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'''अमृत''' का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले [[ऋग्वेद]] में आया है जहाँ यह [[सोमरस|सोम]] के विभिन्न पर्यायों में से एक है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से यह यूनानी भाषा के 'अंब्रोसिया' (ambrosia) से संबंधित है तथा समान अर्थ वाला है।
 
'''अमृत''' का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले [[ऋग्वेद]] में आया है जहाँ यह [[सोमरस|सोम]] के विभिन्न पर्यायों में से एक है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से यह यूनानी भाषा के 'अंब्रोसिया' (ambrosia) से संबंधित है तथा समान अर्थ वाला है।
  
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'''अमृत''' ([[विशेषण]]) [नञ्‌ तत्पुरुष समास] 1. जो मरा न हो, 2. अमर, 3. अविनाशी, अनश्वर,'''-तः''' ([[पुल्लिंग]]) 1. देव, अमर, [[देवता]], 2. देवों के वैद्य धन्वन्तरि,'''-ता''' ([[स्त्रीलिंग]]) 1. मादक शराब 2. नाना प्रकार के पौधों के नाम, '''-तम्''' (नपुंसक लिंग) 1. (क) अमरता (ख) परम-मुक्ति, मोक्ष<ref>[[मनुस्मृति]] 12/104</ref>, सा श्रिये चामृताय च-अमर. 2. देवों का सामूहिक शरीर 3. अमरता की दुनिया, स्वर्गलोक 4. सुधा, पीयूष, अमृत (विप. विष) जो [[समुद्र मंथन]] के फलस्वरूप प्राप्त समझा जाता है-देवासुरैरमृतमम्बुनिधिर्ममन्ये <ref>-कि. 5/30</ref>, विषादप्यमृतं ग्राह्यम्<ref>मनुस्मृति 2/239</ref>, विषमप्यमृतं क्वचिद्भवेदमृतं वा विषमीश्वरेच्छया<ref>रघुवंश 8/46</ref>, (प्रायः वाच्, वचनम्, वाणी आदि शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है) कुमारजन्मामृत-संमिताक्षरम्<ref>रघुवंश 3/16</ref> 5. सोमरस 6. विष नाशक औषध 7. यज्ञशेष<ref>मनुस्मृति 3/285</ref>, 8. अयाचितभिक्षा (दान), बिना मांगे दाम मिलना-मृतं स्याद्याचितं भैक्ष्यममृतं स्यादयाचितम्<ref>मनुस्मृति 4/4, 5</ref> 9. जल-अमृताध्मात जीमूत-<ref>उत्तर. 6/21</ref>, तु. भोजन के पूर्व या अन्त में आचमन करते हुए [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के द्वारा पढ़े जाने वाले [[मंत्र]] (अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा, अमृतापिधा-नमसि स्वाहा) 10. औषधि 11. धी, अमृतं अ नाम यत्सन्तो मन्त्र जिह्वेषु जुह्वति<ref>शि. 2/107</ref>, 12. [[दूध]] 13. आहार 14. उबले हुए [[चावल]], भात 15. मिष्ट पदार्थ, कोई भी मधुर वस्तु 16. सोना 17. [[पारा]] 18. विष 19. परब्रह्म।<ref name="pp">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=92|url=|ISBN=}}</ref>
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समस्त पद'''-अंशुः,-करः,-दीधितिः,-द्युतिः,-रश्मिः''' ([[पुल्लिंग]]) [[चन्द्रमा]] के विशेषण,-अमृतदीधितिरेष विदर्भजे-<ref>नै. 4/104</ref>,'''-अन्धस् (अमृतान्धस)-अशनः (अमृताशनः)-आशिन् (अमृताशिन)''' (पुल्लिंग) वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर,-आहरणः (अमृताहरणः) (पुल्लिंग) [[गरुड़]] जिसने एक बार अमृत चुराया था'''-उत्पन्ना''' (स्त्रीलिंग)-मक्खी ('''-न्नम्),-उद्भवम्''' (नपुंसक लिंग) एक प्रकार का सुर्मा,'''-कुंडम्''' (नपुंसक लिंग) वह बर्तन जिसमें अमृत रखा हो,'''-क्षारम्''' नौसादर,'''-गर्भ''' ([[विशेषण]]) अमृत या [[जल]] से भरा हुआ, अमृतमय ('''-र्भः''') 1. [[आत्मा]] 2. परमात्मा,-तरंगिणी ज्योत्स्ना, चांदनी,'''-द्रव''' (विशेषण) चन्द्रकिरण जो अमृत छिड़कती है ('''-वः''') अमृत प्रवाह,'''-धारा''' (स्त्रीलिंग) 1. एक [[छन्द]] का नाम 2. अमृत का प्रवाह,'''-पः''' (पुल्लिंग) 1. अमृत पान करने वाला, देव या [[देवता]] 2. [[विष्णु]] 3. शराब पीने वाला,-ध्रुवममृतपनामवाञ्छयासावधरममुं मधुपस्तवाजिहीते<ref>शि. 7/42</ref>, (यहां अ° का 'अमृत पीने वाला' भी अर्थ है)'''-फला''' (स्त्रीलिंग) अंगूरों का गुच्छा, अंगूरों की बेल, दाख, द्राक्षा,'''-बंधुः''' ([[पुल्लिंग]]) 1. देव, देवता 2. घोड़ा, चन्द्रमा,'''-भुज्''' (पुल्लिंग) अमर, देव, देवता जो यज्ञशेष का स्वाद लेता है,'''-भू''' (विशेषण) जन्ममरण से मुक्त,'''-मंथनम्''' (नपुं.) अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन,'''-रसः''' (पुल्लिंग) 1. अमृत, पीयूष,-काव्यामृतरसा- स्वादः-हि., विविधकाव्या मृतरसान् पिबामः <ref>भर्तृहरिशतकत्रयम 3/40</ref>, 2. परब्रह्म, '''-लता''','''-लतिका''' (स्त्रीलिंग) अमृत देने वाली बैल,'''-वाक्''' अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला,'''-सार''' (विशेषण) अमृतमय ('''-रः''') '''धी''', '''-सूः''' '''-सूति:''' 1. [[चन्द्रमा]] (अमृत चुवाने वाला) 2. देवताओं की माता,'''-सोदरः''' (पुल्लिंग) अमृत का भाई, “उच्चैःश्रवाः” नामक घोड़ा,'''-स्रवः''' (पुल्लिंग) अमृत का प्रवाह,'''-स्रुत्''' (विशेषण) अमृत चुवाने वाला।<ref name="pp"/>
  
  
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07:15, 9 मई 2024 के समय का अवतरण

अमृत का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है जहाँ यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से यह यूनानी भाषा के 'अंब्रोसिया' (ambrosia) से संबंधित है तथा समान अर्थ वाला है।


अमृत (विशेषण) [नञ्‌ तत्पुरुष समास] 1. जो मरा न हो, 2. अमर, 3. अविनाशी, अनश्वर,-तः (पुल्लिंग) 1. देव, अमर, देवता, 2. देवों के वैद्य धन्वन्तरि,-ता (स्त्रीलिंग) 1. मादक शराब 2. नाना प्रकार के पौधों के नाम, -तम् (नपुंसक लिंग) 1. (क) अमरता (ख) परम-मुक्ति, मोक्ष[1], सा श्रिये चामृताय च-अमर. 2. देवों का सामूहिक शरीर 3. अमरता की दुनिया, स्वर्गलोक 4. सुधा, पीयूष, अमृत (विप. विष) जो समुद्र मंथन के फलस्वरूप प्राप्त समझा जाता है-देवासुरैरमृतमम्बुनिधिर्ममन्ये [2], विषादप्यमृतं ग्राह्यम्[3], विषमप्यमृतं क्वचिद्भवेदमृतं वा विषमीश्वरेच्छया[4], (प्रायः वाच्, वचनम्, वाणी आदि शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है) कुमारजन्मामृत-संमिताक्षरम्[5] 5. सोमरस 6. विष नाशक औषध 7. यज्ञशेष[6], 8. अयाचितभिक्षा (दान), बिना मांगे दाम मिलना-मृतं स्याद्याचितं भैक्ष्यममृतं स्यादयाचितम्[7] 9. जल-अमृताध्मात जीमूत-[8], तु. भोजन के पूर्व या अन्त में आचमन करते हुए ब्राह्मणों के द्वारा पढ़े जाने वाले मंत्र (अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा, अमृतापिधा-नमसि स्वाहा) 10. औषधि 11. धी, अमृतं अ नाम यत्सन्तो मन्त्र जिह्वेषु जुह्वति[9], 12. दूध 13. आहार 14. उबले हुए चावल, भात 15. मिष्ट पदार्थ, कोई भी मधुर वस्तु 16. सोना 17. पारा 18. विष 19. परब्रह्म।[10]

समस्त पद-अंशुः,-करः,-दीधितिः,-द्युतिः,-रश्मिः (पुल्लिंग) चन्द्रमा के विशेषण,-अमृतदीधितिरेष विदर्भजे-[11],-अन्धस् (अमृतान्धस)-अशनः (अमृताशनः)-आशिन् (अमृताशिन) (पुल्लिंग) वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर,-आहरणः (अमृताहरणः) (पुल्लिंग) गरुड़ जिसने एक बार अमृत चुराया था-उत्पन्ना (स्त्रीलिंग)-मक्खी (-न्नम्),-उद्भवम् (नपुंसक लिंग) एक प्रकार का सुर्मा,-कुंडम् (नपुंसक लिंग) वह बर्तन जिसमें अमृत रखा हो,-क्षारम् नौसादर,-गर्भ (विशेषण) अमृत या जल से भरा हुआ, अमृतमय (-र्भः) 1. आत्मा 2. परमात्मा,-तरंगिणी ज्योत्स्ना, चांदनी,-द्रव (विशेषण) चन्द्रकिरण जो अमृत छिड़कती है (-वः) अमृत प्रवाह,-धारा (स्त्रीलिंग) 1. एक छन्द का नाम 2. अमृत का प्रवाह,-पः (पुल्लिंग) 1. अमृत पान करने वाला, देव या देवता 2. विष्णु 3. शराब पीने वाला,-ध्रुवममृतपनामवाञ्छयासावधरममुं मधुपस्तवाजिहीते[12], (यहां अ° का 'अमृत पीने वाला' भी अर्थ है)-फला (स्त्रीलिंग) अंगूरों का गुच्छा, अंगूरों की बेल, दाख, द्राक्षा,-बंधुः (पुल्लिंग) 1. देव, देवता 2. घोड़ा, चन्द्रमा,-भुज् (पुल्लिंग) अमर, देव, देवता जो यज्ञशेष का स्वाद लेता है,-भू (विशेषण) जन्ममरण से मुक्त,-मंथनम् (नपुं.) अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन,-रसः (पुल्लिंग) 1. अमृत, पीयूष,-काव्यामृतरसा- स्वादः-हि., विविधकाव्या मृतरसान् पिबामः [13], 2. परब्रह्म, -लता,-लतिका (स्त्रीलिंग) अमृत देने वाली बैल,-वाक् अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला,-सार (विशेषण) अमृतमय (-रः) धी, -सूः -सूति: 1. चन्द्रमा (अमृत चुवाने वाला) 2. देवताओं की माता,-सोदरः (पुल्लिंग) अमृत का भाई, “उच्चैःश्रवाः” नामक घोड़ा,-स्रवः (पुल्लिंग) अमृत का प्रवाह,-स्रुत् (विशेषण) अमृत चुवाने वाला।[10]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनुस्मृति 12/104
  2. -कि. 5/30
  3. मनुस्मृति 2/239
  4. रघुवंश 8/46
  5. रघुवंश 3/16
  6. मनुस्मृति 3/285
  7. मनुस्मृति 4/4, 5
  8. उत्तर. 6/21
  9. शि. 2/107
  10. 10.0 10.1 संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 92 |
  11. नै. 4/104
  12. शि. 7/42
  13. भर्तृहरिशतकत्रयम 3/40

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