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-[[श्रीरंगम]]
 
-[[श्रीरंगम]]
||[[चित्र:Lakshmi-Narsmiha-Hampi.jpg|लक्ष्मी नरसिम्हा, हम्पी|100px|right]]'हम्पी' [[मध्यकालीन भारत|मध्यकालीन]] [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी था। यह प्राचीन शानदार नगर अब मात्र [[खंडहर|खंडहरों]] के रूप में ही [[अवशेष]] अंश में उपस्थित है। [[हम्पी]] में [[कृष्णदेव राय]] के शासन काल में बनाया गया प्रसिद्ध 'हज़ाराराम मन्दिर' विद्यमान हिन्दू मन्दिरों की [[वास्तुकला]] के पूर्णतम नमूनों में से एक है। मन्दिर की दीवारों पर [[रामायण]] के सभी प्रमुख दृश्य बड़ी सुन्दरता से उकेरे गये हैं। यह मन्दिर राजपरिवार की स्त्रियों की [[पूजा]] के लिये बनवाया गया था। 'विट्ठलस्वामी मन्दिर' भी विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है। मन्दिर के कल्याणमंडप की नक्काशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। मन्दिर का भीतरी भाग 55 फुट लम्बा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हम्पी]]
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||[[चित्र:Lakshmi-Narsmiha-Hampi.jpg|लक्ष्मी नरसिम्हा, हम्पी|100px|right]]'हम्पी' [[मध्यकालीन भारत|मध्यकालीन]] [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी था। यह प्राचीन शानदार नगर अब मात्र [[खंडहर|खंडहरों]] के रूप में ही [[अवशेष]] अंश में उपस्थित है। [[हम्पी]] में [[कृष्णदेव राय]] के शासन काल में बनाया गया प्रसिद्ध 'हज़ाराराम मन्दिर' विद्यमान हिन्दू मन्दिरों की [[वास्तुकला]] के पूर्णतम नमूनों में से एक है। मन्दिर की दीवारों पर [[रामायण]] के सभी प्रमुख दृश्य बड़ी सुन्दरता से उकेरे गये हैं। यह मन्दिर राजपरिवार की स्त्रियों की [[पूजा]] के लिये बनवाया गया था। '[[विट्ठलस्वामी मन्दिर, हम्पी|विट्ठलस्वामी मन्दिर]]' भी विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है। मन्दिर के कल्याणमंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। मन्दिर का भीतरी भाग 55 फुट लम्बा है। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हम्पी]]
  
 
{[[मौर्यकालीन भारत]] में भूमि कर, जो कि राज्य की आय का मुख्य स्रोत था, किस अधिकारी द्वारा एकत्रित किया जाता था?
 
{[[मौर्यकालीन भारत]] में भूमि कर, जो कि राज्य की आय का मुख्य स्रोत था, किस अधिकारी द्वारा एकत्रित किया जाता था?
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-शुल्काध्यक्ष
 
-शुल्काध्यक्ष
 
-अक्राध्यक्ष
 
-अक्राध्यक्ष
||[[चित्र:Chandragupt-Maurya-Stamp.jpg|right|100px|चन्द्रगुप्त मौर्य का टिकट]][[मौर्य काल]] में राजकीय भूमि पर दासों, कर्मकरों और क़ैदियों द्वारा कृषि-कर्म कराया जाता था। दास और कर्मकरों को भोजन आदि दिया जाता था और कार्य के दौरान नक़द मासिक वेतन भी दिया जाता था। परन्तु ऐसी भी राजकीय भूमि होती थी, जिस पर 'सीताध्यक्ष' द्वारा खेती नहीं कराई जाती थी। ऐसी भूमि पर करद कृषक खेती किया करते थे। 'सीताध्यक्ष' राजकीय [[कृषि]] विभाग का अध्यक्ष होता था, जिसके द्वारा राजकीय भूमि से राज्य को सर्वाधिक कर प्राप्त होता था। [[मेगस्थनीज़]], स्ट्राबो तथा ऐरियन इत्यादि [[यूनानी]] लेखकों के अनुसार सारी भूमि राजा की होती थी। वे राजा के लिए खेती करते थे और ¼ भाग राजा को लगान देते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मौर्यकालीन भारत]], [[मौर्य काल]], [[मौर्य काल का शासन प्रबंध]]
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||[[चित्र:Chandragupt-Maurya-Stamp.jpg|right|100px|चन्द्रगुप्त मौर्य का टिकट]][[मौर्य काल]] में राजकीय भूमि पर दासों, कर्मकरों और क़ैदियों द्वारा कृषि-कर्म कराया जाता था। दास और कर्मकरों को भोजन आदि दिया जाता था और कार्य के दौरान नक़द मासिक वेतन भी दिया जाता था। परन्तु ऐसी भी राजकीय भूमि होती थी, जिस पर 'सीताध्यक्ष' द्वारा खेती नहीं कराई जाती थी। ऐसी भूमि पर करद कृषक खेती किया करते थे। 'सीताध्यक्ष' राजकीय [[कृषि]] विभाग का अध्यक्ष होता था, जिसके द्वारा राजकीय भूमि से राज्य को सर्वाधिक कर प्राप्त होता था। [[मेगस्थनीज़]], स्ट्राबो तथा ऐरियन इत्यादि [[यूनानी]] लेखकों के अनुसार सारी भूमि राजा की होती थी। वे राजा के लिए खेती करते थे और ¼ भाग राजा को लगान देते थे। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मौर्यकालीन भारत]], [[मौर्य काल]], [[मौर्य काल का शासन प्रबंध]]
  
 
{'अष्ट दिग्गज' निम्न में से किस राजा से सम्बन्धित थे?
 
{'अष्ट दिग्गज' निम्न में से किस राजा से सम्बन्धित थे?
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-[[राजेन्द्र प्रथम]]
 
-[[राजेन्द्र प्रथम]]
 
-[[यशोवर्मन]]
 
-[[यशोवर्मन]]
||'कृष्णदेव राय' (1509-1529 ई.) [[तुलुव वंश]] के वीर नरसिंह का अनुज था, जो [[8 अगस्त]], 1509 ई. को [[विजयनगर साम्राज्य]] के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन काल में विजयनगर एश्वर्य एवं शक्ति के दृष्टिकोण से अपने चरमोत्कर्ष पर था। [[कृष्णदेव राय]] का शासन काल 'तेलुगु साहित्य का क्लासिकी युग' माना जाता है। उसके दरबार को तेलुगु के आठ महान विद्वान एवं कवि, जिन्हें '''अष्ट दिग्गज''' कहा जाता था, सुशोभित करते थे। अत: उसे 'आन्ध्र भोज' कहकर भी पुकारा जाता था। 'अष्ट दिग्गज' में सर्वाधिक महत्वपुर्ण अल्लसानि पेद्दन को "तेलुगु कविता का पितामह" की उपाधि प्रदान की गई थी। उसकी मुख्य कृति है- ‘स्वारोचिष-सम्भव’ या 'मनुचरित' तथा ‘हरिकथा सार’।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्णदेव राय]]
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||'कृष्णदेव राय' (1509-1529 ई.) [[तुलुव वंश]] के [[वीर नरसिंह]] का अनुज था, जो [[8 अगस्त]], 1509 ई. को [[विजयनगर साम्राज्य]] के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन काल में विजयनगर ऐश्वर्य एवं शक्ति के दृष्टिकोण से अपने चरमोत्कर्ष पर था। [[कृष्णदेव राय]] का शासन काल 'तेलुगु साहित्य का क्लासिकी युग' माना जाता है। उसके दरबार को तेलुगु के आठ महान् विद्वान् एवं कवि, जिन्हें '''अष्ट दिग्गज''' कहा जाता था, सुशोभित करते थे। अत: उसे 'आन्ध्र भोज' कहकर भी पुकारा जाता था। 'अष्ट दिग्गज' में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अल्लसानि पेद्दन को "तेलुगु कविता का पितामह" की उपाधि प्रदान की गई थी। उसकी मुख्य कृति है- ‘स्वारोचिष-सम्भव’ या 'मनुचरित' तथा ‘हरिकथा सार’। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्णदेव राय]]
  
 
{[[जैन साहित्य]] को निम्नलिखित में से इस नाम से भी जाना जाता है?
 
{[[जैन साहित्य]] को निम्नलिखित में से इस नाम से भी जाना जाता है?
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-[[ग्रन्थ]]
 
-[[ग्रन्थ]]
 
-बखार
 
-बखार
||[[चित्र:Jainism-Symbol.jpg|right|80px|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]भगवान [[महावीर]] के उपदेश [[जैन धर्म]] के मूल सिद्धान्त हैं, जिन्हें '[[आगम]]' कहा जाता है। ये अर्ध-मागधी प्राकृत भाषा में हैं। इन्हें आचारांगादि बारह अंगों में संकलित किया गया है, जो 'द्वादशंग आगम' कहे जाते हैं। वैदिक संहिताओं की भाँति जैन आगम भी पहले 'श्रुत' रूप में ही थे। महावीर स्वामी के बाद भी कई शताब्दियों तक उन्हें लिपिबद्ध नहीं किया गया था। श्वेताम्बर और दिगम्बर शाखाओं में जहाँ अनेक बातों में मतभेद था, वहीं आगमों को लिपिबद्ध न करने में दोनों एक मत थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आगम]]
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||[[चित्र:Jainism-Symbol.jpg|right|70px|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]] भगवान [[महावीर]] के उपदेश [[जैन धर्म]] के मूल सिद्धान्त हैं, जिन्हें '[[आगम]]' कहा जाता है। ये अर्ध-मागधी प्राकृत भाषा में हैं। इन्हें आचारांगादि बारह अंगों में संकलित किया गया है, जो 'द्वादशंग आगम' कहे जाते हैं। वैदिक संहिताओं की भाँति जैन आगम भी पहले 'श्रुत' रूप में ही थे। महावीर स्वामी के बाद भी कई शताब्दियों तक उन्हें लिपिबद्ध नहीं किया गया था। श्वेताम्बर और दिगम्बर शाखाओं में जहाँ अनेक बातों में मतभेद था, वहीं आगमों को लिपिबद्ध न करने में दोनों एक मत थे। -
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अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आगम]]
  
 
{उन्नीसवीं सदी के महानतम [[पारसी]] समाज सुधारक कौन थे?
 
{उन्नीसवीं सदी के महानतम [[पारसी]] समाज सुधारक कौन थे?
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-नवलजी टाटा
 
-नवलजी टाटा
 
+बहरामजी एम. मल्लबारी
 
+बहरामजी एम. मल्लबारी
 
{[[भारत]] में प्रथम तीन विश्वविद्यालय- '[[कलकत्ता विश्वविद्यालय|कलकत्ता]]', '[[मद्रास विश्वविद्यालय|मद्रास]]' तथा '[[मुंबई विश्वविद्यालय|मुंबई]]' की स्थापना किस [[वर्ष]] हुई?
 
|type="()"}
 
+[[1857]]
 
-[[1881]]
 
-[[1885]]
 
-[[1904]]
 
 
{'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के [[1924]] ई. के अधिवेशन में [[महात्मा गाँधी]] द्वारा मात्र एक बार अध्यक्षता की गई। यह अधिवेशन कहाँ हुआ था।
 
|type="()"}
 
-[[गया]]
 
-[[अमृतसर]]
 
+[[बेलगाँव कर्नाटक|बेलगाँव]]
 
-[[कानपुर]]
 
||'बेलगाँव' [[पश्चिमी घाट पर्वत|पश्चिमी घाट]] में [[समुद्र]] के तल से 760 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह शहर 12वीं शाताब्दी से अस्तित्व में है। बाद में इससे [[गोवा]] और पश्चिमी तट पर जाने वाले पठारी मार्गों पर सामरिक नियंत्रण स्थापित कर लिया गया। '[[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]]' का 39वाँ अधिवेशन, जो [[26 दिसंबर|26]]-[[27 दिसम्बर]], [[1924]] ई. को [[बेलगाँव कर्नाटक|बेलगाँव]] में ही हुआ था, उसकी अध्यक्षता [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] ने की थी। यह शहर [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[मराठा|मराठी]] और [[गोवा की संस्कृति]] का मेल हैं। शाहपुर और माधवपुर बेलगाँव के दो उपनगर हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बेलगाँव कर्नाटक|बेलगाँव]], [[महात्मा गाँधी]]
 
 
{[[महावीर]] की मृत्यु के बाद जैन संघ का मुखिया किसे बनाया गया था?
 
|type="()"}
 
-जम्बु
 
-स्थूलभद्र
 
-भद्रबाहु
 
+[[सुधर्मण]]
 
||'सुधर्मन' [[जैन धर्म]] के [[तीर्थंकर]] [[महावीर|महावीर स्वामी]] के बाद जैन संघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में [[सुधर्मन]] ने लगातार 22 वर्षों तक जैन धर्म की सेवा की थी। सुधर्मन महावीर स्वामी के प्रमुख ग्यारह अनुयायियों में से एक था। महावीर की मृत्यु के पश्चात उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया था। सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुधर्मण]]
 
 
{[[जहाँगीर]] के कहने पर [[अबुल फ़ज़ल]] का कत्ल किसने किया था?
 
|type="()"}
 
-[[हेमू]]
 
-[[बैरम ख़ाँ]]
 
-[[सूरजमल]]
 
+वीरसिंह देव बुन्देला
 
||[[अबुल फ़ज़ल]] बहुत वर्षों तक [[अकबर]] का विश्वासपात्र वज़ीर और सलाहकार रहा था। वह केवल दरबारी और आला अफ़सर ही नहीं था, वरन बड़ा विद्वान भी था। उसने अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं। उसकी '[[आइना-ए-अकबरी]]' में अकबर के साम्राज्य का विवरण मिलता है और '[[अकबरनामा]]' में उसने अकबर के समय का इतिहास लिखा है। उसका भाई [[फ़ैज़ी]] भी अकबर का दरबारी शायर था। 1602 ई. में [[बुन्देला]] राजा वीरसिंह देव ने [[शहज़ादा सलीम]] ([[जहाँगीर]]) के उकसाने से अबुल फ़ज़ल की हत्या कर डाली।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल फ़ज़ल]]
 
 
{[[जैन धर्म]] का वास्तविक संस्थापक किसे माना जाता है?
 
|type="()"}
 
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]]
 
+[[महावीर|महावीर स्वामी]]
 
-[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभदेव]]
 
-[[नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ]]
 
||[[चित्र:Mahaveer.jpg|right|100px|महावीर स्वामी]]'महावीर स्वामी' [[जैन धर्म]] के प्रवर्तक भगवान श्री [[ऋषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभनाथ]] की परम्परा में 24वें [[तीर्थंकर]] थे। इनका जीवन काल 599 ईसवी, ईसा पूर्व से 527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है। जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर महावीर का जन्म [[वृज्जि]] गणराज्य की [[वैशाली]] नगरी के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। इनके [[पिता]] सिद्धार्थ उस गणराज्य के राजा थे। [[कलिंग]] नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का [[विवाह]] हुआ था, किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके [[कैवल्य ज्ञान]] प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महावीर]]
 
 
</quiz>
 
</quiz>
 
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
 
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
{{प्रचार}}
 
 
[[Category:सामान्य ज्ञान]]
 
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश

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1 प्रसिद्ध 'विजयविट्ठल मन्दिर', जिसके 56 तक्षित स्तंभ संगीतमय स्वर निकालते हैं, कहाँ अवस्थित है?

वेल्लोर
काँची
हम्पी
श्रीरंगम

2 मौर्यकालीन भारत में भूमि कर, जो कि राज्य की आय का मुख्य स्रोत था, किस अधिकारी द्वारा एकत्रित किया जाता था?

अग्रोनोमाई
सीताध्यक्ष
शुल्काध्यक्ष
अक्राध्यक्ष

3 'अष्ट दिग्गज' निम्न में से किस राजा से सम्बन्धित थे?

शिवाजी
कृष्णदेव राय
राजेन्द्र प्रथम
यशोवर्मन

4 जैन साहित्य को निम्नलिखित में से इस नाम से भी जाना जाता है?

आगम
निगम
ग्रन्थ
बखार

5 उन्नीसवीं सदी के महानतम पारसी समाज सुधारक कौन थे?

जमशेदजी
रूस्तम बहरामजी
नवलजी टाटा
बहरामजी एम. मल्लबारी

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