कैलास पर्वत
कैलास | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कैलास (बहुविकल्पी) |
कैलास पर्वत (कांग-ति-स्सू-शान), हिमालय पर्वतीय प्रणाली के सर्वोच्च और सबसे विषम क्षेत्रों में से एक है। यह चीन के तिब्बत क्षेत्र के अंतर्गत स्वायत्त क्यू[1] के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित है। इस श्रेणी का अक्ष पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पश्चिम की ओर है और एक द्रोणी के उत्तर में अवस्थित है, जो पश्चिमी क्षेत्र में लांग्चू नदी[2] और पूर्व में ब्रह्मपुत्र[3] के आरम्भिक जलस्रोत माचुआन नदी द्वारा अपवाहित होता है। इस अवसादी क्षेत्र के मध्य में मापाम झील है, जो समुद्र तल से 4,557 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण दुनिया की सबसे ऊँची मीठे पानी की झील के रूप में विख्यात है। इस झील के उत्तर में 6,714 मीटर ऊँचा कैलाश पर्वत है, जो तिब्बत में 'गंग तिसे' नाम से जाना जाता है और यह इस श्रेणी की उच्चतम चोटी है।
पौराणिक उल्लेख
यह मानसरोवर के निकट स्थित, प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध पर्वत है, जिस पर महादेव शिव और पार्वती का निवास माना जाता है। कैलास पर्वत के विषय में अति प्राचीन काल से ही हमारे साहित्य में उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड[4] में सुग्रीव ने शतवल वानर की सेना को उत्तर दिशा की ओर भेजते हुए उस दिशा के स्थानों में कैलास का भी उल्लेख किया है-
"तत्तु शीघ्रमतिक्रम्य कान्तारं रोमहूर्गणम-कैलासं पांडुरं प्राप्य द्रष्टासूर्य भविष्यथ"।[5]
अर्थात् "उस भयानक वन को पार करने के पश्चात् श्वेत[6] कैलास पर्वत को देखकर तुम प्रसन्न हो जाओगे।"
इससे आगे के श्लोकों में कैलास में कुबेर के स्वर्ण-निर्मित घर[7] विशाल झील मानसरोवर[8] तथा यक्षराज वैश्रवण या कुबेर और यक्षों[9] का वर्णन है।[10]
- महाभारत, वनपर्व के अंतर्गत कैलास का उल्लेख पांडवों की गंधमादन पर्वत की यात्रा के प्रसंग में है, जहां कैलास को लांघने के पश्चात् उसके परवर्ती प्रदेश में केवल देवर्षियों की गति ही संभव है-
अस्तयातिक्रम्यं शिखरं कैलासम्य युधिष्ठिर, गति परमसिद्धानां देवर्षीणीं प्रकाशते"।[11]
"कैलास: पर्वतो राजन् षड्योजनसमुच्छित: यत्र देवा समायान्ति विशाला यत्र भारत।"
- भीष्मपर्व[13] में कैलास का दूसरा नाम 'हेमकूट' भी कहा गया है तथा वहां गुह्माकों (यक्षों) का निवास माना गया है-
"हेमकूटस्तु सुमहान कैलासो नाम पर्वत: यत्र वैश्रवणो राजन् गुह्यकै: सह मोदते।"
"गत्वा चोर्द्धवं दशमुखजोच्छ्वासितप्रस्थ सन्धै:कैलासस्य त्रिदशवनिता दर्पणस्यातिथि: स्या:तुंगोच्छ्रायै: कुमुदविशदैर्योवितत्य स्थिति: खं, राशीभूत: प्रतिदिशमिवत्र्यम्बकस्याट्टहास:।"
- यह द्रष्टव्य है कि वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड[15] और मेघदूत के उपर्युक्त वर्णन, दोनों ही में कैलास के धवल-हिममंडित सौंदर्य को सराहा गया है।
आज भी कैलास के यात्री इस पर्वत की, जिसके शिखर सदा हिम से ढके रहते हैं, श्वेत आभा को देखकर मुग्ध हो जाते हैं तथा कालिदास की सुन्दर उपमाओं[16] की सार्थकता उनकी समझ में आती है। मेघदूत की अलकापुरी कैलास पर ही बसी थी। महाकवि कालिदास ने पूर्वमेघ में गंगा को कैलास की गोद में अवस्थित बताया है। यहाँ गंगा से अलकनंदा का निर्देश समझना चाहिए, क्योंकि अलकनंदा कैलास के निकट बहती हुई बद्रीनाथ आती है और नीचे गंगा के गंगोत्री वाले स्त्रोत में मिल जाती है। संभवत: यह गंगा का मूल स्त्रोत ही हो। 'बुद्धचरित'[17] में बौद्ध स्तूपों की भव्यता की तुलना कैलास के हिमाच्छादित शिखरों से की गई है।[10]
पवित्र धार्मिक स्थल
कैलाश पर्वत हिन्दू और तिब्बती बौद्धों, दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है; हिन्दू इसे शिव का निवास स्थान मानते हैं, जबकि तिब्बती बौद्ध इसे ब्रह्माण्ड का सार्वभौमिक केन्द्र, सुमेरु पर्वत मानते हैं। हालाँकि कैलाश पर्वत और मापाम झील तक तीर्थस्थल के रूप में जाने की अनुमति 1951 में तिब्बत पर चीन के अधिकार के बाद दी गई थी और 1954 में भारत-चीन सन्धि में भी इसकी पुष्टि की गई थी, लेकिन तिब्बत में विद्रोह के दमन के बाद वहाँ जाने पर नियंत्रण लगा दिया गया और 1962 में सीमा बन्द कर दी गई। दक्षिण की ओर से इस क्षेत्र में पहुँचने का रास्ता पुलन के दक्षिण में स्थित ऊँचे लिपुलेख दर्रे से होकर जाता है। कैलाश पर्वतश्रेणी के उत्तरी कगार से सिन्धु नदी निकलती है।
शिव पुराण के अनुसार
- शिव अपने गणों तथा देवी-देवताओं सहित निधिनाथ के पास अलकापुरी गये।
- उनका आतिथ्य ग्रहण करके शिव ने विश्वकर्मा को आज्ञा दी कि वह कैलास पर्वत पर उनके तथा गणों के लिए मंदिर बनवाये।
- मंदिर बनने के उपरांत वे वहाँ चले गये। सब देवी-देवताओं को उन्होंने अपना-अपना कार्य संपन्न करने के लिए विदा किया।[18]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्षेत्र
- ↑ सतलुज नदी का चीनी नाम
- ↑ चीनी भाषा में यालिज़आंग्बू या सांग्पो नदी
- ↑ 43
- ↑ किष्किन्धा काण्ड 43, 20
- ↑ हिममंडित
- ↑ ‘तत्र पांडुर मेघाभं जांबूनदपरिष्कृतम् कुबेरभवनं रम्यं निर्मितं विश्वकर्मणा’ 43, 21
- ↑ ‘विशाला नलिनी यत्र प्रभूतकमलोत्पला हंसकारंडवाकीर्णाप्सरो गण सेविता’ 43, 22
- ↑ ‘तत्र वैश्रवणो राजा सर्वलोकनमस्कृत:, धनदो रम्यते श्रीमान गुह्मकै: सह यक्षराट्’ 43, 23
- ↑ 10.0 10.1 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 226 |
- ↑ महभारत, वनपर्व 159, 24
- ↑ 139, 11
- ↑ 6, 41
- ↑ (पूर्वार्घ, 60)
- ↑ 43, 20
- ↑ देववधुओं के दर्पण के समान स्वच्छ, कुमुदपुष्पों के समान विशद और शिव के अट्टाहस का मानो राशीभूत रूप
- ↑ 28, 57
- ↑ शिव पुराण 1 । पूर्वार्द्ध 20-22 ।-
- ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 226-227| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
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