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-[[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]
 
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-[[पारसी धर्म|पारसी]]
 
-[[पारसी धर्म|पारसी]]
||[[चित्र:Jain-Symbol.jpg|right|100px|border|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' यानी जीतना। 'जिन' अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। [[आर्य|आर्यों]] के आगमन के बाद से भी देखा जाये तो [[ऋषभदेव]] और [[अरिष्टनेमि]] को लेकर [[जैन धर्म]] की परंपरा [[वेद|वेदों]] तक पहुँचती है। [[महाभारत]] के युद्ध के समय इस संप्रदाय के प्रमुख [[नेमिनाथ]] थे, जो जैन धर्म में मान्य [[तीर्थंकर]] हैं। ई. पू. आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर [[पार्श्वनाथ]] हुए, जिनका जन्म [[काशी]] में हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]]
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||[[चित्र:Jain-Symbol.jpg|right|100px|border|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' यानी जीतना। 'जिन' अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। [[आर्य|आर्यों]] के आगमन के बाद से भी देखा जाये तो [[ऋषभदेव]] और [[अरिष्टनेमि]] को लेकर [[जैन धर्म]] की परंपरा [[वेद|वेदों]] तक पहुँचती है। [[महाभारत]] के युद्ध के समय इस संप्रदाय के प्रमुख [[नेमिनाथ]] थे, जो जैन धर्म में मान्य [[तीर्थंकर]] हैं। ई. पू. आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] हुए, जिनका जन्म [[काशी]] में हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]]
 
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11:51, 15 जून 2018 के समय का अवतरण