इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में चौथा विश्वविद्यालय है। संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर विलियम म्योर ने जब पूरब में ऑक्सफोर्ड को बनाने की इच्छा की थी, उस समय उत्तर भारत में शिक्षा का कोई केंद्र नहीं था। उत्तर भारत की शिक्षा संस्थाओं की संबद्धता कलकत्ता विश्वविद्यालय से थी। 24 मई 1867 को इलाहाबाद में विलियम म्योर ने एक स्वतंत्र महाविद्यालय तथा एक विश्वविद्यालय के लिए सोचा जिसकी योजना सन 1869 में बनी और इस कार्य के लिए एक कमेटी बनायी गई, प्यारे मोहन बनर्जी इसके अवैतनिक सचिव बने

योजना

प्रारम्भ में नागरिकों ने महाविद्यालय की स्थापना के लिए 16 हज़ार रुपए एकत्र करने का संकल्प किया। लाला गयाप्रसाद, बाबू प्यारे मोहन बनर्जी, मौलवी फरीदुद्दीन, मौलवी हैदर हुसैन, राय रामेश्वर चौधरी ने इस कार्य के लिए एक आंदोलन चला दिया। उसी समय पब्लिक एजुकेशन (जनशिक्षा) के निदेशक कैंपसन ने प्रस्तावित विश्वविद्यालय का प्रारूप बनाया किंतु तत्कालीन भारत सरकार के विरोध से यह योजना निरस्त कर दी गयी। इसके परिणाम स्वरूप 'सर विलियम म्योर' ने इलाहाबाद में एक महाविद्यालय स्थापित करने की योजना को अपनी मंज़ूरी दी। उनका विचार था कि कालांतर में यह महाविद्यालय ही एक विश्वविद्यालय का रूप ले लेगा। इसके लिए दो हज़ार रुपए की धनराशि भी दान में दी गयी। इसके बाद नगर के प्रभावशाली भारतीयों की एक दूसरी कमेटी शेष धन एकत्र करने के लिए बनायी गयी। इसकी पहली बैठक 9 नवंबर 1869 को राजभवन में हुई। कमेटी में प्रस्तावित महाविद्यालय के लिए उपयुक्त स्थान प्राप्त कर्ने का प्रस्ताव पास किया गया। आज कल के एल्फ्रेड पार्क के पास की भूमि को इसके लिए उपयुक्त माना गया।

भवन निर्माण का प्रस्ताव

स्थान निश्चित होने पर दूसरी कमेटी बनाई गई जो महाविद्यालय का भवन बनवाने के प्रस्ताव पर कार्य कर और योजना आगे बढ़ सके। प्रस्तावित महाविद्यालय का भवन निर्मित होने तक दूसरे भवन को किराए पर लेने का प्रस्ताव किया गया जिसे लेफ्टीनेंट गवर्नर सर विलियम म्योर ने स्वीकार कर लिया और कमेटी ने 'दरभंगा कैसेल' को लेने के लिए बातचीत शुरू की, जिससे शीघ्र ही कक्षाएँ प्रारम्भ हो सकें। यह भवन मात्र ढ़ाई सौ रुपए महीने के किराए पर तीन वर्ष के लिए ले लिया गया। 22 जनवरी 1872 को स्थानीय सरकार ने इलाहाबाद में महाविद्यालय खोलेने के ज्ञापन को भारत सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा और स्वीकृति मिलने पर सर विलियम म्योर के पास एक पत्र भेजा गया कि महाविद्यालय का नाम उनके नाम पर क्यों न रख दिया जाए। लेफ्टीनेंट गवर्नर सर विलियम म्योर ने स्वीकृति दे दी और 1 जुलाई 1872 से 'म्योर सेंट्रल कॉलेज' ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। शिक्षकों के समुदाय में श्री ऑगस्टम हैरिसन, प्रिंसिपल डब्लू.एच. राइट, अंग्रेज़ी साहित्य के प्रोफेसर श्री जे एलियट, गणित के प्रोफेसर मौलवी ज़कुल्ला, वर्नाकुलर साहित्य तथा विज्ञान के प्रोफेसर तथा पंडित आदित्य नारायण भट्टाचार्य प्रमुख थे।

'म्योर कॉलेज' की आधारशिला

हिज एक्सेलेंसी जार्ज बैरिंग वायसराय तथा भारत के गवर्नर जनरल ने 'म्योर कॉलेज' की आधारशिला 9 दिसंबर 1873 को रखी। 'म्योर सेंट्रल कॉलेज' का डिज़ाइन डब्ल्यू एमर्सन ने बनाया था और उम्मीद थी कि कॉलेज का भवन मार्च 1875 तक बन जाएगा, किंतु ऐसा नहीं हो पाया और इसे पूरा होने में बारह वर्ष लग गए। 1888 अप्रैल तक कॉलेज के सेंट्रल ब्लॉक को बनाने में 8,89,627 रुपए व्यय हो गये थे। इस भवन का औपचारिक उद्घाटन 8 अप्रैल 1886 को वायसराय लार्ड डफरिन ने किया। विश्वविद्यालय के भवन की भव्य शैली तथा स्थापत्य प्राचीन और पाश्चात्य विचारों, परंपराओं के मिलन के आधार पर यह पूर्व का ऑक्सफोर्ड माना जाने लगा।

विधिवत स्थापना

23 सितंबर 1887 को एक्ट XV11 पास हुआ और विधिवत इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी अब कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों की ही भाँति उपाधि प्रदान करने वाली संस्था बन गया था। इस विश्वविद्यालय की प्रथम प्रवेश परीक्षा मार्च 1889 में हुई।

इंडियन यूनिवर्सिटीज़ एक्ट

1904 में 'इंडियन यूनिवर्सिटीज़ एक्ट' पारित हुआ, जिसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय का कार्य क्षेत्र संयुक्त प्रांत आगरा व अवध, सेंट्रल प्राविंसेज (बरार, अजमेर तथा मेवाड़ सहित) तथा राजपूताना एवं सेंट्रल इंडियन एजेंसीज के अधिकांश प्रांत तक सीमित कर दिया गया। 1887 एवं 1972 की अवधि में इस क्षेत्र के कम से कम 38 विभिन्न संस्थान एवं कॉलेज उससे संबद्ध हुए। 1921 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी एक्ट लागू हुआ तो म्योर सेंट्रल कॉलेज का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया। 1922-27 के बीच यूनिवर्सिटी के आंतरिक तथा बाह्य भाग बन गए, जिन्हें कालांतर में अलग कर विश्वविद्यालय का आवासीय स्वरूप दिया गया। 1911 में बना सीनेट हॉल गौरवमयी इतिहास समेटे है। 1987 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने अपना शताब्दी वर्ष मनाया।



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