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{[[झेलम नदी]] के किनारे प्रसिद्ध '[[वितस्ता का युद्ध]]' किन-किन शासकों के बीच हुआ था?
{ [[झेलम नदी]] के किनारे प्रसिद्ध 'वितस्ता का युद्ध' किन-किन शासकों के बीच हुआ था?
 
 
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-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] एवं [[सेल्युकस]] के मध्य
 
-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] एवं [[सेल्युकस]] के मध्य
-घननन्द एवं चन्द्रगुप्त मौर्य के मध्य
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-[[धननन्द]] एवं [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के मध्य
+पोरस एवं [[सिकन्दर]] के मध्य
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-सिकन्दर एवं [[आम्भि]] के मध्य
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-[[सिकन्दर]] एवं [[आम्भि]] के मध्य
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||'[[वितस्ता का युद्ध]]' राजा [[पुरु]] और मकदूनिया ([[यूनान]]) के राजा [[सिकन्दर]] (अलेक्ज़ेंडर) के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध में राजा पुरु ने अपनी [[हाथी]] सेना पर ही अधिक भरोसा किया और युद्ध में हाथियों की संख्या घोड़ों के मुकाबले अधिक रखी। जबकि सिकन्दर ने अपने घुड़सवार तीरन्दाजों पर अधिक भरोसा किया। युद्ध में सिकन्दर की घुड़सवार सेना की तेजी पुरु की हाथी सेना पर भारी पड़ी और परिणामस्वरूप पुरु ये युद्ध हार गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वितस्ता का युद्ध]]
  
{ निम्न में से किसने शुद्ध सोने के सिक्के जारी किए थे?
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{निम्न में से किसने शुद्ध [[सोना|सोने]] के सिक्के जारी किए थे?
 
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-[[गुप्त|गुप्तों]] ने
 
-[[गुप्त|गुप्तों]] ने
-हिन्द यवनों ने
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+[[कुषाण|कुषाणों]] ने
 
+[[कुषाण|कुषाणों]] ने
 
-[[शुंग|शुंगों]] ने
 
-[[शुंग|शुंगों]] ने
||कुषाण भी [[शक|शकों]] की ही तरह मध्य [[एशिया]] से निकाले जाने पर [[क़ाबुल]]-[[कंधार]] की ओर यहाँ आ गये थे। उस काल में यहाँ के हिन्दी यूनानियों की शक्ति कम हो गई थी, उन्हें कुषाणों ने सरलता से पराजित कर दिया। उसके बाद उन्होंने क़ाबुल-कंधार पर अपना राज्याधिकार कायम किया। उनके प्रथम राजा का नाम 'कुजुल कडफाइसिस' था। उसने क़ाबुल–कंधार के [[यवन|यवनों]] (हिन्दी यूनानियों) को हराकर [[भारत]] की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बसे हुए [[पल्लव|पल्लवों]] को भी पराजित कर दिया। कुषाणों का शासन पश्चिमी [[पंजाब]] तक हो गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण]]
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||[[कुषाण]] भी [[शक|शकों]] की ही तरह मध्य [[एशिया]] से खदेड़ दिये जाने पर [[क़ाबुल]]-[[कंधार]] की ओर यहाँ आ गये थे। कुषाण सम्राट [[कनिष्क]] के [[तांबा|तांबे]] के सिक्कों पर उसे 'बलिवेदी' पर बलिदान करते हुए दर्शाया गया है। कनिष्क के [[सोना|सोने]] के सिक्के [[रोम]] के सिक्कों से काफ़ी कुछ मिलते थे। [[बुद्ध]] के [[अवशेष|अवशेषों]] पर कनिष्क ने [[पेशावर]] के निकट एक [[स्तूप]] एवं मठ निर्माण करवाया। कनिष्क [[कला]] और विद्वता का आश्रयदाता था। इसके दरबार का सबसे महान साहित्यिक व्यक्ति [[अश्वघोष]] था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुषाण साम्राज्य]]
  
{ [[मौर्य काल]] में निर्मित ‘सुदर्शन झील’ का निर्माण किसने करवाया था?
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{[[मौर्य काल]] में निर्मित 'सुदर्शन झील' का निर्माण किसने करवाया था?
 
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+पुष्पगुप्त
 
+पुष्पगुप्त
-उपगुप्त
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-[[उपगुप्त]]
 
-तुषाष्क
 
-तुषाष्क
 
-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
 
-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
  
{ [[गुप्त वंश]] का संस्थापक कौन था?
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{[[गुप्त वंश]] का संस्थापक कौन था?
 
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-घटोत्कचगुप्त
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-[[घटोत्कच (गुप्त काल)|घटोत्कच गुप्त]]
 
-[[चन्द्रगुप्त प्रथम]]
 
-[[चन्द्रगुप्त प्रथम]]
 
+[[श्रीगुप्त]]
 
+[[श्रीगुप्त]]
 
-[[रामगुप्त]]
 
-[[रामगुप्त]]
||[[गुप्त]] राजा स्वयं [[बौद्ध]] नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय [[भारत]] में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्त्वपूर्व दान दिया था। दो मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिनमें से एक पर 'गुतस्य' और दूसरी पर 'श्रीगुप्तस्य' लिखा है। सम्भवतः ये इसी महाराज श्रीगुप्त की हैं। प्रभावती गुप्त के [[पूना]] स्थित ताम्रपत्र अभिलेख में श्री गुप्त का उल्लेख [[गुप्त वंश]] के आदिराज के रूप में किया गया है। लेखों में इसका गोत्र 'धरण' बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीगुप्त]]
+
||[[कुषाण साम्राज्य]] के पतन के समय [[उत्तरी भारत]] में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उससे लाभ उठाकर बहुत से प्रान्तीय सामन्त राजा स्वतंत्र हो गए थे। सम्भवतः इसी प्रकार का एक व्यक्ति [[श्रीगुप्त]] भी था। [[गुप्त राजवंश]] की स्थापना महाराजा गुप्त ने लगभग 275 ई. में की थी। उसका वास्तविक नाम 'श्रीगुप्त' था। उसने [[मगध]] के कुछ पूर्व में चीनी यात्री [[इत्सिंग]] के अनुसार [[नालन्दा]] से प्रायः चालीस योजन पूर्व की तरफ़ अपने राज्य का विस्तार किया। अपनी शक्ति को स्थापित कर लेने के कारण उसने 'महाराज' की पदवी ग्रहण की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीगुप्त]]
  
{ ‘मेहरोली का स्तम्भ लेख’ किस शासक से सम्बन्धित है?
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{'मेहरोली का स्तम्भ लेख' किस शासक से सम्बन्धित है?
 
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+[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
 
+[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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-[[अशोक]]
 
-[[अशोक]]
 
-[[समुद्रगुप्त]]
 
-[[समुद्रगुप्त]]
||चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 380-413) [[गुप्त वंश]] का राजा था। समस्त गुप्त राजाओं में समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। चन्द्रगुप्त द्वितीय (381-413 ई.) का सेनापति आम्रकार्द्दव था। उसे देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री, श्रीविक्रम, विक्रमादित्य, परमाभागवत्, नरेन्द्रचन्द्र, सिंहविक्रम, अजीत विक्रम आदि उपाधि धारण किए थे। अनुश्रूतियों में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह [[वाकाटक वंश|वाकाटक]] नरेश रुद्रसेन से किया, रुद्रसेन की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर [[उज्जैन]] को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इसी कारण चन्द्रगुप्त द्वितीय को 'उज्जैनपुरवराधीश्वर' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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||'चन्द्रगुप्त द्वितीय' (राज 380-413) [[गुप्त वंश]] का राजा था। सभी [[गुप्त]] राजाओं में [[समुद्रगुप्त]] का पुत्र [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री, श्रीविक्रम, विक्रमादित्य, परमभागवत्, नरेन्द्रचन्द्र, सिंहविक्रम, अजीत विक्रम आदि उपाधियाँ धारण की थीं। अनुश्रूतियों में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का [[विवाह]] [[वाकाटक वंश|वाकाटक]] नरेश [[रुद्रसेन]] से किया था। रुद्रसेन की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर [[उज्जैन]] को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इसी कारण से उसे 'उज्जैनपुरवराधीश्वर' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
  
{ किस गुप्तकालीन शासक को ‘कविराज’ कहा गया है?
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{[[गुप्त काल]] के किस शासक को 'कविराज' कहा गया है?
 
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-[[श्रीगुप्त]]
 
-[[श्रीगुप्त]]
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+[[समुद्रगुप्त]]
 
+[[समुद्रगुप्त]]
 
-[[स्कन्दगुप्त]]
 
-[[स्कन्दगुप्त]]
||समुद्रगुप्त अनुपम वीर था। उसने शीघ्र ही भाइयों के विद्रोह को शान्त कर दिया था, और [[पाटलिपुत्र]] के सिंहासन पर दृढ़ता के साथ अपना अधिकार जमा लिया। काच ने एक साल के लगभग तक राज्य किया। काच नामक गुप्त राजा की सत्ता को मानने का आधार केवल वे सिक्के हैं, जिन पर उसका नाम 'सर्वराजोच्छेता' विशेषण के साथ दिया गया है। अनेक विद्वानों का मत है, कि काच समुद्रगुप्त का ही नाम था। ये सिक्के उसी के हैं, और बाद में दिग्विजय करके जब वह 'आसमुद्रक्षितीश' बन गया था, तब उसने काच के स्थान पर समुद्रगुप्त नाम धारण कर लिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]  
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||[[हरिषेण]] के शब्दों में [[समुद्रगुप्त]] का चरित्र इस प्रकार का था- 'उसका मन विद्वानों के सत्संग-सुख का व्यसनी था। उसके जीवन में [[सरस्वती]] और [[लक्ष्मी]] का अविरोध था। वह वैदिक मार्ग का अनुयायी था। उसका काव्य ऐसा था, कि कवियों की बुद्धि विभव का भी उससे विकास होता था, यही कारण है कि उसे 'कविराज' की उपाधि दी गई थी। ऐसा कौन-सा ऐसा गुण है, जो उसमें नहीं था। सैकड़ों देशों में विजय प्राप्त करने की उसमें अपूर्व क्षमता थी। अपनी भुजाओं का पराक्रम ही उसका सबसे उत्तम साथी था। [[परशु अस्त्र|परशु]], [[बाण अस्त्र|बाण]], शंकु, शक्ति आदि [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्रों-शस्त्रों]] के सैकड़ों घावों से उसका शरीर सुशोभित था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]
  
{ ‘दीवानी’ एवं ‘फ़ौजदारी’ से सम्बन्धित ग्रन्थ की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी?
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{'दीवानी' एवं 'फ़ौजदारी' से सम्बन्धित [[ग्रन्थ]] की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी?
 
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-[[मौर्य काल]] में
 
-[[मौर्य काल]] में
 
-[[कुषाण काल]] में
 
-[[कुषाण काल]] में
+[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]] में
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+[[गुप्त काल]] में
-गुप्तोत्तर काल में
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-[[गुप्तोत्तर काल]] में
|| गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी [[सदी]] के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। गुप्त [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं। यही से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे। और अनेक दिशाओं में बढ़ते गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]  
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||[[गुप्त साम्राज्य]] का उदय तीसरी [[सदी]] के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। [[गुप्त]] [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक [[अभिलेख]] मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं। यहीं से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे और अनेक दिशाओं में बढ़ते गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]  
  
{ [[श्रीलंका]] के राजा 'मेघवर्मन' ने किस स्थान पर भगवान [[बुद्ध]] का मन्दिर बनवाने के लिए [[समुद्रगुप्त]] से अनुमति माँगी थी?
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{[[श्रीलंका]] के राजा 'मेघवर्मन' ने किस स्थान पर भगवान [[बुद्ध]] का मन्दिर बनवाने के लिए [[समुद्रगुप्त]] से अनुमति माँगी?
 
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-[[प्रयाग]]
 
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-[[कुशीनगर]]
 
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-[[अमरावती]]
 
-[[अमरावती]]
||बोधगया में बराबर की पहाडि़यों में सात गुफाएं हैं, जिनमें तीन को [[अशोक]] ने आजीविकों को दान कर दिया था। [[श्रीलंका]] के शासक मेघवर्मन ने [[समुद्रगुप्त]] की अनुमति से बोधगया में एक बौद्ध-विहार बनवाया था। बराबर की पहाड़ी से प्राप्त एक अभिलेख में [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासक अनन्तवर्मन का वर्णन है। बोधगया के ताराडीह में [[पाल वंश|पाल]] कालीन अवशेष प्राप्त हैं। गया के समीप [[सोनपुर]] से कुषाणों के अवशेष मिले हैं। गया की यात्रा चीनी यात्रियों [[फ़ाह्यान]] तथा [[ह्वेनसांग]] ने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोधगया]]
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||'बोधगया' में [[बराबर पहाड़ी|बराबर की पहाडि़यों]] में सात गुफ़ाएँ हैं, जिनमें तीन को [[अशोक]] ने आजीविकों को दान कर दिया था। [[श्रीलंका]] के शासक मेघवर्मन ने [[समुद्रगुप्त]] की अनुमति से [[बोधगया]] में एक बौद्ध-विहार बनवाया था। बराबर की पहाड़ी से प्राप्त एक [[अभिलेख]] में [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासक अनन्तवर्मन का वर्णन है। बोधगया के ताराडीह से [[पाल वंश|पाल]] कालीन [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। गया के समीप ही [[सोनपुर]] से [[कुषाण|कुषाणों]] के अवशेष मिले हैं। गया की यात्रा चीनी यात्रियों [[फ़ाह्यान]] तथा [[ह्वेनसांग]] ने भी की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोधगया]]
  
{ [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने कब ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी?
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{[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने कब 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी?
 
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+[[शक|शकों]] का उन्मूलन करने पर
 
+[[शक|शकों]] का उन्मूलन करने पर
-गुप्त सिंहासन पर बैठने के बाद
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-[[गुप्त]] सिंहासन पर बैठने के बाद
 
-[[चाँदी]] के सिक्के जारी करने के बाद
 
-[[चाँदी]] के सिक्के जारी करने के बाद
 
-उपर्युक्त सभी
 
-उपर्युक्त सभी
|| शक सम्भवतः उत्तरी [[चीन]] तथा [[यूरोप]] के मध्य स्थित विदेश झींगझियांग प्रदेश के निवासी थे। [[कुषाण|कुषाणों]] एवं शकों का क़बीला एक ही माना गया था। लगभग ई. पू. 100 में विदेशी शासकों की शक्ति बढ़ने लगी। [[मथुरा]] में इनका केन्द्र बना। यहाँ के राजा 'शक क्षत्रप' के नाम से जाने जाते हैं। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शक]]
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||[[चित्र:Chandragupta-Coins.JPG|right|140px|चन्द्रगुप्त द्वितीय की मुद्राएँ]][[गुजरात]] और [[काठियावाड़]] के शकों का उच्छेद करके उनके राज्य को [[गुप्त साम्राज्य]] के अंतर्गत कर लेना [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसी कारण वह 'शकारि' और 'विक्रमादित्य' कहलाया। कई सदी पहले शकों का इसी प्रकार से उच्छेद कर [[सातवाहन वंश|सातवाहन]] सम्राट [[गौतमीपुत्र सातकर्णि]] ने भी 'शकारि' और 'विक्रमादित्य' की उपाधियाँ ग्रहण की थीं। अब चन्द्रगुप्त द्वितीय ने भी एक बार फिर उसी गौरव को प्राप्त किया। गुजरात और काठियावाड़ की विजय के कारण अब गुप्त साम्राज्य की सीमा पश्चिम में [[अरब सागर]] तक विस्तृत हो गई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
  
{ गुप्त कालीन सोने की मुद्रा को क्या कहा जाता था?
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{[[गुप्त काल|गुप्त कालीन]] [[सोना|सोने]] की मुद्रा को क्या कहा जाता था?
 
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+दीनार
 
+दीनार
 
-कर्षापण
 
-कर्षापण
-निष्क
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-[[निष्क]]
 
-काकिनी
 
-काकिनी
  
{ गुप्त काल के जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया-
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{[[गुप्त काल]] के जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया-
 
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-[[मालवा]]
 
-[[मालवा]]
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+[[प्रयाग]]
 
+[[प्रयाग]]
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
||प्रयाग शब्द की व्युत्पत्ति वनपर्व यज धातु से मानी गयी है। उसके अनुसार सर्वात्मा [[ब्रह्मा]] ने सर्वप्रथम यहाँ यजन किया था (आहुति दी थी) इसलिए इसका नाम प्रयाग पड़ गया। [[पुराण|पुराणों]] में प्रयागमण्डल, प्रयाग और वेणी अथवा त्रिवेणी की विविध व्याख्याएँ की गयी है। [[मत्स्य पुराण]] तथा [[पद्मपुराण]] के अनुसार प्रयागमण्डल पाँच योजन की परिधि में विस्तृत है और उसमें प्रविष्ट होने पर एक-एक पद पर [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य मिलता है। प्रयाग की सीमा प्रतिष्ठान (झूँसी) से वासुकि सेतु तक तथा कंबल और अश्वतर नागों तक स्थित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]]
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||'प्रयाग' शब्द की व्युत्पत्ति वनपर्व यज धातु से मानी गयी है। उसके अनुसार सर्वात्मा [[ब्रह्मा]] ने सर्वप्रथम यहाँ यजन किया था (आहुति दी थी), इसलिए इसका नाम [[प्रयाग]] पड़ गया। [[पुराण|पुराणों]] में प्रयागमण्डल, प्रयाग और वेणी अथवा त्रिवेणी की विविध व्याख्याएँ की गयी हैं। [[मत्स्य पुराण]] तथा [[पद्मपुराण]] के अनुसार प्रयागमण्डल पाँच योजन की परिधि में विस्तृत है और उसमें प्रविष्ट होने पर एक-एक पद पर [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य मिलता है। प्रयाग की सीमा प्रतिष्ठान (झूँसी) से वासुकि सेतु तक तथा कंबल और अश्वतर नागों तक स्थित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]]
  
{ हरिषेण किस शासक का दरबारी कवि था?
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{[[हरिषेण]] किस शासक का दरबारी कवि था?
 
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+[[समुद्रगुप्त]]
 
+[[समुद्रगुप्त]]
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-[[कनिष्क]]
 
-[[कनिष्क]]
 
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
 
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
||सम्राट समुद्रगुप्त के वैयक्तिक गुणों और चरित्र के सम्बन्ध में [[प्रयाग]] की प्रशस्ति में बड़े सुन्दर संदर्भ पाये जाते हैं। इसे महादण्ड नायक ध्रुवभूति के पुत्र, संधिविग्रहिक महादण्डनायक हरिषेण ने तैयार किया था। हरिषेण के शब्दों में समुद्रगुप्त का चरित्र इस प्रकार का था - 'उसका मन विद्वानों के सत्संग-सुख का व्यसनी था। उसके जीवन में सरस्वती और लक्ष्मी का अविरोध था। वह वैदिक मार्ग का अनुयायी था। उसका काव्य ऐसा था, कि कवियों की बुद्धि विभव का भी उससे विकास होता था। कौन सा ऐसा गुण है, जो उसमें नहीं था। सैकड़ों देशों में विजय प्राप्त करने की उसमें अपूर्व क्षमता थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]
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||[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] के बाद [[समुद्रगुप्त]] [[मगध]] के सिंहासन पर बैठा। चन्द्रगुप्त के अनेक पुत्र थे, पर गुण और वीरता में समुद्रगुप्त सबसे बढ-चढ़कर था। [[लिच्छवी]] कुमारी श्रीकुमारदेवी का पुत्र होने के कारण भी उसका विशेष महत्त्व था। चन्द्रगुप्त ने उसे ही अपना उत्तराधिकारी चुना, और अपने इस निर्णय को राज्यसभा बुलाकर सभी सभ्यों के सम्मुख उद्घोषित किया। सम्राट समुद्रगुप्त के वैयक्तिक गुणों और चरित्र के सम्बन्ध में [[प्रयाग]] की प्रशस्ति में बड़े सुन्दर संदर्भ पाये जाते हैं। इसे महादण्ड नायक ध्रुवभूति के पुत्र, संधिविग्रहिक महादण्डनायक [[हरिषेण]] ने तैयार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]
  
{ [[सारनाथ]] के ‘घमेख स्तूप’ का निर्माण किस काल में हुआ था?
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{[[सारनाथ]] के 'घमेख स्तूप' का निर्माण किस काल में हुआ था?
 
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-[[मौर्य काल]]
 
-[[मौर्य काल]]
 
-[[कुषाण काल]]
 
-[[कुषाण काल]]
-शुंग काल
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-[[शुंग काल]]
+[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]]
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+[[गुप्त काल]]
|| गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी [[सदी]] के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। गुप्त [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं। यही से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे। और अनेक दिशाओं में बढ़ते गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]  
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||'गुप्त काल' में [[कला]] की विविध विधाओं, जैसे- स्थापत्य, [[चित्रकला]], मृदभांड कला आदि में अभूतपूर्ण प्रगति देखने को मिलती है। गुप्त कालीन स्थापत्य कला के सर्वोच्च उदाहरण तत्कालीन मंदिर थे। मंदिर निर्माण कला का जन्म यहीं से हुआ। इस समय के मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर निर्मित किए जाते थे। चबूतरे पर चढ़ने के लिए चारों ओर से सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था। [[देवता]] की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया गया था और गर्भगृह के चारों ओर ऊपर से आच्छादित प्रदक्षिणा मार्ग का निर्माण किया जाता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]
  
{ यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय ग्रन्थ कौन-सा है?
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{यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय [[ग्रन्थ]] कौन-सा है?
 
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-[[श्रीमद्भागवदगीता]]
 
-[[श्रीमद्भागवदगीता]]
+अभिज्ञानशाकुन्तलम
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+[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]
-कुमारसम्भव
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-[[कुमारसम्भव]]
 
-कामसूत्र
 
-कामसूत्र
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||'अभिज्ञानशाकुन्तलम़' न केवल [[संस्कृत साहित्य]] का, अपितु विश्वसाहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटक है। यह महाकवि [[कालिदास]] की अन्तिम रचना है। इसके सात अंकों में राजा [[दुष्यन्त]] और [[शकुन्तला]] की प्रणय-कथा का वर्णन है। जब सन 1791 में जॉर्ज फ़ोस्टर ने इसका जर्मनी भाषा में अनुवाद किया, तो उसे देखकर जर्मन विद्वान गेटे इतने गदगद हुए कि उन्होंने उसकी प्रशंसा में एक कविता लिख डाली थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]
  
{ [[सती प्रथा]] का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है?
+
{[[सती प्रथा]] का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है?
 
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-भीतरगाँव लेख से
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-[[भीतरगाँव कानपुर|भीतरगाँव लेख]] से
 
-विलसद स्तम्भलेख से
 
-विलसद स्तम्भलेख से
 
+[[एरण]] अभिलेख से
 
+[[एरण]] अभिलेख से
-भितरी स्तम्भलेख से
+
-[[भितरी]] स्तम्भलेख से
|| एरण गुप्तकाल में एक महत्त्वपूर्ण नगर था। यहाँ से गुप्तकाल के अनेक अभिलेख प्राप्त हुये हैं। गुप्त सम्राट [[समुद्रगुप्त]] के एक शिलालेख में एरण को 'एरकिण' कहा गया है। इस अभिलेख को [[कनिंघम]] ने खोजा था। यह वर्तमान में [[कोलकाता]] संग्रहालय में सुरक्षित है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एरण]]  
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||एरण [[गुप्त काल]] में एक महत्त्वपूर्ण नगर था। यहाँ से गुप्त काल के अनेक [[अभिलेख]] प्राप्त हुये हैं। [[गुप्त]] सम्राट [[समुद्रगुप्त]] के एक [[शिलालेख]] में [[एरण]] को 'एरकिण' कहा गया है। इस अभिलेख को [[कनिंघम]] ने खोजा था। यह वर्तमान में [[कोलकाता]] संग्रहालय में सुरक्षित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एरण]]  
 
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07:50, 21 अप्रैल 2012 का अवतरण

सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश

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1 झेलम नदी के किनारे प्रसिद्ध 'वितस्ता का युद्ध' किन-किन शासकों के बीच हुआ था?

चन्द्रगुप्त मौर्य एवं सेल्युकस के मध्य
धननन्द एवं चन्द्रगुप्त मौर्य के मध्य
पोरस एवं सिकन्दर के मध्य
सिकन्दर एवं आम्भि के मध्य

2 निम्न में से किसने शुद्ध सोने के सिक्के जारी किए थे?

गुप्तों ने
हिन्द-यवनों ने
कुषाणों ने
शुंगों ने

3 मौर्य काल में निर्मित 'सुदर्शन झील' का निर्माण किसने करवाया था?

पुष्पगुप्त
उपगुप्त
तुषाष्क
चन्द्रगुप्त मौर्य

5 'मेहरोली का स्तम्भ लेख' किस शासक से सम्बन्धित है?

चन्द्रगुप्त द्वितीय
चन्द्रगुप्त मौर्य
अशोक
समुद्रगुप्त

7 'दीवानी' एवं 'फ़ौजदारी' से सम्बन्धित ग्रन्थ की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी?

मौर्य काल में
कुषाण काल में
गुप्त काल में
गुप्तोत्तर काल में

8 श्रीलंका के राजा 'मेघवर्मन' ने किस स्थान पर भगवान बुद्ध का मन्दिर बनवाने के लिए समुद्रगुप्त से अनुमति माँगी?

प्रयाग
बोधगया
कुशीनगर
अमरावती

9 चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कब 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी?

शकों का उन्मूलन करने पर
गुप्त सिंहासन पर बैठने के बाद
चाँदी के सिक्के जारी करने के बाद
उपर्युक्त सभी

10 गुप्त कालीन सोने की मुद्रा को क्या कहा जाता था?

दीनार
कर्षापण
निष्क
काकिनी

11 गुप्त काल के जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया-

मालवा
मगध
प्रयाग
उपर्युक्त में से कोई नहीं

13 सारनाथ के 'घमेख स्तूप' का निर्माण किस काल में हुआ था?

मौर्य काल
कुषाण काल
शुंग काल
गुप्त काल

14 यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय ग्रन्थ कौन-सा है?

श्रीमद्भागवदगीता
अभिज्ञानशाकुन्तलम
कुमारसम्भव
कामसूत्र

15 सती प्रथा का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है?

भीतरगाँव लेख से
विलसद स्तम्भलेख से
एरण अभिलेख से
भितरी स्तम्भलेख से

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