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*अजातशत्रु के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने [[राजगृह]] की पहाड़ी पर [[स्तूप]] बनवाया।  
 
*अजातशत्रु के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने [[राजगृह]] की पहाड़ी पर [[स्तूप]] बनवाया।  
 
*आगे चलकर राजगृह में ही वैभार-पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से [[बौद्ध]] संघ की प्रथम संगति हुई जिसमें [[सुत्तपिटक]] और [[विनयपिटक]] का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ।
 
*आगे चलकर राजगृह में ही वैभार-पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से [[बौद्ध]] संघ की प्रथम संगति हुई जिसमें [[सुत्तपिटक]] और [[विनयपिटक]] का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ।
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  • अजातशत्रु (लगभग 495 ई. पू.) बिंबिसार का पुत्र था।
  • मगध के इस प्रतापी सम्राट ने अपने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया था।
  • अजातशत्रु ने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विशाल साम्राज्य को स्थापित किया।
  • पालि-ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है, क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। गंगा और सोन के संगम पर पाटलिपुत्र की स्थापना उसी ने की थी। उसका मन्त्री वस्सकार एक कुशल राजनीतिज्ञ था जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य को विस्तृत किया था।
  • कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी वजिरा से विवाह किया, जिससे काशी जनपद स्वतः उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा।
  • प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीन लिया था। उसके राजत्वकाल में ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र को समाप्त किया था।
  • अजातशत्रु के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया।
  • आगे चलकर राजगृह में ही वैभार-पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से बौद्ध संघ की प्रथम संगति हुई जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ।

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