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लक्ष्मीकांत प्यारेलाल

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लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
पूरा नाम लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकर और प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा
प्रसिद्ध नाम लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
अन्य नाम लक्ष्मी-प्यारे (एल.पी. या LP)
जन्म लक्ष्मीकांत- 3 नवंबर, 1937 मुंबई

प्यारेलाल- 3 सितम्बर, 1940 गोरखपुर

मृत्यु लक्ष्मीकांत- 25 मई, 1998 मुंबई
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य फ़िल्में मिलन, शागिर्द, इंतक़ाम, दो रास्ते, सरगम, हीरो, नाम, तेज़ाब, खलनायक आदि
पुरस्कार-उपाधि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीता।
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत सावन का महीना, दिल विल प्यार व्यार, बिन्दिया चमकेगी, चिट्ठी आई है आदि

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (अंग्रेज़ी: Laxmikant-Pyarelal) हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी है। इन्होंने बॉलीवुड को अनेक सफल गीत दिये हैं। इन्हें 'लक्ष्मी-प्यारे' (एल.पी. या LP) भी कहा जाता है।

लक्ष्मीकांत

लक्ष्मीकांत का जन्म 3 नवंबर 1937 में हुआ था। नौ वर्ष की छोटी सी उम्र मे हीं उनके पिता का निधन हो गया, जिसके कारण उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। बचपन के दिनों से ही लक्ष्मीकांत का रुझान संगीत की ओर था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। लक्ष्मीकांत ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उस्ताद हुसैन अली से हासिल की। इस बीच घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए लक्ष्मीकांत ने संगीत समारोह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। आगे चलकर वाद्य यंत्र मेंडोलियन बजाने की शिक्षा बालमुकुंद इंदौरकर से ली। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी के रूप में फ़िल्म जगत में अपने संगीत का लोहा मनवाकर ही माने। अपने कैरियर की शुरुआत कल्याण जी आनन्द के बतौर सहायक के तौर पर उन्होंने मदारी, सत्ता बाज़ार, छलिया और दिल तेरा हम भी तेरे जैसी कई फ़िल्मों में काम किया। इस जोड़ी पर संगीत का ऐसा जुनुन था कि मशहूर निर्माता-निर्देशक बाबू भाई मिस्त्री की क्लासिकल फ़िल्म पारसमणि ने इनकी तकदीर बदल कर रख दी। फिर पीछे मुड़कर देखने का मौका हीं नहीं मिला।

प्यारेलाल

प्यारेलाल का बचपन बेहद संघर्षभरा रहा। उनकी माँ का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था। उनके पिता पंडित रामप्रसाद जी ट्रम्पेट बजाते थे और चाहते थे कि प्यारेलाल वायलिन सीखें। पिता के आर्थिक हालात ठीक नही थे, वे घर घर जाते थे जब भी कहीं उन्हें बजाने का मौका मिलता था और साथ में प्यारे को भी ले जाते। उनका मासूम चेहरा सबको आकर्षित करता था। एक बार पंडित जी उन्हें लता मंगेशकर के घर लेकर गए। लता जी प्यारे के वायलिन वादन से इतनी खुश हुई कि उन्होंने प्यारे को 500 रुपए इनाम में दिए जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। वो घंटों वायलिन का रियाज़ करते। अपनी मेहनत के दम पर उन्हें मुंबई के रंजीत स्टूडियो के ओर्केस्ट्रा में नौकरी मिल गई जहाँ उन्हें 85 रुपए मासिक वेतन मिलता था। अब उनके परिवार का पालन इन्हीं पैसों से होने लगा। उन्होंने एक रात्रि स्कूल में सातवें ग्रेड की पढाई के लिए दाखिला लिया पर 3 रुपये की मासिक फीस उठा पाने की असमर्थता के चलते छोड़ना पड़ा। मुश्किल हालातों ने भी उनके हौसले कम नहीं किए, वो बहुत महत्वकांक्षी थे, अपने संगीत के दम पर अपने लिए नाम कमाना और देश विदेश की यात्रा करना उनका सपना था।[1]

"मैंने संगीत सीखने के लिए एक संगीत ग्रुप (मद्रिगल सिंगर) जोइन किया, पर वहां मुझे हिंदू होने के कारण स्टेज आदि पर परफोर्म करने का मौका नही मिलता था। वो लोग पारसी और इसाई वादकों को अधिक बढ़ावा देते थे। पर मुझे सीखना था तो मैं सब कुछ सह कर भी टिका रहा। पर मेरे पिता ये सब अधिक बर्दाश्त नही कर पाते थे। उन्होंने ख़ुद गरीब बच्चों को मुफ्त में सिखाने का जिम्मा उठाया और वो उन्हें संगीतकार नौशाद साहब के घर भी ले जाया करते थे। क़रीब 1500 बच्चों को मेरे पिता ने तालीम दी"

प्रसिद्ध गीत

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने हिन्दी सिनेमा को बेहतरीन गीत दिये उनमें कुछ के नाम नीचे दिये गये हैं।

  • सावन का महीना... (फ़िल्म- मिलन)
  • दिल विल प्यार व्यार... (फ़िल्म- शागिर्द)
  • बिन्दिया चमकेगी... (फ़िल्म- दो रास्ते)
  • मंहगाई मार गई... (फ़िल्म- रोटी कपड़ा और मकान)
  • डफली वाले... (फ़िल्म- सरगम)
  • तू मेरा हीरो है... (फ़िल्म- हीरो )
  • यशोदा का नन्दलाला... (फ़िल्म- संजोग)
  • चिट्ठी आई है... (फ़िल्म- नाम)
  • एक दो तीन... (फ़िल्म- तेज़ाब)
  • चोली के पीछे क्या है... (फ़िल्म- खलनायक)



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