दंडी

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दंडी (छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय) संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। संस्कृत श्रृंगारिक गद्य के लेखक और काव्यशास्त्र के व्याख्याकार दो महत्त्वपूर्ण रचनाएं सामान्यत: निश्चित रुप से उनकी मानी जाती है। दशकुमार चरित, 1927 में द एडवेंचर्स ऑफ़ द टेन प्रिंसेज शीर्षक से अनुदित और काव्यादर्श (कविता का आदर्श)।

दंडी के जीवन के सम्बन्ध में प्रामाणिक सूचनाओं का बहुत अभाव है। कोई उन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के आरम्भ का मानता है तो कोई इनका जन्म 550 और 650 ई. के बीच मानता है।

रचनाएँ

दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-‘काव्यादर्श’, ‘दशकुमार चरित’ और ‘मृच्छकटिक’।

दशकुमार चरित

दशकुमार चरित गद्यकाव्य है। इसमें दस कुमारों ने अपनी-अपनी यात्राओं के विचित्र अनुभवों तथा पराक्रमों का मनोरंजक वर्णन किया है। विनोद और व्यंग्य के माध्यम से इसमें तत्कालीन समाज का भी चित्रण किया गया है। दशकुमार रचना को दंडी की प्रारम्भिक रचना माना जाता है। लेकिन इसी के बल पर दंडी को संस्कृत का पहला गद्यकार भी कहा जाता है।

दशकुमारचरित 10 राजकुमारों के प्रेम व सत्ता प्राप्ति के उनके प्रयासों के दौरान सुख-दुख का वर्णन करता है। यह रचना मानव के अवगुणों के यथार्थपरक चित्रण और परालौकिक चमत्कार, जिसमें देवताओं का मानवीय मामलों में हस्तक्षेप शामिल है, से ओतप्रोत है।

काव्यादर्श

काव्यादर्श दंडी की प्रौढ़ावस्था की रचना है। काव्यादर्श साहित्यिक आलोचना की रचना है, जो कविता की प्रत्येक प्रकार की शैली व भावना के आदर्शों को परिभाषित करती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 369।