साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय

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साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी
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मानसून का शंख
          "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" कैलास पर्वत पर पार्वती मैया ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। शंकर जी ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले-
"तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो नंदी की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" पूरा पढ़ें

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