नहीं माना जा सकता है। |
{किसने कहा "आदमी के लिए युद्ध वही है जो औरत के लिए मातृत्व है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-13 | {किसने कहा "आदमी के लिए युद्ध वही है जो औरत के लिए मातृत्व है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-13 | ||
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+मुसोलिनी | +मुसोलिनी | ||
-लेनिन | -लेनिन | ||
− | ||फॉसीवाद युद्ध को मानवता का विरोधी नहीं बल्कि राज्यों की सेहत बनाने वाला व्यायाम मानता है। मुसोलिनी ने कहा है कि "युद्ध राज्य के लिए वैसा ही है जैसा कि नारी के लिए मातृत्व।" शान्ति का नारा उत्साहहीन कमजोर तथा नपुंसक देश देते | + | ||फॉसीवाद युद्ध को मानवता का विरोधी नहीं बल्कि राज्यों की सेहत बनाने वाला व्यायाम मानता है। मुसोलिनी ने कहा है कि "युद्ध राज्य के लिए वैसा ही है जैसा कि नारी के लिए मातृत्व।" शान्ति का नारा उत्साहहीन कमजोर तथा नपुंसक देश देते हैं। युद्ध की आग में तपकर ही शक्तिशाली राष्ट्र सोना बनते हैं। |
{निम्न में से किस एक को आधुनिक लोकतंत्र में 'अदृश्य साम्राज्य' कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-48,प्रश्न-23 | {निम्न में से किस एक को आधुनिक लोकतंत्र में 'अदृश्य साम्राज्य' कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-48,प्रश्न-23 | ||
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+दबाव समूह | +दबाव समूह | ||
-जनसंचार माध्यम | -जनसंचार माध्यम | ||
− | -समाचार-पत्र | + | -[[समाचार पत्र|समाचार-पत्र]] |
||आधुनिक लोकतंत्र में 'अदृश्य सरकार' 'दबाव समूह' को कहा जाता है। डी.डी. मेक्किन दबाव समूह को 'अदृश्य सरकार' कहता है। दबाव समूह एक प्रकार के अनौपचारिक संगठन हैं जो अपने हितों की पूर्ति हेतु राजनीति को प्रभावित करते हैं। | ||आधुनिक लोकतंत्र में 'अदृश्य सरकार' 'दबाव समूह' को कहा जाता है। डी.डी. मेक्किन दबाव समूह को 'अदृश्य सरकार' कहता है। दबाव समूह एक प्रकार के अनौपचारिक संगठन हैं जो अपने हितों की पूर्ति हेतु राजनीति को प्रभावित करते हैं। | ||
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-हालैंड का | -हालैंड का | ||
-ग्रीन का | -ग्रीन का | ||
− | ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून | + | ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून की इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (1) संप्रभुता (2) आदेश (समादेश) (3) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु का आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवादी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। |
− | {चीन के नेताओं की भारत यात्रा के दौरान किस स्थानों पर चीनी सेनाओं की घुसपैठ पर समस्या हुई? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-112,प्रश्न-13 | + | {[[चीन]] के नेताओं की [[भारत]] यात्रा के दौरान किस स्थानों पर चीनी सेनाओं की घुसपैठ पर समस्या हुई? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-112,प्रश्न-13 |
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− | -लद्दाख के न्वांग और अरुणाचल के डेप्सांग में | + | -[[लद्दाख]] के न्वांग और [[अरुणाचल]] के डेप्सांग में |
+लद्दाख के डेप्सांग और चुमार में | +लद्दाख के डेप्सांग और चुमार में | ||
-लद्दाख के चुमार और अरुणाचल के डेप्सांग में | -लद्दाख के चुमार और अरुणाचल के डेप्सांग में | ||
-उपर्युक्त में कोई नहीं | -उपर्युक्त में कोई नहीं | ||
− | ||प्रश्नकाल के दौरान चीन के नेताओं की भारत यात्रा के समय जिन स्थानों पर घुसपैठ की समस्या हुई थी, जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में आते हैं और उनके नाम डेप्सांग और चुमार हैं। | + | ||प्रश्नकाल के दौरान चीन के नेताओं की [[भारत]] यात्रा के समय जिन स्थानों पर घुसपैठ की समस्या हुई थी, [[जम्मू-कश्मीर]] राज्य के लद्दाख क्षेत्र में आते हैं और उनके नाम डेप्सांग और चुमार हैं। |
{अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कितने न्यायाधीश होते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-120,प्रश्न-14 | {अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कितने न्यायाधीश होते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-120,प्रश्न-14 | ||
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− | ||संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके सुलझाने के उद्देश्य से एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान रखा गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 सदस्य होते हैं जो महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। इनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गणपूर्ति (कोरम) के लिए कम से कम न्यायाधीशों की संख्या 9 होनी चाहिए। | + | ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के घोषणा-पत्र के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के उद्देश्य से एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान रखा गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 सदस्य होते हैं जो महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। इनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गणपूर्ति (कोरम) के लिए कम से कम न्यायाधीशों की संख्या 9 होनी चाहिए। |
{निम्नलिखित में से कितने अधिकारी तंत्र (नौकरशाही) को विवेकपूर्ण विविध सत्ता के रूप में चित्रित किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-134,प्रश्न-34 | {निम्नलिखित में से कितने अधिकारी तंत्र (नौकरशाही) को विवेकपूर्ण विविध सत्ता के रूप में चित्रित किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-134,प्रश्न-34 | ||
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-एफ.एम. मार्क्स | -एफ.एम. मार्क्स | ||
-विल्फ्रेडो पैरेटो | -विल्फ्रेडो पैरेटो | ||
− | +मैक्स वेबर | + | +[[मैक्स वेबर]] |
-हरबर्ड ए. सीमों | -हरबर्ड ए. सीमों | ||
||मैक्स वेबर ने नौकरशाही को 'विवेकपूर्ण विविध सत्ता' के रूप में चित्रित किया। उन्होंने प्राधिकार (नौकरशाही) के तीन रूप बताए हैं-(1) पारंपरिक प्राधिकार, (2) करिश्माई प्राधिकार, (3) कानूनी-तार्किक प्राधिकार। इनमें से तीसरा प्राधिकार 'विवेकपूर्ण विविक सत्ता' से संबंधित है। | ||मैक्स वेबर ने नौकरशाही को 'विवेकपूर्ण विविध सत्ता' के रूप में चित्रित किया। उन्होंने प्राधिकार (नौकरशाही) के तीन रूप बताए हैं-(1) पारंपरिक प्राधिकार, (2) करिश्माई प्राधिकार, (3) कानूनी-तार्किक प्राधिकार। इनमें से तीसरा प्राधिकार 'विवेकपूर्ण विविक सत्ता' से संबंधित है। | ||
− | {फ्रांस की राज्य-क्रांति का स्वरूप क्या था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-16 | + | {[[फ्रांस]] की राज्य-क्रांति का स्वरूप क्या था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-16 |
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+बुर्जुआ (मध्यवर्ग) | +बुर्जुआ (मध्यवर्ग) | ||
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||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राकनीतिक दर्शन एवं नीतिशस्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राकनीतिक दर्शन एवं नीतिशस्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||
− | {निम्न में से किस तत्व को प्लेटो ने अधिक महत्त्व नहीं दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-36 | + | {निम्न में से किस तत्व को [[प्लेटो]] ने अधिक महत्त्व नहीं दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-36 |
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+उद्यमिता | +उद्यमिता | ||
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-शौर्य | -शौर्य | ||
-विवेक | -विवेक | ||
− | ||प्लेटो ने उद्यमिता को अधिक महत्त्व नहीं दिया। प्लेटो के अनुसार, राज्य व्यक्ति का ही वृहत् रूप है। इसलिए राज्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझना जरूरी है। प्लेटो के अनुसार, मनुष्य के व्यवहार के तीन मनुष्य स्त्रोत हैं- इच्छा या तृष्णा (Desire), भावना या मनोवेग (Emotion) और ज्ञान (Knowledge) या विवेक (Wisdom)| प्लेटो के अनुसार, ये सभी गुण सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं परंतु विभिन्न मनुष्यों में भिन्न-भिन्न गुणों की प्रधानता रहती है। इस आधार पर प्लेटो ने समाज में तीन वर्गों की पहचान की है- जिनमें इच्छा या तृष्णा की प्रधानता होती है, वे उद्योग-व्यापार को तत्पर होते हैं। जिनमें भावना की प्रमुखता है वे सैनिक का व्यवसाय अपनाते हैं तथा जो ज्ञान से संपन्न हैं वे दार्शनिक के रूप में ख्याति अर्जित करते हैं। | + | ||प्लेटो ने उद्यमिता को अधिक महत्त्व नहीं दिया। प्लेटो के अनुसार, राज्य व्यक्ति का ही वृहत् रूप है। इसलिए राज्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझने के लिए मनुष्य की प्रकृति समझना जरूरी है। [[प्लेटो]] के अनुसार, मनुष्य के व्यवहार के तीन मनुष्य स्त्रोत हैं- इच्छा या तृष्णा (Desire), भावना या मनोवेग (Emotion) और ज्ञान (Knowledge) या विवेक (Wisdom)| प्लेटो के अनुसार, ये सभी गुण सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं परंतु विभिन्न मनुष्यों में भिन्न-भिन्न गुणों की प्रधानता रहती है। इस आधार पर प्लेटो ने समाज में तीन वर्गों की पहचान की है- जिनमें इच्छा या तृष्णा की प्रधानता होती है, वे उद्योग-व्यापार को तत्पर होते हैं। जिनमें भावना की प्रमुखता है वे सैनिक का व्यवसाय अपनाते हैं तथा जो ज्ञान से संपन्न हैं वे दार्शनिक के रूप में ख्याति अर्जित करते हैं। |
{जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रर्भुसत्ता सिद्धांत को कहा जाता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-13 | {जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रर्भुसत्ता सिद्धांत को कहा जाता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-13 |
12:09, 2 जनवरी 2018 का अवतरण
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