अहोई अष्टमी

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अहोई अष्टमी
अहोई अष्टमी कॅलेण्डर
अन्य नाम अहोई अष्टमी व्रत
अनुयायी हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
उद्देश्य संतान के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिए
तिथि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी
धार्मिक मान्यता माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का का पूजन किया जाता है।
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अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है। यह अहोई गेरु आदि के द्वारा दीवाल पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढकर पूजा के समय उसे दीवाल पर टांग दिया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है।

अहोई माता

अहोई माता के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।

पूजन विधि

  • अहोई अष्टमी व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूँ, ऐसा संकल्प करें।
  • अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे।
  • अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें।
  • अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएँ और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएँ।
  • संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।
  • अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।
  • पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।
  • पूजा के पश्चात सासू-मां के पैर छूएं और उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।
  • तारों की पूजा करें और जल चढ़ायें।
  • इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

अहोई अष्टमी व्रत की दो लोक कथाएँ प्रचलित हैं-

कथा-I

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई। यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

कथा-II

प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं। इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे है। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई मता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है।

अहोई माता की आरती

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।

अहोई अष्टमी उघापन विधि

जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उघापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए, एक थाल में सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए। इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी, ब्लाउज एवं रुपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए। उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि को अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर दे। यदि कोई कन्या हो तो उसके यहां भेज दे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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